पंजाब चुनाव: कांग्रेस खुद को मान रही सत्ता से दूर, अब आगे की रणनीति पर किया जा रहा मंथन, पढ़ें Inside Story

कांग्रेस पार्टी के हाइलेवल सूत्रों के मुताबिक, पंजाब में इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटों का आंकड़े पार नहीं कर पाने की आशंका है। हालांकि, इन नेताओं की राय पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सहमत नहीं है। 

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। पंजाब में विधानसभा चुनाव का मतदान हो गया है। नतीजों के दिन नजदीक आने लगे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने सत्ता की जोड़तोड़ की तैयारी शुरू कर दी है। पंजाब कांग्रेस का मानना है कि शायद सत्ता की कुर्सी उनके हाथ से निकल चुकी है। पार्टी ने एक सर्वे अपने स्तर पर कराया। इसमें पार्टी को यह अंदाजा हो गया है। चुनाव के बाद के आंतरिक सर्वे और पार्टी के वार रूम द्वारा सीट-दर-सीट जो आकलन किया, इसके आधार पर कांग्रेस नेताओं का दावा है कि उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया है कि वह परिणामों में कहां खड़े हैं। 

पार्टी के हाइलेवल सूत्रों के मुताबिक, इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटों का आंकड़े पार नहीं कर पाने की आशंका है। हालांकि, इन नेताओं की राय पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सहमत नहीं है। उन्हें लगता है कि पार्टी 50 का आंकड़ा छू लेगी। पांच प्लस या पांच माइनस हो सकती है। साथ ही यह भी वह मान कर चल रहे हैं कि मतदान से दो से तीन दिन पहले का राजनीतिक घटनाक्रम चौंकाने वाला हो सकता है। 

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कांग्रेस को विवाद बढ़ने का अंदेशा 
कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी के भीतर कलह बढ़ सकती है। अगर पार्टी बहुमत से दूर रहती है तो विवाद बढ़ने के आसार और ज्यादा हो जाएंगे। पार्टी के भीतर राज्य नेतृत्व बदलने की मांग भी जोर पकड़ सकती है। क्योंकि एक पक्ष प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को हटाने पर अड़ा हुआ है, जबकि दूसरा पक्ष चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम पद पर देखना नहीं चाह रहा है। इस वजह से पार्टी के भीतर विवाद पैदा हो सकता है। 

तो सिद्धू बड़ा गेम खेलने के इंतजार में...
माझा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा- "परिणाम कुछ भी हो, सिद्धू एक बार फिर बड़ा गेम खेलने के लिए उचित वक्त का इंतजार कर रहे हैं।’ सिद्धू के करीबी सूत्रों का कहना है कि वह प्रदेश कांग्रेस की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं हैं। सिद्धू बिना किसी का नाम लिए बार-बार कहते रहे हैं कि ‘कांग्रेस को सिर्फ कांग्रेस ही हरा सकती है।'

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हिंदू और सिख चेहरे ने भी परेशानी बढ़ाई 
चुनाव के बीच में ही पार्टी के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि वह इसलिए सीएम नहीं बनाए गए, क्योंकि हिंदू हैं। मतदान के बाद भी कांग्रेस में यह विवाद जस का तस है। अभी भी पार्टी को इस पर निर्णय लेना है कि कैसे सीएम चेहरा और प्रदेशाध्यक्ष चेहरे में हिंदू और सिख को प्रतिनिधित्व दिया जाए। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद सुनील जाखड़ सक्रिय राजनीति छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इस तरह से पार्टी के पास अब ऐसे चेहरे भी नहीं हैं, जिस पर पार्टी बड़ा दांव खेल सके। 

कांग्रेस का फरमान- सिद्धू के खिलाफ बयानबाजी ना करें 
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने विधायकों से आग्रह किया है कि वह सिद्धू को निशाना ना बनाएं। पिछले कुछ दिनों से सांसद गुरजीत औजला ने सिद्धू के खिलाफ बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रदेशाध्यक्ष के बोलने का तरीका मतदाताओं को अच्छा नहीं लगता। कई अन्य नेता भी गाहे-बगाहे सिद्धू के खिलाफ बोलते रहे हैं। पार्टी रणनीतिकारों की कोशिश है कि इस स्थिति को टाला जाए। कम से कम चुनाव परिणाम सामने ना आने तक बयानबाजी से बचा जाए। 

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नतीजों से निपटने की तैयारी में कांग्रेस 
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आएं या खिलाफ जाएं, लेकिन पार्टी के भीतर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए। इसे टालने की कोशिश अभी से शुरू हो गई है। पिछले दिनों चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता में एक बैठक कर विवाद को खत्म करने की कोशिश की गई। हालांकि इस बैठक में नवजोत सिंह सिद्धू शामिल नहीं हुए। इसके बाद भी बैठक में यह जोर दिया गया कि चुनाव परिणाम कुछ भी आए। पार्टी के भीतर आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाए जाएंगे। इसके साथ ही यह भी चर्चा हुई कि यदि पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो सरकार बनाने की संभवानाएं क्या-क्या हो सकती हैं? आप और अकाली दल समेत भाजपा के प्रदर्शन पर भी बैठक में चर्चा की गई।

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