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ऐसे बदला था डॉ भीमराव अंबेडकर का सरनेम, क्या आप जानते हैं बाबा साहेब की जिंदगी से जुड़े ये फैक्ट्स
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अंबेडकर के एक टीचर महादेव ने उन्हें सरनेम दिया था। उनके कहने पर ही बाबा साहेब ने अपने नाम के आगे अंबेडकर जोड़ा था। पहले वह अपना सरनेम सकपाल लिखते थे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में प्लानिंग मंत्रालय चाहते थे डॉ भीम राव अंबेडकर लेकिन उन्हें कानून मंत्रालय दिया गया था।
डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई के दौरान ही देश में समानता के अधिकार की बात की थी। वो हमेशा समानता के अधिकार के लिए संघर्ष करते रहे।
महात्मा गांधी और डॉ भीमराव अंबेडकर के बीच कई बार मुलाकात हुई लेकिन उन दोनों के बीच कभी भी मतभेद खत्म नहीं हो पाए।
भीमराव अंबेडकर का रूचि शुरू से ही पढ़ने में थी। 1938 में भीमराव अंबेडकर के पास करीब 8 हजार किताबों का संग्रह था जो उनकी मृत्यु तक 35 हजार के करीब पहुंच गया था। वो पढ़ने के लिए किसी को भी उधार नहीं देते थे।
आंबेडकर देश के पहले आदमी थे जिन्होंने फॉरेन से डॉक्टरेट और इकोनॉमिक्स में डिग्री हासिल की थी। वो करीब 64 विषयों के मास्टर थे।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने देश में काम करने को घंटों को घटाया था। उन्होंने 14 घंटे के वर्किंग आवर को घटाकर 8 घंटे किया था।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का पहला स्टैच्यू उनके जिंदा रहते हुए 1950 में बनाया गया था। ये स्टैच्यू आज भी कोल्हापुर शहर में लगा हुआ है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना में डॉ भीमराव अंबेडकर ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही उन्होंने वित्त आयोग की स्थापना के लिए भी सबसे अहम रोल निभाया था।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में पहले चरखा होता था। बाद में भीमराव अंबेडकर के कारण ही चरखे को हटाकर अशोक चक्र को जगह दी गई थी।