अटल बिहारी वाजपेयी का गुजरात से था बेहद खास रिश्ता, इस वाकये ने गांधीनगर से चुनाव लड़ने को किया था मजबूर

बात साल 1996 की है। जब अटल जी को गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ना पड़ा था और गुजरात की जनता ने उन पर खूब प्यार बरसाया था। वह भारी अंतर से ये चुनाव जीत गए थे। हांलाकि उन्होंने बाद में ये सीट छोड़ दी थी, क्योंकि उसी दौरान वह अपनी परम्परागत सीट लखनऊ से भी चुनाव लड़ कर जीते थे।

Ujjwal Singh | Published : Nov 29, 2022 10:24 AM IST / Updated: Nov 29 2022, 03:58 PM IST

अहमदाबाद(Gujrat). गुजरात में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां जोरों पर हैं। तमाम राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता लगातार इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए दिन रात लगे हुए हैं। आज हम एक ऐसे वाकये की बात करने जा रहे हैं जो पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और गुजरात की जनता के बीच प्यार को दर्शाता है। बहुत कम ही लोग ये जानते होंगे की अटल बिहारी वाजपेयी एक बार गुजरात से चुनाव भी लड़ चुके हैं, यहां से वे सांसदी का चुनाव जीते भी थे, मगर बाद में उन्होंने सीट छोड़ दी थी।

दरअसल ये बात साल 1996 की है। जब अटल जी को गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ना पड़ा था और गुजरात की जनता ने उन पर खूब प्यार बरसाया था। वह भारी अंतर से ये चुनाव जीत गए थे। हांलाकि उन्होंने बाद में ये सीट छोड़ दी थी, क्योंकि उसी दौरान वह अपनी परम्परागत सीट लखनऊ से भी चुनाव लड़ कर जीते थे। लेकिन यहां ये जानना काफी रोचक होगा कि अटल जी ने ये चुनाव एक बड़ी मजबूरी के चलते लड़ा था।

ये थी वाजपेयी के गांधीनगर से चुनाव लड़ने की वजह 
बात साल 1990 की है जब राम मंदिर आंदोलन के दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकालने का निर्णय लिया था। गुजरात में यात्रा को मिले व्यापक समर्थन के बाद जब 1991 में लोकसभा चुनाव हुए तो लालकृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर संसदीय सीट को चुना। आडवाणी ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। उसके बाद 1996 में लोकसभा चुनाव होने थे, इसी दौरान आडवाणी का नाम हवाला स्कैंडल में आ गया।  बताया जाता है कि लाल कृष्ण आडवाणी ने उस वक्त खुला ऐलान किया कि इस स्कैंडल से उनका कोई लेना-देना नहीं है, ऐसे में जब तक वह खुद को बेदाग साबित नहीं कर देते तब तक वह चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लेंगे। इसलिए जब इस सीट पर कोई BJP को प्रत्याशी नहीं मिला तो आडवाणी ने वाजपेयी से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया।

लखनऊ के बाद गांधीनगर से भी वाजपेयी ने किया नामांकन 
साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट से पर्चा दाखिल किया था। इसी बीच वह अपने राजनीतिक जीवन के सबसे पक्के साथी लालकृष्ण आडवाणी की बात ठुकरा नहीं सके और उनके कहने पर उन्होंने नामांकन के अंतिम दिन गांधीनगर सीट से भी पर्चा दाखिल कर दिया। गांधीनगर की जनता ने उन पर बेशुमार प्यार बरसाया और बड़े अंतर से उन्हें चुनाव में जीत दिलवाई। उस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को तकरीबन 3.24 लाख वोट मिले थे, वहीं उनके प्रतिद्वंदी रहे पोपटलाल पटेल को 1.35 लाख वोट से ही संतोष करना पड़ा था।

बाद में अटल जी ने छोड़ दी गांधीनगर की सीट 
1996 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधीनगर के साथ लखनऊ संसदीय सीट पर भी जीत हासिल की थी। नियमों के मुताबिक उन्हें एक सीट छोड़नी थी। लखनऊ उनकी परंपरागत सीट होने के कारण उन्होंने गांधीनगर की सीट छोड़ दी। जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए और भाजपा के ही प्रत्याशी विजय भाई पटेल चुनाव जीत गए। हालांकि 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए और अपनी परंपरागत सीट से लालकृष्ण आडवाणी ने चुनावी मैदान में उतर कर जीत हासिल की। जिसके बाद वह 2019 तक लगातार सांसद रहे। 2019 में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह वहां से सांसद चुने गए हैं। 

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