'क्या कभी सुना है 'शक्कर' की स्मलिंग भी होती है, इस देश में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

नेपाल के बाजार में चीनी की कमी नहीं है। जबकि भारत ने चीनी एक्सपोर्ट को कम कर दिया है। हाल ही में नेपाल पुलिस ने चीनी तस्करों को पकड़ा। वे लखीमपुर खीरी के थे। बाजार में चीनी की कमी नहीं होना और तस्करों का पकड़ा जाना दर्शाता है कि भारत से नेपाल में चीनी की तस्करी हो रही है। 

Moin Azad | Published : Jun 12, 2022 7:33 AM IST / Updated: Jun 12 2022, 01:04 PM IST

नई दिल्लीः नेपाल के व्यापारियों का कहना है कि बाजार में चीनी की भरमार है। भारत के चीनी एक्सपोर्ट को कम कर देने के बाद भी बाजार में चीनी की कमी नहीं है। यह दर्शाता है कि बाजार में चीनी की तस्करी हो रही है। हाल ही में नेपालगंज में पुलिस ने 2,150 किलोग्राम घरेलू स्वीटनर को जब्त किया था, जिसे भारत के लखीमपुर खीरी से तस्करी कर लाया गया (Sugar Smuggling) था। नेपालगंज सीमा शुल्क कार्यालय के प्रमुख अर्जुन कुमार न्यूपने ने कहा कि नेपालगंज सीमा के माध्यम से चीनी इंपोर्ट मई के मध्य से जून के मध्य की अवधि के दौरान तेजी से गिरा था। लेकिन व्यापारियों के मुताबिक, बाजार में सरप्लस इन्वेंट्री है। 

भारत सरकार के निर्देशों को मानना जरूरी
फरवरी के मध्य और मध्य मार्च के बीच नेपालगंज सीमा बिंदु (Nepalganj Border point) के माध्यम से चीनी का इंपोर्ट 5,764 टन था, जिसकी कीमत 327.2 मिलियन रुपये थी। मार्च के मध्य से अप्रैल के मध्य तक, आयात घटकर 1,635 टन रह गया, जिसकी कीमत 90.12 मिलियन रुपये थी। मध्य अप्रैल से मध्य मई की अवधि के दौरान, आयात दोगुना होकर 3,264 टन हो गया। 25 मई को भारत सरकार ने 1 जून से प्रभावी चीनी एक्सपोर्ट को 1 मिलियन टन तक सीमित करने का निर्णय लिया। देश के बाहर चीनी भेजने की अनुमति के लिए व्यापारियों को भारत सरकार के निर्देशों को मानना जरूरी है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद खाद्य कीमतों में उछाल आया है। 

भारत में चीनी निर्यात
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। उपभोक्ता अधिकार जांच फोरम के अध्यक्ष माधव तिमलसीना ने कहा कि चीनी निर्यात पर भारत के बैन से बाजार में स्टॉक प्रभावित नहीं हुआ है। लेकिन चीनी 95 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उपलब्ध थी अब उसकी कीमत 110 रुपये प्रति किलो है। थोक व्यापारी 97 रुपये से 100 रुपये प्रति किलो वसूल रहे हैं। सरकारी कंपनी साल्ट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ने भी आयात बंद कर दिया है। सूचना अधिकारी कुमार राजभंडारी ने कहा कि सरकारी कंपनी ने पिछले दो साल से चीनी का आयात बंद कर दिया है। राजभंडारी ने कहा कि निगम दो साल पहले 20,000 टन चीनी लाया था। 

भारत की नई नीति से तस्करों को फायदा
राजभंडारी के अनुसार, नेपाल की वार्षिक चीनी मांग लगभग 260,000 टन है। पिछले वित्तीय वर्ष में देश ने 105,000 टन स्वीटनर का उत्पादन किया। निजी क्षेत्र चीनी का आयात कर रहा है, लेकिन नेपाली व्यापारियों को दिए जाने वाले आयात कोटा के बारे में भारत की ओर से कोई स्पष्ट सूचना नहीं है। न्यूपेन ने कहा कि भारत ने नेपाली आयातकों के लिए चीनी कोटा के संबंध में कुछ भी लिखित रूप में नहीं भेजा है। आयातकों को यह भी नहीं पता है कि उत्पाद कहां से प्राप्त करना है। इस कारण आयात में गिरावट शुरू हो गई है। व्यापारियों का कहना है कि सीमा शुल्क अधिकारी, पुलिस और व्यापारियों की मिलीभगत से नेपाल-भारत सीमा से चीनी की तस्करी होती रही है। कारोबारियों के मुताबिक भारत की नई चीनी निर्यात नीति का फायदा तस्कर उठा रहे हैं।

किसानों ने गन्ना उगाना किया बंद
घरेलू उत्पादन में गिरावट के कारण इंपोर्ट किए हुए चीनी पर नेपाल की निर्भरता सालाना बढ़ रही है। न्यूपेन के अनुसार भारत ने कोका-कोला और पेप्सी जैसे शीतल पेय के उत्पादन के लिए चीनी के निर्यात को प्रतिबंधित नहीं किया है। घरेलू चीनी उत्पादन में सालाना गिरावट आ रही है, क्योंकि कई किसानों ने गन्ना उगाना बंद कर दिया है क्योंकि चीनी मिलें उन्हें अपनी फसलों के लिए समय पर भुगतान नहीं करती हैं। 1996 में शुरू हुए माओवादी विद्रोह ने चीनी उद्योग को एक गहरा झटका दिया, जिससे वह पूरी तरह उबर नहीं पाया है। बांके की गिजरा खडसारी मिल तीन महीने में 2,000 क्विंटल चीनी का उत्पादन करती थी। जनवरी 2004 में माओवादियों द्वारा कारखाने को लूट लिया गया था। मिल मालिकों ने सुरक्षा की कमी का हवाला देते हुए परिचालन बंद कर दिया और लगभग 100 श्रमिकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

मुश्किल है बैंकों से लोन लेना
मिल के तत्कालीन मालिक अजय टंडन ने कहा, "कारखाना बंद हो गया और फिर कभी चालू नहीं किया जा सका। हमने कई बार गृह मंत्रालय से सुरक्षा की मांग की, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। बांके में पहली चीनी फैक्ट्री लूट ली गई थी, लेकिन कोई न्याय नहीं दिया गया है।" 17 साल पहले माओवादी विद्रोह के कारण कैलाली की बासुलिंग चीनी मिल भी बंद हो गई थी। 90 करोड़ रुपये के निवेश से स्थापित इस मिल का अपना 55 बीघा गन्ने का खेत था। प्रोपराइटर अरुण चंद ने कहा कि मिल में रोजाना 25,000 क्विंटल गन्ने की पेराई करने और सालाना 300,000 क्विंटल चीनी का उत्पादन करने की क्षमता है। कंपनी द्वारा उत्पादित चीनी का निर्यात भी किया जा रहा था। चंद ने कहा, 'हम मिल को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं और बैंकों से कर्ज मांगा है। "लेकिन बैंक क्रेडिट जारी करने से हिचक रहे हैं क्योंकि वे लिक्विडिटी क्राइसिस का सामना कर रहे हैं।"

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