बाल गंगाधर तिलक ने भारत में शिक्षा में सुधार की दिशा में भी काम किया। उन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर 'डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी' बनाई। एक साल बाद ही दो समाचार पत्रों का प्रकाशन भी शुरू किया। इसमें एक मराठी साप्ताहिक समाचार पत्र 'केसरी' और दूसरा अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र 'मह्रात्ता' था।
करियर डेस्क : जब-जब भारत की आजादी की कहानी लिखी जाएगी, बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। आज 1 अगस्त, 2022 को उनकी 102वीं पुण्यतिथि (Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary) है। पूरा देश लोकमान्य को नमन कर रहा है। महाराष्ट्र (Maharashtra) के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के चिक्कन गांव के रहने वाले बाल गंगाधर के पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक संस्कृति के प्रख्यात विद्वान और शिक्षक थे। घर में शुरू से ही पढ़ाई लिखाई का माहौल था तो बाल गंगाधर की भी रुचि इसमें खूब रही। भारतीय इतिहास में तिलक वो पीढ़ी थे, जिन्होंने मॉडर्न पढ़ाई की शुरुआत की और LLB की डिग्री हासिल की। पुण्यतिथि पर जानिए
तिलक पर माता-पिता का प्रभाव
तिलक के शुरुआती जीवन पर उनके माता-पिता का असर रहा। ब्राह्मण परिवार में जन्म के कारण बचपन में ही उनमें धार्मिक कार्यो और कट्टरता की भावना पैदा हो गईं थी। पिता संस्कृत के शिक्षक थे तो उन्हीं से तिलक को संस्कृत भाषा की शिक्षा मिली। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर से ही पूरी हुई। इसके बाद पांच साल की उम्र में घर के पास स्कूल में ही एक स्कूल से हुई। तिलब जब 10 साल के थे, तब उनका परिवार पूना आज का पुणे में आकर बस गया। यहां रहते हुए बाल गंगाधर तिलक ने एंग्लों वर्नाक्यूलर इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई की।
तिलक ने LLB की डिग्री हासिल की
तिलक का जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। जब वे 10 साल के थे, तब उनके दादाजी घर छोड़कर संन्यास की ओर निकल पड़े। इसी साल उनकी माता पार्वती बाई का भी निधन हो गया। 16 साल की उम्र में पिता का साया भी सर से उठ गया। इन कठिन परिस्थितियों के बाद भी तिलक ने पढ़ाई नहीं छोड़ी। पिता के निधन के चार महीने के अंदर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए डेक्कन कॉलेज में एडमिशन लिया। यहीं से 1876 में उन्होंने बीए ऑनर्स की डिग्री हासिल की और 1879 में बंबई विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री पूरी की।
फर्ग्युसन कॉलेज की स्थापना
पढ़ाई पूरी करने के बाद तिलक पुणे के एक प्राइवेट स्कूल में मैथ्य पढ़ाने लगे। लेकिन वे पश्चिमी शिक्षा के आलोचक भी थे। उनका मानना था कि पश्चिमी शिक्षा में भारतीयों को हीन नजरों से देखा जाता है। भारतीय संस्कृति को गलत ढंग से पेश किया जाता है। वे भारतीय शिक्षा में बदलाव चाहते थे, इसी विचार से उन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर 'डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी' बनाई। इसके कुछ साल बाद एमबी नामजोशी और अन्य लोगों की मदद से तिलक ने 2 जनवरी, 1880 में पूना में 'न्यू इंग्लिश स्कूल' की स्थापना की। इसके बाद साल 1885 में 'डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी' के तत्वाधान में 'फर्ग्युसन कॉलेज' की स्थापना की।
आजादी की अलख जगाने समाचार पत्रों का प्रकाशन
बाल गंगाधर तिलक ने दो साप्ताहिक समाचार पत्रों, मराठी में केसरी और अंग्रेजी में द मराठा का प्रकाशन किया। इसका उद्देश्य आजादी की अलख जगाना था। बहुत जल्द इन पत्रों ने पत्रकारिता में अपना स्थान बना लिया। इसका असर भी हुआ और आंदोलन की आग धीरे-धीरे देश के हर हिस्सों में फैलने लगी। इस बीच 'मराठा' और 'केसरी' डेक्कन के प्रमुख समाचार पत्र बन गए।
जेल में लिख दी 'गीता रहस्य'
3 जुलाई 1908 की बात है, जब तिलक को अखबार केसरी में उनके लिखे एक लेख के कारण देशद्रोह के आरोप में अरेस्ट कर लिया गया। उन्हें 6 साल के लिए बर्मा के मंडले जेल भेज दिया गया और एक हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। इसी दौरान तिलक की पत्नी का भी निधन हो गया था। जेल में रहते हुए साल 1915 में तिलक ने 400 पन्नों की किताब 'गीता रहस्य' लिखी। इस किताब में उन्होंने श्रीमदभगवद्गीता में श्रीकृष्ण के बताए कर्मयोग की विस्तृत व्याख्या की। इस किताब की कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। इससे पहले 1893 में उन्होंने ओरियन और 1903 में दी आर्कटिक होम इन दी वेद नाम की किताबें लिखीं।
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