पवन कल्याण-ये नाम नहीं, एक ब्रांड है: पढ़ें पावर स्टार से डिप्टी सीएम तक का सफर

तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार पवन कल्याण का राजनीतिक सफ़र उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. प्रजा राज्यम से जनसेना तक और अब डिप्टी सीएम बनने तक, उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया है.

Asianetnews Hindi Stories | Published : Sep 2, 2024 5:36 AM IST

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पवन कल्याण... ये नाम नहीं, एक ब्रांड है. मेगा फैन्स के लिए ये तारक मंत्र है. जनसैनिकों का नारा है. सिर्फ़ फिल्मों में ही नहीं, राजनीति में भी ये नाम गूंजता है. 

अपनी एक्टिंग से तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में धूम मचाने वाले पवन कल्याण आज राजनीति में एक 'पावरफुल' नेता बन चुके हैं. फैन्स उन्हें पवनन्ना तो नेता पवन सर कहकर प्यार से बुलाते हैं. ये उनके प्रति फैन्स के प्यार को दर्शाता है.

तेलुगु लोगों के चहेते एक्टर, नेता पवन कल्याण का जन्मदिन आज (सोमवार, 2 सितंबर, 2024) है. इस मौके पर न सिर्फ़ उनके फैन्स और जनसैनिक बल्कि सभी तेलुगु लोग उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं. उनके जन्मदिन पर आइए नज़र डालते हैं उनके अब तक के राजनीतिक सफ़र पर.

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अपने भाई चिरंजीवी के साथ प्रजा राज्यम पार्टी के ज़रिए राजनीति में कदम रखने वाले पवन कल्याण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपनी खुद की पार्टी जनसेना की स्थापना से लेकर खुद को भी न जिता पाने की स्थिति से आज उस मुकाम तक पहुँचने तक, जहाँ वो खुद के साथ-साथ बाकी उम्मीदवारों को भी जिताने में सक्षम हैं, उनका राजनीतिक सफ़र काफ़ी दिलचस्प रहा है. 

प्रजा राज्यम से लेकर डिप्टी सीएम बनने तक पवन कल्याण के सफ़र में कई उतार-चढ़ाव, कई अपमान और कुछ मीठी यादें भी जुड़ी हैं. आज वो डिप्टी सीएम के रूप में अपना पहला जन्मदिन मना रहे हैं. ये दिन न सिर्फ़ उनके लिए बल्कि उनके फैन्स और जनसैनिकों के लिए भी बेहद ख़ास है.   

हालांकि, राजनीति में ये मुकाम उन्हें आसानी से हासिल नहीं हुआ. भाई के साथ राजनीति में कदम रखने के बाद अपनी पार्टी बनाना, अपमान सहना, विरोधियों से लड़ना, राजनीतिक रणनीतियाँ बनाना, दोस्तों को करीब लाना, चुनाव के समय खुद प्रचार करना और चुनाव प्रबंधन को बखूबी संभालना - ये सब करते हुए एक दशक से ज़्यादा समय तक अथक प्रयास के बाद ही पवन कल्याण डिप्टी सीएम के पद तक पहुँच पाए हैं.

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प्रजा राज्यम से जनसेना तक का सफ़र : 

पवन कल्याण के जन्मदिन से कुछ समय पहले ही 26 अगस्त 2008 को उनके भाई चिरंजीवी ने राजनीति में कदम रखा था. तिरुपति में एक विशाल रैली के साथ उन्होंने प्रजा राज्यम पार्टी की स्थापना की. इस दौरान अपने भाई का साथ देने के लिए पवन कल्याण ने भी राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने प्रजा राज्यम पार्टी में युवा शाखा के अध्यक्ष के रूप में काम किया. यहीं से शुरू हुआ उनका राजनीतिक सफ़र. 

2009 में हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में काफ़ी उम्मीदों के साथ मैदान में उतरी प्रजा राज्यम पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार से निराश होकर चिरंजीवी ने राजनीति से दूरी बना ली... उन्होंने प्रजा राज्यम पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और वापस फिल्मों में लौट गए. 

लेकिन पवन कल्याण ज़िद्दी हैं... कहा जाता है कि वो जब तक अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते, तब तक पीछे नहीं हटते. और ये बात उन्होंने राजनीति में साबित भी कर दिखाई. भाई के पीछे हटने के बावजूद पवन कल्याण ने राजनीति में अपना सफ़र जारी रखा. 2014 में उन्होंने जनसेना पार्टी की स्थापना की और एक नए अध्याय की शुरुआत की.

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जनसेना की स्थापना से लेकर डिप्टी सीएम बनने तक : 

आंध्र प्रदेश के विभाजन के समय पवन कल्याण ने जनसेना पार्टी की स्थापना की. अपने भाई चिरंजीवी की तरह पार्टी बनाने के तुरंत बाद चुनाव में उतरने के बजाय उन्होंने सोच-समझकर कदम रखा. 2014 के चुनाव में उन्होंने अपनी पार्टी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा लेकिन टीडीपी को अपना पूरा समर्थन दिया. 

इस चुनाव में टीडीपी सत्ता में आई. लेकिन पवन कल्याण ने कोई पद नहीं लिया और पार्टी को मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया. नेताओं और कार्यकर्ताओं को तैयार करने के बाद जनसेना पार्टी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गई.  

2019 के चुनाव में जनसेना पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा. इस चुनाव में टीडीपी और जनसेना के वोट बँट गए जिसका फ़ायदा वाईएसआरसीपी को मिला. जनसेना पार्टी को सिर्फ़ एक सीट पर जीत मिली... पवन कल्याण खुद दोनों सीटों से हार गए जहाँ से उन्होंने चुनाव लड़ा था. इसके बाद कहा जाने लगा कि अब उनका राजनीतिक करियर ख़त्म हो गया है... वो भी अपने भाई चिरंजीवी की तरह पार्टी बंद कर देंगे. 

लेकिन इस बार भी पवन कल्याण ने हार नहीं मानी. तमाम अपमान और उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने जनसेना पार्टी को आगे बढ़ाया. वाईएसआरसीपी के पाँच साल के शासनकाल में जनसेना एक मज़बूत ताकत बनकर उभरी.

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2024 के चुनाव को पवन कल्याण ने काफ़ी गंभीरता से लिया. पिछले चुनाव के अनुभव को ध्यान में रखते हुए उन्होंने टीडीपी और जनसेना पार्टी को साथ लाने की पहल की... उन्होंने इन दोनों पार्टियों को NDA में शामिल करवाया. टीडीपी, जनसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन बनाने में पवन कल्याण ने अहम भूमिका निभाई. 

उन्होंने अपनी सीटें कम कर दीं लेकिन गठबंधन को टूटने नहीं दिया. तीनों पार्टियों के गठबंधन का असर चुनाव परिणामों में साफ़ दिखाई दिया. 175 में से 164 सीटें जीतकर गठबंधन ने सरकार बनाई.

वाईएसआरसीपी नेताओं ने कहा था कि वो पवन कल्याण को विधानसभा के दरवाज़े तक नहीं छूने देंगे. पवन कल्याण ने उन्हें शब्दों से नहीं बल्कि अपनी जीत से जवाब दिया. उन्होंने जिन सीटों से चुनाव लड़ा, उन सभी में जीत हासिल की और 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया. पवन कल्याण ने राजनीति में एक दुर्लभ रिकॉर्ड अपने नाम किया. 

गठबंधन की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले पवन कल्याण को सरकार में भी अहम ज़िम्मेदारी मिली. सीएम चंद्रबाबू नायडू के बाद उन्हें ही ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई... पवन कल्याण ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 

इस तरह विरोधियों के तानों, 'राजनीति उनके बस की बात नहीं' का करारा जवाब देते हुए पावर स्टार, उप मुख्यमंत्री बन गए. डिप्टी सीएम के तौर पर ये उनका पहला जन्मदिन है... इसलिए तेलुगु लोग उन्हें 'हैप्पी बर्थडे डिप्टी सीएम साब' कहकर बधाई दे रहे हैं.

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