इंस्पायर करती है 23 साल के लड़के की कहानी: दो महीने की मेहनत, 600 ईमेल और 80 फोन..अब वर्ल्ड बैंक में मिली जॉब

वत्सल नहाटा ने स्ट्रगल की अपनी पूरी स्टोरी लिंक्डइन पर शेयर की है। उन्होंने बताया कि कैसे कोरोना के वक्त में वे जॉब के लिए भटक रहे थे और कितनी कड़ी मेहनत के बाद उन्हें वर्ल्ड बैंक में जॉब मिली। आज भी वे उन दिनों को याद कर कांप जाते हैं। 
 

Asianet News Hindi | Published : Sep 26, 2022 1:40 PM IST

करियर डेस्क : सच्चे लगन से की गई मेहनत सफलता के मुकाम तक एक दिन जरूर पहुंचाती है। ऐसा ही कुछ हुआ है 23 साल के वत्सल नाहटा (Vatsal Nahata) के साथ। नाहटा को वर्ल्ड बैंक (World Bank) में नौकरी मिली है लेकिन यहां तक पहुंचने की उनकी कहानी काफी इंस्पायरिंग है। विश्व बैंक में जॉब पाना वत्सल का सपना था। उन्होंने इस जॉब को पाने एक दो नहीं बल्कि 600 ईमेल किए और 80 फोन कॉल्स। इतने रिजेक्शन के बाद जब उन्हें सक्सेस मिली तो उनकी कहानी सोशल मीडिया पर जमकर शेयर होने लगी। आइए जानते हैं वत्सल के यहां तक पहुंचने की मोटिवेशनल स्टोरी..

दो साल पहले शुरू हुई थी कहानी
वत्सल नाहटा ने येल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। साल 2020 में जब कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में परेशानी खड़ी कर रखी थी, तब वत्सल की पढ़ाई कंप्लीट हुई थी। उस दौर में नौकरी मिलना आसान था नहीं। कई कंपनियों में छंटनी चल रही थी और जॉब कहीं मिल नहीं रही थी। नाहटा की सबसे बड़ी परेशानी थी कि उन्हें जॉब मिलेगी भी या नहीं। अपनी स्टोरी को सोशल मीडिया वेबसाइट लिंक्डइन पर शेयर करते हुए नाहटा ने बताया कि 'जब सभी कंपनियां सबसे बुरी परिस्थिति का सामना कर रही थीं, नई भर्ती का चांस ही नहीं था' एक ऐतिहासिक मंदी का खतरा और उस पर नौकरी का सोचना सबसे कठिन दौर था।'

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पहले भी आ चुकी हैं परेशानियां
वत्सल नाहटा मई 2020 में येल यूनिवर्सिटी से ही मास्टर्स की तैयारी कर रहे थे। उनका प्लान था कि इंटरनेशनल एंड डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में मास्टर की डिग्री ली जाए। लेकिन तभी तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इमिग्रेशन नियमों को कड़ा कर दिया। नाहटा ने तमाम कोशिशें की लेकिन उन्हें कोई ऐसी कंपनी नहीं मिली, जो उन्हें वीजा स्पॉन्सर कर सके। उन्होंने कई कंपनियों में इंटरव्यू दिया। फाइनल राउंड तक पहुंचे लेकिन हर बार रिजेक्शन ही मिला। इसकी वजह थी कंपनियों की वीजा स्पॉन्सर की असमर्थता। उन्होंने बताया कि 'ऐसा लग रहा था कि येल यूनिवर्सिटी की डिग्री तो सिर्फ कागज का टुकड़ा है। जब घर वाले फोन कर पूछते कि मैं कैसा हूं, सब कैसा चल रहा है तो इसका जवाब दे पाना बहुत ही कठिन हो गया था।'

वत्सल नाहटा ने नहीं मारी हार
वत्सल इस वक्त इंटरनेशल मॉनिटरी फंड (IMF) में बतौर रिसर्च एनालिस्ट काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 'कठिन से कठिन परिस्थितियां आईं लेकिन हार मानना कोई विकल्प नहीं था। मैं वहां डटा रहा और आखिरी में मैंने फैसला किया कि अब न तो किसी नौकरी के लिए अप्लाई करूंगा और ना ही किसी जॉब पोर्टल्स को खंगालूंगा। इसके बाद मैंने नेटवर्किंग का सहारा लिया. नेटवर्किंग की मदद ली और जिनको नहीं जानता था, उन्हें ईमेल भेजना और फोन करना शुरू किया। मुझे उम्मीद थी कि शायद वहां से अच्छा रिस्पॉन्स मिले।' 

इस तरह मिली पहली नौकरी
करीब दो महीने की मेहनत, लिंक्डइन पर 1500 से ज्यादा कनेक्शन रिक्वेस्ट, अनजान लोगों को 600 से ज्यादा ईमेल और 80 से फोन कॉल्स के बाद उन्हें सफलता मिली। नाहटा ने बताया कि वे हर दिन दो लोगों से बात करते थे। लगातार मेहनत के बाद आखिरकार मई के पहले हफ्ते से उन्हें एक साथ चार ऑफर मिले, जिनमें एक वर्ल्ड बैंक का ऑफर था। उन्होंने इस ऑफर को स्वीकार किया और आज वे वर्ल्ड बैंक के रिसर्च डायरेक्टर के साथ मशीन लर्निंग पर किताब लिख रहे हैं।

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