राजनीति करने वाले अगर विकास का विजन देखना चाहते हैं तो एक बार लंबी विधानसभा क्षेत्र में आ जाएं। यहां बादल के गांव में आ जाएं। इस इलाके में खजूर के पेड़ नहीं उगते, मगर बादल गांव की हर सड़क के दोनों तरफ कतारों में खजूर के पेड़ खड़े हैं। यह पेड़ यहां उगे नहीं, उगाए गए हैं।
बठिंडा। पंजाब की राजनीति में अजेय योद्धा कहे जाने वाले शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल (Prakash Singh Badal) इस बार भी अपनी परंपरागत विधानसभा सीट लंबी से चुनाव लड़ रहे हैं। ये सीट मुक्तसर जिले में आती है। यहां सीनियर बादल के नाम से चर्चित प्रकाश सिंह बादल बेशक कभी इस सीट से नहीं हारे, लेकिन इस बार उन्हें युवाओं की खुली मुखालफत का सामना करना पड़ रहा है। बादल का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। तो क्या इस बार यह मान लिया जाए कि बादल का सियासी दुर्ग कमजोर हो गया है? इसका जवाब काफी हद तक ‘हां’ में दिया जा सकता है। इस बार बादल को लंबी से चुनौती देने वाला कोई असाधारण सियासी किरदार नहीं है, बल्कि आम आदमी है। युवा पीढ़ी बदलाव की बात कर रही है। उसका कहना है कि लगातार एक ही प्रत्याशी को जिताना ठीक नहीं है। बेहतरी के लिए बदलाव होना चाहिए। आखिर लोकतंत्र भी तो कोई चीज है।
आम आदमी पार्टी ने लंबी सीट से इस बार गुरमीत सिंह खुडियां को टिकट दिया है। इलाके में उनकी हवा दिखती है। कांग्रेस ने इस सीट से युवा चेहरे जगपाल सिंह अबुल खुराना को मौका दिया है। जबकि पहली बार भाजपा भी इस ग्रामीण सीट से अपनी किस्मत आजमा रही है। भाजपा ने यहां से राकेश ढींगरा को टिकट दिया है। सभी दलों के प्रत्याशियों ने इस बार एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है।
बादल गांव विकास का मॉडल
राजनीति करने वाले अगर विकास का विजन देखना चाहते हैं तो एक बार लंबी विधानसभा क्षेत्र में आ जाएं। यहां बादल के गांव में आ जाएं। इस इलाके में खजूर के पेड़ नहीं उगते, मगर बादल गांव की हर सड़क के दोनों तरफ कतारों में खजूर के पेड़ खड़े हैं। यह पेड़ यहां उगे नहीं, उगाए गए हैं। क्योंकि यह क्षेत्र देश के सबसे उम्रदराज राजनेता प्रकाश सिंह बादल का इलाका है। बादल उनका अपना गांव है, जहां वाटर वर्कर्स से लेकर सीवरेज और स्टेडियम से लेकर बड़ा अस्पताल तक सब मौजूद है। सड़कें भी चकाचक। भविष्य में सीवरेज-पेयजल लाइनें बिछाने को सड़कें ना तोड़नी पड़े, इसलिए पूरी प्लानिंग से उनके बीच में इंटरलॉकिंग टाइल्स तक लगाई गई हैं ताकि उन्हें हटाकर पाइप बिछाए जा सकें।
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इतने विकास के बावजूद भी विरोध क्यों?
कायदा तो यह है कि यहां उनका एक भी विरोधी नहीं होना चाहिए। मगर सियासत में विकास के अलावा भी बहुत सारे समीकरण काम करते हैं। इसलिए चुनाव में उतरे प्रकाश सिंह बादल को अपनी सीट पर जीत का सिलसिला बरकरार रखने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। बादल पिछले कई दिनों से बीमार हैं। उन्हें महीनेभर पहले कोरोना भी हो गया था। ऐसे में उनके प्रचार की कमान उनकी पुत्रवधु और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल वर्कर्स के साथ मिलकर संभाले हुए हैं। प्रकाश सिंह बादल का पोता और सुखबीर बादल का बेटा अनंतवीर सिंह बादल भी अपने दादाजी को जीत दिलाने के लिए पहली बार फील्ड में एक्टिव है। हालांकि अनंतवीर सिंह बादल फील्ड में भाषण नहीं देते और लोगों से हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए अपने दादाजी के लिए वोट मांग रहे हैं।
पहला चुनाव 57 वोट से हारने वाले बादल फिर कभी नहीं हारे
लंबी विधानसभा सीट पर प्रकाश सिंह बादल के आने का भी अपना एक इतिहास है। प्रकाश सिंह बादल ने अपना पहला चुनाव अकाली दल के ही टिकट पर साल 1967 में गिदड़बाहा विधानसभा सीट से लड़ा। वह चुनाव बहुत रोचक रहा। तब बादल के सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम रहे हरचरण सिंह बराड़ थे। उस मुकाबले में बादल बराड़ से सिर्फ 57 वोट से हार गए। बादल की अपने सियासी जीवन की यह पहली और अभी तक की आखिरी हार रही। उसके बाद वह 1969 से 1992 तक गिदड़बाहा से विधायक रहे। साल 1992 में अकाली दल ने पंजाब विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर दिया। तब यहां से कांग्रेस के रघुबीर सिंह जीते। हालांकि बाद में कोर्ट ने उस चुनाव को रद्द कर दिया। 1995 में गिदड़बाहा सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें बादल ने अपने भतीजे मनप्रीत बादल को मैदान में उतारा। जबकि कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने रघुबीर सिंह के बेटे दीपक को टिकट दिया। इस चुनाव में मनप्रीत बादल विजयी रहे।
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गिदड़बाहा मनप्रीत को देकर लंबी आए बादल
1997 में प्रकाश सिंह बादल गिदड़बाहा सीट अपने भतीजे मनप्रीत को देकर खुद लंबी विधानसभा सीट पर चले आए। उसके बाद पिछले 25 बरसों से लंबी सीट पर उनका एकछत्र राज है। यहां से बादल को हराना तो दूर, विरोधी दलों के प्रत्याशी उनके नजदीक भी नहीं पहुंच पाते। वह यहां से 20 से 25 हजार वोटों से जीतते रहे हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद यहां बादल के सामने उतरे, मगर जीत नहीं पाए। तब बादल को 66,375 और कैप्टन को 43,605 वोट मिले।
प्रकाश सिंह बादल के सामने ये चुनौतियां
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इस वजह से दौड़ में सबसे आगे
AAP के खुडियां की राह में ये मुश्किलें
AAP की हवा का फायदा
कांग्रेस के अबुल खुराना के सामने चैलेंज
इनका सहारा ही जगा रहा उम्मीद
BJP के ढींगरा की दिक्कतें
इन वजहों से मौका
क्या कहते हैं वोटर
बादल सत्कार योग्य, उनके मुकाबले में कोई नहीं
प्रकाश सिंह बादल साहब सत्कार योग्य हैं। इलाके के एक-एक घर की सड़क पक्की हो चुकी है। घर-घर विकास हुआ है। किसानों को मोटर कनेक्शन, लिफ्ट पंप वगैरह सब बादल की देन है। बेशक बादल प्रचार पर नहीं निकल पा रहे, मगर वह लंबी के लोगों के दिलों में बसते हैं। वह अगर प्रचार ना भी करें तो जीत जाएंगे। प्रकाश सिंह बादल के मुकाबले इस सीट पर कोई आ ही नहीं सकता। - राज सिंह मान, गांव लालबाई
चन्नी सरकार के 111 दिनों के काम के लोग फैन
हम कांग्रेस को चाहते हैं। चन्नी सरकार ने 111 दिन में बेहतरीन काम किया और पंजाब के लोग इस सरकार के फैन हो चुके हैं। उससे पहले बेशक साढ़े 4 साल कैप्टन की अगुवाई में कांग्रेस की ही सरकार रही मगर कैप्टन और बादल मिले हुए थे। हाईकमान को पहले ही कैप्टन को हटाने का फैसला ले लेना चाहिए था। इस बार लंबी में त्रिकोणीय मुकाबला होगा और लोग बादल को हराएंगे। - लखविंदर सिंह, पंचायत मेंबर, गांव लालबाई
बादल ने बहुत काम कराए हैं, वही जीतेंगे
लंबी से इस बार भी बादल ही जीतेंगे। बादल ने इलाके में बहुत काम किया है। लड़कियों की फीसें तक माफ कर दी। इस बार वह बीमार हैं तो कोई बात नहीं। उनकी उम्र भी काफी हो चुकी है लेकिन वह इससे पहले लोगों से मिलते रहते थे।- गुरलाल सिंह, बादल गांव
हवा किसी की भी हो, बादल ही जीतेंगे
हर बार ही चुनाव में सभी की थोड़ी-बहुत हवा होती है, लेकिन आखिर में जीतते बादल ही हैं। इस बार भी बादल ही जीतेंगे। बाकी किसी का कुछ नहीं बनना। - सोहन सिंह, बादल गांव
मंत्री हो या डाकू, सभी लूटते हैं
मैं 18 साल का हूं और इस बार पहली बार वोट डालूंगा। मंत्री हों या डाकू, सभी लूटते हैं। पहले अकाली सत्ता में थे और पिछली बार कांग्रेसी आ गए। सभी सड़कें-नालियां ही बनाते हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं करते। इस बार झाड़ू को देखेंगे। - हिम्मत सिंह, बादल गांव
गरीबों का तो कभी किसी ने सोचा ही नहीं
इन सड़कों का हमने क्या करना? हमारे कौन से ट्रक या ट्राॅलियां चलती हैं। हमारे जैसे गरीबों का कोई नहीं सोचता। न हमारे घर पक्के बनवाएं और न दीवारें बनवाई। इस इलाके के खेतों के चारों तरफ ऊंची-ऊंची बाड़ लगी है। हम पशुओं के लिए चारा तक नहीं ला पाते। हम ये बाड़ हटवाने के लिए शोर भी डाल चुके हैं, लेकिन कोई नहीं सुनता। - चरणजीत कौर, बादल गांव
सरकारों ने हम जैसे गरीबों का कुछ नहीं किया
मेरी 5 बेटियां पढ़ने वाली हैं। मेरा बेटा भी अंधा है। उसका किसी ने कोई इलाज नहीं करवाया। गरीबों की कोई नहीं सुनता। हमने विकास का क्या करना। हमारे लिए तो किसी ने कुछ किया नहीं। गरीब आदमी बिजली, पानी, टूटियां किस-किस का बिल भरे। चन्नी सरकार ने पुराने बिल माफ किए। अब नया आएगा तो ही पता चलेगा। वैसे इस बार आम आदमी की हवा लग रही है। - बृज महारानी, बादल गांव
मैं तो पैसे लेकर ही वोट डालूंगा
इस बार भी इलाके में प्रकाश सिंह बादल की ही हवा है। हमारे परिवार में 3 वोट हैं। बादल साहिब ने हमारा कुछ नहीं करवाया। हर बार मां बोल देती है कि बादल को वोट डालो और हम डाल देते हैं। लेकिन इस बार मैं तो पैसे लेकर ही वोट डालूंगा। खुला बोल रहा हूं। हमारा किसी ने कुछ किया ही नहीं। मैंने दिहाड़ी करके अपना घर खुद बनवाया। कभी कोई मदद नहीं मिली। हमारी सहायता किसी ने नहीं की।- बब्बू, बादल गांव
अकाली दल ने किसानों की पीठ में छुरा घोंपा
सभी को पता है कि अकाली दल ने किस तरह भाजपा के साथ मिलकर किसानों की पीठ में छुरा घोंपा है। विकास के नाम पर भी बिल्डिंग खड़ी कर देने से काम नहीं चलता। इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना पड़ता है। लंबी से इस बार आम आदमी पार्टी बाजी मार जाएगी। - मनवीर सिंह, लंबी
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लंबी सीट : 13 में 8 चुनाव अकाली दल जीता
लंबी सीट पर आज तक कुल 13 चुनाव हुए। इनमें से 5 बार प्रकाश सिंह बादल ही MLA चुने गए। इस सीट पर 13 बार में से कुल 8 बार अकाली दल जीता। 3 बार यहां से कांग्रेस और 2 बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने यहां जीत दर्ज की। प्रकाश सिंह बादल से पहले उनके बड़े भाई गुरदास सिंह बादल अकाली दल के टिकट पर 1977 से 1980 तक इसी सीट से MLA रहे। वर्ष 1997 से पहले गुरनाम सिंह कांग्रेस के टिकट पर लंबी से MLA बने।
कुल वोट – 156334
पुरुष – 82168
महिलाएं – 74166
वोटर टर्नआउट – 133586 – 85.44%
2022
कुल वोट – 165827
पुरुष – 86647
महिलाएं – 79178
थर्ड जैंडर – 2
कुल पोलिंग बूथ – 177