गरीबी में साइकिल के पंक्चर बनाते बीता बचपन, मुश्किलों को हराकर ये लड़का बना था IAS अफसर

कहते हैं कि जिसमें कुछ हासिल करने की तमन्ना होती है और उसके लिए लगन तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे सफलता हासिल करने से रोक नहीं सकती। आज हम आपको ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, गरीबी के कारण जिसे साइकिल का पंक्चर बनाना पड़ता था, लेकिन उसने यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस ऑफिसर बनने का सपना पूरा किया। 
 

Asianet News Hindi | Published : Jan 2, 2020 9:30 AM IST / Updated: Jan 02 2020, 03:11 PM IST

करियर डेस्क। सफलता मेहनत और लगन से मिलती है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। आज हम आपको ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, गरीबी के कारण जिसे साइकिल का पंक्चर बनाना पड़ता था, लेकिन उसने यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस ऑफिसर बनने का सपना पूरा किया। यह अलग बात है कि इस बात को अब करीब 7 साल गुजर चुके हैं, लेकिन आईएएस अधिकारी वरुण बरनवाल की सफलता की यह कहानी आज भी नवजवानों के लिए प्रेरणा देने वाली है। ऐसे हजारों कैंडिडेट्स जो यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उनके दिलों में संघर्ष की यह कहानी नया जोश भर देगी। 

वरुण बरवनाल महाराष्ट्र के एक छोटे-से शहर बोइसार के रहने वाले हैं। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। यहां तक कि परिवार की मदद के लिए उन्हें एक साइकिल की दुकान में पंक्चर बनाने का काम करना पड़ता था। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर जब साल 2006 में उन्होंने 10वीं में टॉप किया तो उन्होंने यह तय कर लिया कि उन्हें देश की सबसे बड़ी सरकारी सेवा में जाना है। इसे किस्मत की मार ही कहेंगे कि दसवीं की परीक्षा खत्म होने के तीन दिन बाद ही उनके पिता का निधन हो गया था और उनके सामने पढ़ाई छोड़ देने की नौबत आ गई थी, क्योंकि पैसों का कोई जुगाड़ नहीं था। इसके बाद उन्हें लगा कि उनका समय साइकिल का पंक्चर बनाते ही बीत जाएगा।  

जब वरुण इस समस्या में घिरे थे कि आगे की पढ़ाई कैसे जारी रखें, तब उनकी मां और घर के दूसरे लोगों ने उनका हौसला बढ़ाया और पढ़ाई जारी रखने में उनकी मदद करने की बात कही। इस बीच, वह डॉक्टर उनके लिए देवदूत बन कर सामने आया जो उनके पिता का इलाज करता था। उस डॉक्टर ने 11वीं में एडमिशन कराने के लिए उन्हें 10 हजार रुपए दिए और कहा कि तुम पैसे की चिंता मत करो और अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाओ। शुरू में डॉक्टर साहब ने मदद कर दी और फीस भर दी, लेकिन वह हमेशा उनसे यह उम्मीद नहीं कर सकता थे। इसके बाद उनके एक शिक्षक ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए दो साल की फीस भर दी। 

12वीं करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी शुरू कर दी। इसके लिए वे दिन भर पढ़ाई करते और पैसे जुटाने के लिए कुछ स्टूडेंट्स को ट्यूशन भी पढ़ाते। इस बीच, उनकी मां ने भी पैसे का इंतजाम किया और वरुण बरनवाल का दाखिला इंजीनियरिंग में हो गया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने बहुत अच्छे मार्क्स लाए। उनकी आर्थिक मदद एक दोस्त ने भी की। इंजीनियरिंग की परीक्षा में शानदार सफलता मिलने के बाद उनके पास कैंपस सिलेक्शन के मौके आए, पर तब तक उन्होंने सिविल सर्विस में जाने का मन बना लिया था। 

वरुण बरनवाल ने एक जॉब शुरू कर दी थी, साथ में यूपीएससी की सिविल सर्विसेस एग्जाम की तैयारी भी शुरू कर दी। इसमें कई लोगों ने उनकी मदद की। खास तौर पर उनके एक भाई ने उनकी काफी मदद की। खास बात है कि सिविल सेवा परीक्षा में बिना किसी कोचिंग के खुद तैयारी कर वरुण बरनवाल ने 32वीं रैंक हासिल की थी।     

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