मदन मोहन मित्तल ने कहा कि पार्टी उनकी अनदेखी कर रही है। दो बार टिकट कट चुका है। इसलिए अब पार्टी छोड़ने के सिवाय उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं रह गया है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि पार्टी छोड़ते हुए उन्हें तकलीफ हो रही है।
मनोज ठाकुर, आनंदपुर साहिब। भाजपा के खांटी नेता मदन मोहन मित्तल ने इस बार आनंदपुर साहिब विधानसभा सीट के सारे सियासी समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया है। मित्तल ने हाल ही में शिरोमणि अकाली दल को जॉइन किया है, जिसके बाद से यहां का सियासी रुख भी बदला नजर आ रहा है। मित्तल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। गठबंधन की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और यहां तीन बार के विधायक चुने गए हैं। लेकिन, लगातार दो बार टिकट कटने से मित्तल भाजपा से नाराज चल रहे थे। इस बार जब उनका टिकट कटा तो उन्होंने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया।
मित्तल ने कहा कि पार्टी उनकी अनदेखी कर रही है। दो बार टिकट कट चुका है। इसलिए अब पार्टी छोड़ने के सिवाय उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं रह गया है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि पार्टी छोड़ते हुए उन्हें तकलीफ हो रही है, लेकिन अकाली दल में जाते हुए उन्हें थोड़ी राहत भी मिल रही है। क्योंकि अकाली दल सरकार में ही वह 2012 से 17 तक मंत्री रहे हैं। पूर्व मंत्री अनिल जोशी के अलावा मदन मोहन मित्तल भाजपा के दूसरे बडे़ नेता हैं, जो अकाली दल में शामिल हुए हैं।
बड़े नेताओं में शामिल रहे मदन मोहन मित्तल
भाजपा का वोटर्स मित्तल के जाने को बड़ा झटका मान रहा है। लोगों का कहना है कि बलरामजी दास टंडन के बाद मदन मोहन मित्तल ही ऐसे नेता हैं, जिन्होंने पंजाब में पार्टी को खड़ा किया है। भाजपा के एक सीनियर नेता ने बताया कि आतंकवाद के दिनों में जब भाजपा की पंजाब में कोई बात नहीं करता था, तब मदन मोहन मित्तल ने भाजपा की कमान संभाली। वह लंबे समय तक पार्टी के पंजाब इकाई के अध्यक्ष भी रहे। 1997 में जब अकाली दल के साथ भाजपा सत्ता में आई तो उन्हें फूड सप्लाई मंत्री बनाया गया। 2002 में मित्तल चुनाव हार गए। 2007 में भाजपा ने अकाली दल के साथ मिलकर सरकार बनाई, तब भी मित्तल को मंत्री बनाया था। 2012 में भी उन्हें मंत्री बनाया गया। वह अकाली-भाजपा सरकार में प्रकाश सिंह बादल के बाद दूसरे बडे़ नेता थे।
बड़ा हिंदू चेहरा अकाली दल में चला गया
मित्तल के अकाली दल में जाने से भाजपा का एक बड़ा हिंदू चेहरा माने जाते रहे हैं। आनंदपुर साहब से लेकर रोपड़ तक हिंदू वोटर्स में उनकी अच्छी खासी पैठ है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि उनकी जितनी हिंदू मानते हैं, उतने ही सिख भी मानते हैं। इनके जाने से निश्चित ही भाजपा को खासा धक्का लगा है। भाजपा इस वक्त पंजाब में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगी है, लेकिन यदि इस तरह से बड़े नेता भाजपा के चले जाते हैं तो पार्टी को दिक्कत आ सकती है।
राणा केपी से मित्रता भी पड़ी भारी
मदन मोहन मित्तल और कांग्रेस के राणा केपी की अच्छी खासी मित्रता है। उन पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि वह सियासी तौर पर राणा केपी की मदद करते हैं। पिछली बार जब भाजपा ने इन्हें टिकट नहीं दिया था तो भाजपा उम्मीदवार डॉक्टर परमिंदर सिंह 37 हजार को वोट मिले, लेकिन राणा केपी को 61 हजार वोट मिले थे। यहां के स्थानीय पत्रकार दीपक शर्मा ने बताया कि इसके पीछे वजह यह बताई कि मित्तल की वजह से भाजपा उम्मीदवार को वोट नहीं मिले। इस वजह से पार्टी के भीतर उनकी अनदेखी हो रही थी। यह भी एक कारण रहा कि वह पार्टी में अलग थलग पड़ते चले गए।
बेटे ने बसपा जॉइन की
इधर, मित्तल के बेटे अरविंद मित्तल ने बसपा जॉइन की है। बसपा इस चुनाव में अकाली दल की सहयोगी पार्टी है। अब जिस तरह से मित्तल परिवार ने सियासी फेरबदल किया है। इससे यह भी माना जा रहा है कि इस सीट पर कोई बड़ा फेरबदल हो रहा है। दीपक शर्मा ने बताया कि अकाली बसपा गठबंधन की कोशिश है कि इस सीट पर जबरदस्त प्रदर्शन किया जाए। इसी को लेकर यह सियासी दांव पेंच खेले जा रहे हैं।
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