IPS अफसर से सीखें चुनौतियों से निपटना: पुलिस-पैरामिलिट्री जवानों को Mentally स्ट्रॉन्ग रहने का मंत्र

हमारे देश में मानसिक तनाव को बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं. अगर कोई भी इस समस्या को सामने लेकर आता है तो लोग उसे कमजोर समझते हैं। ऐसा करने से परेशानी और भी ज्यादा बढ़ती है। इसलिए जरूरत है, वक्त रहते इस समस्या पर ध्यान देने की।

Asianet News Hindi | Published : Sep 13, 2022 4:37 AM IST / Updated: Sep 13 2022, 10:31 AM IST

करियर डेस्क : पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्सेस के जवानों को मानसिक रूप से फिट रहने को लेकर IPS अधिकारी राहुल गुप्ता (Rahul Gupta) ने मंत्र दिया है। एक लेख में उन्होंने बताया कि वर्दीधारी जवान मानसिक चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं? उनके इस लेख को आईपीएस एसोसिएशन IPS Association) ने भी सहारा है। राहुल गुप्ता की टिप्स को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए एसोसिशन ने एक्सीलेंट बताया है। आइए जानते हैं आईपीएस अधिकारी का चुनौतियों से निटपने का मंत्र..

राहुल गुप्ता ने शेयर किए अनुभव
अपने एक अनुभव को शेयर करते हुए आईपीएस राहुल गुप्ता ने बताया कि 'कुछ समय पहले की बात है, मेरे पास एक इंस्पेक्टर आए, उन्होंने मुझसे अपील करते हुए कहा कि पुलिस के एक सिपाही को 60 दिन की छुट्टी के साथ तत्काल रूप से घर भेज दें। मैंने उनसे पूछा आखिरी बात क्या है, तब उन्होंने बताया कि कॉन्स्टेबल घर से दूर रहता है और इसी चिंता में उसमें मानसिक समस्याएं (Mental Problems) दिखने लगी हैं। इस कारण से वह तनाव में है। इंस्पेक्टर के कहने पर मैंने उसे छुट्टी दे दी. कॉन्स्टेबल बिहार (Bihar) का रहने वाला है और साल 2000 से ही अरुणाचल प्रदेश पुलिस में सेवा कर रहा है।'

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'जवानों के तनाव को कम आंकना गलत'
राहुल गुप्ता ने आगे बताया कि 'वर्दी पहनने वाले जवान के तनाव को अक्सर कम करके आंका जाता है। फोर्स के जवानों को एक कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम के साथ कसकर रखा जाता है। उसे अपने सीनियर ऑफिसर के आदेश का पालन करना होता है. इस सिस्टम का कभी भी उल्लंघन नहीं किया जाता। यह सिस्टम अनुशासन और जवाबदेही के साथ काम करने के दायित्व को सुनिश्चित करती है। हालांकि, कई बार यह ठीक नहीं मना जाता, खासकर तब जब कोई जवान अपनी पर्सनल समस्याओं को सही जगह और सही समय पर बताता नहीं है।

'जवानों के तनाव को कम आंकना गलत'
राहुल गुप्ता ने आगे बताया कि 'वर्दी पहनने वाले जवान के तनाव को अक्सर कम करके आंका जाता है। फोर्स के जवानों को एक कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम के साथ कसकर रखा जाता है। उसे अपने सीनियर ऑफिसर के आदेश का पालन करना होता है. इस सिस्टम का कभी भी उल्लंघन नहीं किया जाता। यह सिस्टम अनुशासन और जवाबदेही के साथ काम करने के दायित्व को सुनिश्चित करती है। हालांकि, कई बार यह ठीक नहीं मना जाता, खासकर तब जब कोई जवान अपनी पर्सनल समस्याओं को सही जगह और सही समय पर बताता नहीं है।

'मानसिक तनाव को समझना जरूरी'
'आईपीएस अधिकारी ने बताया कि भारत में मानसिक तनाव को बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं। जब भी कोई इस समस्या को लेकर किसी से कुछ शेयर करता है तो लोग उसे कमजोर समझते हैं। कई लोग लाइफ की इस समस्या से कठोरता से दूर भारते हैं। पुलिस-प्रशासन यानी वर्दीधारी के लिए भी जो सिस्टम तैयार किया गया है, उसमें वह कमजोर नहीं दिखना चाहता क्योंकि उसकी छवि 'माचो मैन' स्टीरियोटाइप की होती है। ऐसे में अगर वह कमजोर दिखता है तो उसे कमतर आंका जाता है।

'सिर्फ वेतन ही काफी नहीं, प्रोत्साहन भी जरूरी'
राहुल गुप्ता ने अपनी लेख में बताया कि राज्य पुलिस और सीएपीएफ में करीब 85 प्रतिशत तक कॉन्स्टेबल होते हैं। ये अपने सीनियर के निर्देश का पालन करते हुए अपना कर्तव्य निभाते हैं। ज्यादातर अपनी उपलब्धियों के लिए कम और विफलता के साथ ज्यादा रहते हैं। उनके लिए सिर्फ नौकरी या वेतन ही काफी नहीं होता. उन्हें कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, इसलिए प्रोत्साहन के साथ-साथ काम करने की अच्छी स्थिति, छुट्टी, भत्ते और आवास जैसी सुविधाएं भी महत्व रखती हैं। ये उन्हें दी जानी चाहिए। कुछ सालों में ज्यादा भर्ती और बेहतर व्यवस्थाओं ने कुछ चीजों को सही करने में मदद की है। ऐसा लगातार रहने से कई समस्याएं कम हो सकती हैं।'

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