कानून दो तरह से होते हैं। विधि का रूप लेने वाले अधिकांश विधेयक सरकारी विधेयक होते हैं। लोकसभा में विधेयक पेश करने का काम मुख्य रूप से कार्यपालिका करता है, (इसीलिए उस विधेयक को सरकारी विधेयक भी कहते हैं) लेकिन उस विधेयक को पारित (Pass) विधायिका (legislature) करता है।
करियर डेस्क. प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के मौके पर पीएम मोदी (PM Modi) ने किसानों को बड़ा तोहफा दिया। मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। पीएम मोदी ने कहा- सरकार तीनों कृषि कानूनों को नेक नीयत के साथ लाई थी, लेकिन यह बात हम किसानों को समझा नहीं पाए इस कारण से इन तीनों कानूनों को वापस ले रहे हैं और संसद सत्र में इसे वापस लाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं संसद में कोई कानून कैसे बनता है। किसी कानून को बनाने की क्या प्रक्रिया है और ये संसद में कैसे पास होते हैं। AsianetHindi ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बात की और जाना की कानून बनाने की प्रक्रिया क्या होती है।
कितने तरह के होते हैं कानून
कानून दो तरह से होते हैं। विधि का रूप लेने वाले अधिकांश विधेयक सरकारी विधेयक होते हैं। लोकसभा में विधेयक पेश करने का काम मुख्य रूप से कार्यपालिका करता है, (इसीलिए उस विधेयक को सरकारी विधेयक भी कहते हैं) लेकिन उस विधेयक को पारित (Pass) विधायिका (legislature) करता है। हालांकि गैर-सरकारी सदस्य भी विधेयक पेश कर सकता है जिसे कि गैर-सरकारी विधेयक कहा जाता है।
कौन बनाता है कानून
भारत में कानून बनाने का काम संसद का होता है और राष्ट्र स्तर पर कानूनों का निर्माण हमारी संसद करती है। राज्य स्तर पर कानूनों का निर्माण राज्य विधायिका करती है विधि निर्माण का कार्य विधेयक प्रस्ताव के द्वारा किया जाता है।
क्या होती है विधेयक लाने की प्रक्रिया
विधेयक या बिल एक ऐसा प्रस्ताव होता है जिसे संसद की विधि बनाने की प्रक्रिया के द्वारा विधि के रूप में रूपांतरित किया जाता है जिसके द्वारा देश के नागरिक शासित होते हैं। किसी भी विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक महीने पहले संसद को इसकी सूचना देनी होती है। संसद के सत्र में विधेयक को सदन के पटल पर विभाग का मंत्री (जिस विभाग का बिल होता है उस विभाग का मंत्री) पेश करता है और विधेयक को पढ़कर सुनता है और इस विधेयक पर भाषण देता है। इस विधेयक के बारे में बताता है व इसके महत्व के बारे में बताता है इसे ही विधेयक का प्रथम वाचन कहा जाता है।
विस्तार से होती है चर्चा
प्रथम वाचन होने के बाद निश्चित दिन द्वितीय वाचन की तिथि पर प्रस्ताव के मूल विषयों पर चर्चा व इन विषयों से होने वाले प्रभाव पर विस्तार से चर्चा होती है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है की क्या यह प्रस्ताव जनता के लिए लागू होने के बाद लाभप्रद होगा और विचार विमर्श करने के बाद निर्णय निकाला जाता है की क्या इस प्रस्ताव को प्रवर समिति को भेज दिया जाए और जनमत जानने के लिए जनता में प्रसारित कर दिया जाए।
ससंद के सदन में चर्चा
सदन के पटल पर जब कोई विधेयक रखा जाता है तो उस पर चर्चा होती है। इस बिल को सदन के जिस पटल में रखा जाता है वहां चर्चा होती है। अगर बिल को पहले राज्यसभा में पेश किया गया है तो वहां चर्चा होगी और बिल को लोकसभा में पेश किया गया है तो बिल पर वहां चर्चा होगी। संसद के एक सदन पर जब बिल पर चर्चा होती है तो इमें सभी दलों के निर्वाचित मेंबर हिस्सा लेते हैं और बिल के फायदे और नुकसान पर विस्तार से चर्चा करते हैं। चर्चा के बाद बिल को पास कराने के लिए वोटिंग होती है। वोटिंग होती है।
दूसरे सदन में विधेयक
जब विधेयक (कानून ड्राफ्ट) एक सदन में पारित हो जाता है तो वह दूसरे सदन में भेजा जाता है। विधेयक को यहां पर भी उन्हीं अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन उसे रद्द कर दे या छ: महीने तक उस पर कोई कार्यवही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो पहले सदन की स्वीकृत न हो तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। दोनों सदनों के उपस्थित सदस्य तथा मत देने वाले सभी सदस्यों के बहुमत से ही विधेयक पारित होता है, क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों से अधिक होती है, इसलिए संयुक्त बैठक ये लोकसभा की इच्छानुसार ही निर्णय होने की सम्भावना होती है ।
राष्ट्रपति की अनुमति
जब कोई विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है हो उस पर राष्ट्रपति को अनुमति लेना आवश्यक है, अन्यथा कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता। जब कोई विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति या तो विधेयक पर अपनी अनुमति दे देते हैं अथवा वे अपने संशोधन सहित विधेयक क्रो संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज देते हैं। परन्तु यदि संसद उसे पुन: पारित कर देती है तो वह पुन: राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है तथा राष्ट्रपति उस विधेयक (कानून ड्राफ्ट) पर अपनी अनुमति देते हैं और वह विधेयक कानून बन जाता है।
कब चलता है सदन
सरकार चाहे तो किसी विधेयक को पहले राज्य सभा या लोक सभा में से किसी में भी पेश कर सकता है। लेकिन किसी भी एक सदन में पारित होने के बाद उसे दूसरे सदन में भी पेश करना होगा। समान्यत संसद 3 सत्रों में काम करता है। बजट सत्र (फरवरी से मई), मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर), शीतकालीन सत्र (नवम्बर से दिसम्बर)। इन्ही सत्रों के दौरान कानून बनाए जाते हैं। सदन तभी चलता है, जब लोकसभा में कम से कम 55 सदस्य उपस्थित हों और राज्यसभा में कम से कम 25 सदस्य उपस्थित हो। इसे कोरम कहा जाता है अगर कोरम पूरा नहीं है तो सदन को स्थगित कर दिया जाता है।
कब लाया जाता है अध्यादेश
सरकार कानून के लिए अध्यादेश भी लेकर आती है। अगर संसद का सत्र नहीं चल रहा होता हौ और किसी कानून की जरूरत पड़ती है तब सरकार अध्यादेश (Ordinance) का सहारा लेते है। लेकिन अध्यादेश की अवधि केवल 6 महीने के लिए होती है इस अवधि से पहले विधेयक को सदन में चर्चा के लिए पेश करना होता है।
क्या थे कृषि कानून और कब हुए थे पास
पहला कृषि कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020। इसके अनुसार किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते थे। दूसरा कृषि कानून - किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 था। तीसरा कानून- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम। इन्ही तीनों नए कृषि कानूनों को 17 सितंबर 2020 को संसद से पास कराया गया था। इसके बाद से लगातार किसान संगठनों की तरफ से विरोध कर इन कानूनों को वापस लेने की मांग की जा रही थी। किसान संगठनों का तर्क था कि इस कानून के जरिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी। सरकार के साथ कई दौर की वार्ता के बाद भी इस पर सहमति नहीं बन पाई। कई किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं के आसपास आंदोलन पर बैठकर इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
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