Ambedkar Jayanti 2022: इस तरह से तैयार करें अपनी स्पीच, भाषण में इन बातों पर करें फोकस

Published : Apr 14, 2022, 07:32 AM IST
Ambedkar Jayanti 2022: इस तरह से तैयार करें अपनी स्पीच, भाषण में इन बातों पर करें फोकस

सार

डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था। 

करियर डेस्क. 14 अप्रैल को भारत के संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती (Ambedkar Jayanti 2022) मनाई जाती है। भारत का संविधान लिखने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंबेडकर जयंती में देशभर में अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस मौके पर स्टूडेंट्स और लोग स्पीच देते हैं। अगर आप भी स्पीच देना चाहते हैं तो हम आपको ऐसी ट्रिक बता रहे हैं। जिससे आप प्रभवशाली भाषण दे सकते हैं। अंबडेकर पर भाषण देने के लिए जरूरी है कि आप पहले उनके बारे में जानें। आइए बताते हैं कैसे तैयार करें अपना भाषण।


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स्पीच में इन बातों का रखें ध्यान

  • अपनी स्पीच को छोटा रखें। क्योंकि ज्यादा लंबा बोलने से आपका स्पीच लोगों को पसंद नहीं आएगी।
  • अपनी स्‍पीच में ऐशे शब्दों का सिलेक्शन करें जो सरल हो। 
  • स्पीच ऐसी होनी चाहिए की लोगों को उससे सीख मिले। 
  • बोलने से पहले अपनी स्पीच की प्रैक्टिस जरूर करें।  

भाषण की शुरुआत अभिवादन के साथ करें। मंच में मौजूद सभी वरिष्ठ लोगों को प्रणाम करें। उसके बाद अपने भाषण की शुरुआत करें। फिर डॉ अंबेडकर के बारे में अपनी राय रखें। बता दें कि भाषण छोटा लेकिन सभी फैक्ट्स को मिलाकर होना चाहिए। ध्यान रखें की 14 अप्रैल को महावीर जयंती भी मनाई जाती है इश दौरान अफने भाषण में महावीर का भी जिक्र करें। ऐसा करने से आपका भाषण प्रभावशाली होगा। 

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, मध्यप्रदेश में हुआ था। उन्हें दलितों का नेता माना जाता है लेकिन उन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए काम किया था। आप अपनी स्पीच पर इस बात का जोर दें कि अंबडेकर को केवल एक क्षेत्र का व्यक्ति घोषित नहीं करें। वो दआजाद भारत के पहले कानून मंत्री होने के साथ-साथ भारत के संविधान निर्माता भी है। उन्हें बाबा साहब के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने हायर एजुकेशन अमेरिका और लंदन से पूरी की। दलित समुदाय से होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी रूचि पढ़ने में थी इसी कारण से वो देश के पहले नागिरक थे जिन्होंने विदेश से पीएचडी की।

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आजादी के बाद उन्होंने 1947 में वो भारत सरकार में कानून मंत्री बने। वो उस समिति के अध्यक्ष थे जिसने भारत का संविधान लिखा। हालांकि उन्होंने 1951 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। बाद में दलितों का शोषण देखते उन्होंने हिन्दू धर्म को छोड़कर अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। 6 दिसंबर, 1956 में उनका निधन हो गया।

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