Teacher बनना चाहती थीं सुरेखा यादव.. Mathematics से गहरा लगाव, कभी स्कूटर भी नहीं चलाया अब दौड़ा रहीं Vande Bharat Express

सुरेखा यादव महाराष्ट्र के सतारा की रहने वाली हैं। पहली बार 1988 में उन्होंने ट्रेन चलाया था, तब देश ही नहीं एशिया की पहली महिला लोको पायलट बन गई थीं। वह कभी लोको पायलट नहीं बनना चाहती थी। उनका मन था कि वे टीचर बनकर बच्चों को पढ़ाएं।

Satyam Bhardwaj | Published : Mar 14, 2023 6:13 AM IST / Updated: Mar 14 2023, 11:54 AM IST

करियर डेस्क : एशिया की पहली महिला लोकोमोटिव पायलट सुरेखा यादव (Surekha Yadav) ने जब 13 मार्च, 2023 सोमवार को वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) चलाया तो पूरा देश गर्व से भर गया। खुद केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने उनकी तारीफ की। सुरेखा ने सोमवार को महाराष्ट्र में सोलापुर से छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल (CSMT) तक वंदे भारत एक्सप्रेस चलाया। इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली सुरेखा यादव कभी भी लोको पायलट नहीं बनना चाहती थीं। उनका मन टीचर बनने का था और गणित के सवालों में उनकी गहरी दिलचस्पी थी लेकिन एक दिन उनका पूरा करियर ही बदल गया। आइए जानते हैं उनके यहां तक पहुंचने का सफर और उनका एजुकेशन..

Teacher बनना चाहती थीं सुरेखा यादव

सुरेखा यादव ने पहली बार 1988 में ट्रेन चलाकर एशिया की पहली महिला लोको पायलय का खिताब अपने नाम किया था। उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक किसान फैमिली में हुआ था। घर में पांच बच्चे थे और सुरेखा उन सबमें बड़ी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुरेखा की शुरुआती पढ़ाई Saint Paul High School से हुई। वह शुरू से ही काफी इंटेलिजेंट थीं। बात पढ़ाई की हो या खेल-कूद की सुरेखा ऑलराउंडर की तरह हर जगह आगे रहती थीं। स्कूल की पढ़ाई के बाद उन्होंने Electrical Engineering में डिप्लोमा किया। उन्हें मैथमैटिक्स से काफी लगाव था और उसमें ही उनका मन लगता था। सुरेखा B.Ed कर टीचर बनना चाहती थीं।

ऐसे मिली रेलवे की जॉब

1986 की बात है, जब सुरेखा रेलवे की परीक्षा दी। एग्जाम पास करने के बाद उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू क्लीयर करने के बाद कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में उन्हें ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर (Trainee Assistant Driver) की ट्रेनिंग दी गई। उस वक्त सुरेखा रेलवे के रिटेन और वाइवा में इकलौती महिला थी। साल 1998 में सुरेखा को गुड्स ट्रेन चलाने की पूरी तरह जिम्मेदारी दी गई। 2000 आते-आते उन्हें रेल रोड इंजीनियर बनाया गया। सुरेखा 2010 में वेस्टर्न घाट रेलवे लाइन पर भी ट्रेन दौड़ा चुकी हैं। यह रास्ता बेहद कठिन है और इसके लिए उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग दी गई। यह किसी भी लोको पायलट के लिए काफी बड़ा अचीवमेंट है।

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