पंजाब चुनाव : कांग्रेस-आप से कितना अलग होगा अकाली दल का मैनिफेस्टो, सस्ती बिजली का दांव या फिर कोई और प्लान?

इस बार के चुनाव में अकाली दल बिना भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मैदान में है। ऐसे में शहरी क्षेत्र में अकाली दल को काफी मुश्किलें हो रही हैं। कहा जा रहा है कि शहरी वोटर्स को प्रभावित करने के लिए भी मैनिफेस्टों में बड़ी चुनावी घोषणाएं हो सकती हैं। 

चंडीगढ़ : पंजाब चुनाव (Punjab Chunav 2022) में इस बार शिरोमणि अकाली दल (बादल) और बसपा एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं। यह गठबंधन आज अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करेगा। चंडीगढ़ में अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) जनता के बताएंगे कि चुनाव जीतने के बाद उनकी पार्टी का विजन क्या होगा। पार्टी सभी वर्गों को साधने वाला मैनिफेस्टो सामने ला सकती है। इस दौरान बहुजन समाज पार्टी के कई नेता भी मौजूद रहेंगे।

कांग्रेस-आप से कितना अलग होगा मैनिफेस्टो
अकाली दल और बसपा का गठबंधन गरीब और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने कई तरह के वादे घोषणा पत्र में ला सकता है। दरअसल कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को बनाया गया है, जो दलित वर्ग से आते हैं। इसी का काट खोजने अब अकाली दल अपने मैनिफेस्टों में इस वर्ग के लिए कई घोषणाएं कर सकती है। बता दें कि पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) पहले ही 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा कर चुकी है। कांग्रेस (Congress) सस्ती बिजली और बिल माफी का दांव खेल चुकी है। अकाली दल के मैनिफेस्टों में भी कुछ ऐसा ही दिखाई देगा या वोटर्स को लुभाने पार्टी का विजन और प्लान बाकी दलों से अलग होगा, इस पर सभी की नजर है।

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इस बार बिन भाजपा मैदान में अकाली दल
इस बार के चुनाव में अकाली दल बिना भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मैदान में है। ऐसे में शहरी क्षेत्र में अकाली दल को काफी मुश्किलें हो रही हैं। सुखबीर सिंह बादल समेत तमाम अकाली नेता SAD को पंथक पार्टी बता रहे हैं ताकि गांवों में सिख वोट बैंक को अपने पाले में लाया जा सके। कहा यह भी जा रहा है कि शहरी वोटर्स को प्रभावित करने के लिए भी मैनिफेस्टों में बड़ी चुनावी घोषणाएं हो सकती हैं। 

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1996 में दोनों पार्टियों ने मिलकर लड़ा था लोकसभा चुनाव
बता दें कि इस बार पंजाब विधानसभा चुनाव में शिअद और बसपा गठबंधन करके लड़ रहे हैं। कुल 117 में से 20 सीटें बसपा को मिली हैं। जबकि बाकी 97 सीटों पर अकाली दल के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इससे पहले दोनों पार्टियों ने मिलकर 1996 में लोकसभा चुनाव लड़ा था और 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। 

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बसपा को 1992 में सबसे ज्यादा वोट मिले थे
पंजाब में दलितों की आबादी करीब 32 प्रतिशत मानी जाती है। कांशीराम ने पंजाब में दलितों को एकजुट करने की कोशिश की थी। इसका परिणाम यह आया कि 1996 में उन्हें जीत मिली। उस वक्त भी पार्टी का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल के साथ था। लेकिन 1997 में बसपा को 7.5 प्रतिशत मत मिले, 2017 में तो पार्टी का ग्राफ नीचे जाते हुए मात्र 1.5 प्रतिशत पर टिक गया। बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन 1992 में रहा। तब पार्टी को 16 प्रतिशत मत मिले थे। लेकिन, इसके बाद दलितों का बसपा से मोह भंग होता गया। हालांकि कांशीराम ने बहुत प्रयास किए। इसके बाद भी पंजाब के मजहबी सिख वह सिख जो वाल्मीकि है, वह बसपा से दूर ही रहे। 

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