
नई दिल्ली। कोविड-19 (COVID-19) महामारी के चलते दुनियाभर में 80 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है। इसमें से 25,000 टन से अधिक महासागरों में प्रवेश कर रहा है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में यह रिसर्च प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक अगले 3 से 4 साल में प्लास्टिक का यह मलबा महासागर के किनारे समुद्र तटों पर अपना रास्ता बना लेगा। इसका एक छोटा भाग खुले समुद्र में गिरेगा, और यह घाटियों में जाकर जमा होगा। यह आर्कटिक महासागर में जमा हो सकता है।
चीन में नानजिंग विश्वविद्यालय और अमेरिका के सैन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में टीम ने भूमि स्रोतों से प्लास्टिक मैनेजमेंट पर महामारी के प्रभाव को मापने के लिए एक नए विकसित महासागर प्लास्टिक संख्यात्मक मॉडल का उपयोग किया।
इसके लिए उन्होंने 2020 से लेकर अगस्त 2021 तक के डाटा जुटाए। इसमें पाया गया कि दुनियाभर में ज्यादातर प्लास्टिक कचरा एशिया के अस्पतालों से आया, जिसे जमीन पर फेंका गया था।
फेस शील्ड, ग्लव्स, मास्क बने सबसे बड़ा कारण
रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 (COVID-19) महामारी (pandemic) के चलते सिंगल यूज प्लास्टिक की डिमांड बहुत अधिक बढ़ गई है। इसकी वजह ये है कि पीपीई किट, फेस मास्क, ग्लव्स और फेस शील्ड का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में हो रहा है। दुनियाभर में पहले से ही सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का दबाव है। ऐसे में यह नदियों और समुद्र के लिए एक नई समस्या बन सकता है।
आम लोगों के कचरे से ज्यादा मेडिकल वेस्ट
स्टडी में बताया कि अब देशों को मेडिकल वेस्ट का बेहतर मैनेजमेंट करने की जरूरत है। शोध के सह लेखक सैन डिएगा यूसी के असिस्टेंट प्रोफेसर अमीना शार्टुप ने कहा कि हमें हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि मेडिकल वेस्ट की मात्रा आम लोगों के कचरे की मात्रा से काफी अधिक थी। इसमें से ज्यादातर हिस्सा एशियाई देशों से आया, जबकि यहां से अधिकांश COVID-19 के मामले नहीं आए थे।
मेडिकल वेस्ट का सबसे बड़ा स्रोत वही अस्पताल थे, जो महामारी से पहले ही कचरा प्रबंधन से जूझ रहे थे। अध्ययन में शामिल चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यान्क्सू झांग ने बताया कि प्लास्टिक महासागर के किनारों पर फैलता है और सूरज की रोशनी के साथ, प्लैंकटन द्वारा यह दूषित होता है। फिर यह समुद्र तटों पर उतरता है और डूब जाता है।
अधिकांश वेस्ट नदियों के रास्ते समुद्र में पहुंच रहा :
रिसर्च के मुताबिक प्लास्टिक के कुल डिस्चार्ज का 73 प्रतिशत हिस्सा एशियाई नदियों से होता है। इसमें सबसे अधिक प्लास्टिक वेस्ट शत अल-अरब, सिंधु और यांग्जजी नदियों से आता है, जो पर्शियन खाड़ी, अरब सागर और पूर्वी चीन सागर में गिरती हैं। समुद्र में प्लास्टिक वेस्ट फैलाने के मामले में यूरोपीय नदियों का 11 फीसदी ही हिस्सा है। यह अन्य क्षेत्रों से काफी कम है।
रिसर्चर्स का कहना है कि 80 प्रतिशत प्लास्टिक मलबा जल्द ही आर्टिक सागर में डूब जाएगा और 2025 तक यह एक प्लास्टिक संचय क्षेत्र बन जाएगा।
कठोर वातावरण और जलवायु परिवर्तन के लिहाज से आर्कटिक पहले से ही संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। रिसर्चर्च का कहना है कि इससे बचने के लिए पीपीई किट (PPE KIT) और अन्य प्लास्टिक प्रोडक्ट्स के बारे में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। इसके अलावा बेहतर प्लास्टिक कलेक्शन, ट्रीटमेंट, रिसाइकिलिंग के लिए नए प्रयोग और तकनीक विकसित करनी चाहिए।
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