अमेठी से चुनाव लड़ेंगी मुलायम की 'छोटी बहू' अपर्णा? रायबरेली-सुलतानपुर पर होगा ये असर

मलिक मोहम्मद जायसी शोध संस्थान में आयोजित जनसभा के दौरान अपर्णा यादव ने इस बात के संकेत मंच से देते हुए कहा था नेताजी व अखिलेश भैया ने कहा तो वे तिलोई के लोगों की सेवा करने में स्वयं को समर्पित कर देंगी। अगर यह फैसला अमलीजामा पहन गया तो अमेठी (Amethi) समेत रायबरेली (Raibariely), सुलतानपुर (Sultanpur) जिलों में विधानसभा सीटों पर अपर्णा का इफेक्ट पड़ सकता है। 

सुलतानपुर: उत्तर प्रदेश के गौरीगंज जिला मुख्यालय से पंद्रह किमी दूर जायस कस्बे में महान कवि मलिक मोहम्मद जायसी की जन्मस्थली है। यह इलाका तिलोई विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। रविवार को मुलायम परिवार (Mulayam Family) की छोटी बहू अपर्णा यादव (Aparna Yadav) यहां अपनी सियासी जमीन तलाशने पहुंची थी। मलिक मोहम्मद जायसी शोध संस्थान में आयोजित जनसभा के दौरान उन्होंने इस बात के संकेत मंच से देते हुए कहा था नेताजी व अखिलेश भैया ने कहा तो वे तिलोई के लोगों की सेवा करने में स्वयं को समर्पित कर देंगी। अगर यह फैसला अमलीजामा पहन गया तो अमेठी (Amethi) समेत रायबरेली (Raibariely), सुलतानपुर (Sultanpur) जिलों में विधानसभा सीटों पर अपर्णा का इफेक्ट पड़ सकता है। पेश है एक रिपोर्ट...


पिछले चार चुनाव में तिलोई सीट पर एक बार जीती सपा 

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तिलोई विधानसभा सीट पहले रायबरेली जिले में आती थी बाद में इसे अमेठी जिले का सृजन होने पर इसमें शामिल कर दिया गया। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर 3 अगस्त 2021 की सूचना के अनुसार 186062 पुरुष मतदाता और 164856 महिला मतदाता के साथ-साथ 26 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस प्रकार इस विधानसभा में कुल 350944 मतदाता मौजूद है। पिछले चार चुनाव पर नजर डालें तो जिसमें से एक बार समाजवादी पार्टी और एक बार कांग्रेस पार्टी तथा दो बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे हैं। इसी पर वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के विधायक मयंकेश्वर शरण सिंह मौजूद हैं। वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा बरकरार है।

कुछ चुनाव से मौजूदा विधायक की मजबूत है ग्रिप

बता दें कि 1967 में कांग्रेस के वी. नकवी इस सीट पर पहले विधायक बने। 1969 जन संघ के मोहन सिंह विजयी हुए। इसके बाद 1974 और 1977 में मोहन सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचे और लगातार तीन बार विधायक बने। वहीं 1980, 1985, 1989 और 1991 में हाजी वसीम लगातार चार बार कांग्रेस से विधायक बने। 1993 में मयंकेश्वर शरन सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की और कांग्रेस के विजय रथ को रोककर भाजपा का खाता खोला। 1996 में सपा के मो. मुस्लिम यहां से विधायक चुने गए। 2002 में मयंकेश्वर शरन सिंह दोबारा भाजपा से विधायक बने और 2007 में मयंकेश्वर शरन सिंह ने पाला बदला और सपा के साइकिल पर विधानसभा पहुंचे। 2012 में कांग्रेस के टिकट पर मो. मुस्लिम विधायक बने फिर 2017 में मयंकेश्वर शरण सिंह ने फिर भाजपा का दामन थामा और इस सीट पर कमल खिलाया।

अपर्णा यादव स्मृति ईरानी को चुनौती देने में हैं सक्षम 

वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र विक्रम सिंह ने खास बातचीत में कहा कि मुलायम परिवार की बहू होने के बावजूद अपर्णा यादव अभी तक बीजेपी की फालोवर मानी जाती रही हैं। लेकिन जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं उनके प्रत्याशी होने का उसका लाभ पूरी तरीके से सपा को मिलेगा। क्योंकि वो एक शिक्षित और सभ्य महिला हैं और काफी जागरुक हैं। अराजनैतिक होने के बावजूद लगातार वो एनजीओ के कार्यक्रमों में सुलतानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़ जिलों में शिरकत करती रही हैं। जिसकी वजह से यहां के मध्य वर्गीय तबके से उनकी सीधी कनेक्टिविटी है। उन्होंने कहा इसका नुकसान कांग्रेस को होने जा रहा इसलिए कि कांग्रेस ने अभी तक स्थानीय कोई नेता नही डेवलप किया है जो की स्मृति को खुले तौर पर चुनौती दे सके। इस वैक्यूम का फायदा सपा को निश्चित रुप से मिलेगा। वहीं उन्होंने यह भी कहा है कि अपर्णा यादव स्मृति ईरानी को चुनौती देने में सक्षम हैं। 

प्रदेश में अखिलेश यादव के नाम की चल रही है एक लहर

सुलतानपुर सीट से सपा के पूर्व विधायक अनूप संडा ने खास बातचीत में कहा कि पूरे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के कार्यकाल में जो विकास के कार्य हुए थे। और पिछले पांच वर्षों में भारतीय जनता पार्टी के जन विरोधी नीतियो के खिलाफ संघर्ष किया है। इससे पूरे प्रदेश में अखिलेश यादव के नाम की एक लहर चल रही है। ऐसी स्थिति में प्रत्याशी कौन कहां से लड़ता है यह कम महत्वपूर्ण है मेरा ये मानना है उत्तर प्रदेश की जनता भारतीय जनता पार्टी की सरकार की असफलताओ से, उसके लूट-झूठ और फूट के एजेंडे से बुरी तरह से नाराज है।

कोविड के दौर में दिखाई नही पड़े अखिलेश यादव, कांग्रेस लड़ती रही

वरिष्ठ कांग्रेस नेता व फिल्म सेंसर बोर्ड के पूर्व सदस्य विजय श्रीवास्तव ने खास बातचीत में कहा कि सपा का अमेठी-रायबरेली सुलतानपुर में कोई जनाधार नही बढ़ने वाला है। अभी कोविड का दौर था अखिलेश यादव कहीं दिखाई नही पड़े कांग्रेस लड़ती रही। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अमेठी में गैस और किट भिजवाया। सपा-बसपा तब कहीं नही थे यह दोनो घर बैठकर इलेक्शन का इंतजार कर रहे थे। उनके आने से कोई असर नही पड़ेगा, भाजपा का वोट अलग है सपा का अलग है कांग्रेस का अलग है। क्षेत्रीय पार्टियो ने पूरे देश कांग्रेस का नुकसान किया है। कांग्रेस का वोट ही क्षेत्रीय पार्टियो में गया है। और कांग्रेस हर जाति धर्म के लोगों को साथ लेकर चली है। 

गौरीगंज सीट पर मोदी लहर में भी रहा सपा का कब्जा

उधर गौरीगंज विधानसभा सीट से 2012 और 2017 की मोदी लहर में राकेश सिंह सपा के टिकट पर जीत दर्ज करा चुके हैं इस बार उनकी हैट्रिक चांस है। फिलवक्त वो मजबूत स्थिति में भी हैं। गौरीगंज विधानसभा सीट यहां कांग्रेस-भाजपा के सिर पर अदल-बदल कर जीत का ताज बंधता रहा। बसपा केवल एक चुनाव ही जीत सकी। वहीं अमेठी विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर कांग्रेस की रानी अमीता सिंह को शिकस्त दिया था। 2017 में गायत्री रनर थे। वरिष्ठ पत्रकार आलोक श्रीवास्तव बताते हैं कि 2022 में सपा अगर गायत्री प्रजापति की पत्नी को मैदान में उतारती है तो सिम्पैथी में वो चुनाव जीत सकती हैं। जगदीशपुर सुरक्षित सीट से सबसे अधिक जीत कांग्रेस के नाम रही। सपा केवल एकबार 1993 में यहां से जीत सकी है, जबकि 1996, 2002 और 2012 में वो रनर रही। 2017 में बीजेपी के सुरेश पासी यहां से जीतकर मंत्री बने लेकिन इस बार उनकी राह आसान नही है। ऐसे में अगर अपर्णा यादव चुनावी मैदान में उतरती हैं तो यहां की अन्य सीटों पर भी असर पड़ेगा। 

चार चुनाव में सुलतानपुर में मजबूत रही सपा

बात अगर सुलतानपुर जिले की पांच विधानसभा सीटों सुलतानपुर, जयसिंहपुर (सदर), कादीपुर सुरक्षित, लंभुआ और इसौली सीट की किया जाय तो 2012 में पांच की पांचों सीट सपा की झोली में गई थी। मोदी लहर में पांच में से जहां चार सीट बीजेपी को मिली वहीं इसौली सीट पर सपा के अबरार अहमद दुबारा चुनाव जीते।
2007 में भी इसौली और सुलतानपुर पर सपा तो अन्य तीन सीट पर बीएसपी का कब्जा था, बीजेपी का तो खाता ही नही खुल सका था। 2002 में सपा को इसौली और चांदा, बसपा को जयसिंहपुर और कादीपुर सीट तो बीजेपी को सुलतानपुर सीट मिली थी।

रायबरेली में कुछ ऐसा रहा सपा का प्रदर्शन

रायबरेली में वर्ष 2007 में कांग्रेस, वर्ष 2012 में सपा तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे अधिक सीटें हासिल करने में महारथ हासिल की। 2017 में सपा को यहां ऊंचाहार सीट ही मिल सकी थी। हालांकि 2002 के चुनाव में सपा को दो सीटें मिली थीं।

स्मृति ईरानी के बाद अमेठी में सियासी पारी खेलने उतरेंगी अपर्णा यादव

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