Chhath Puja 2022: बहुत खास हैं सूर्यदेव के ये 5 मंदिर, कोई है हजार साल पुराना तो विश्व धरोहर में शामिल

उज्जैन. ज्योतिष और धर्म ग्रथों में सूर्यदेव का बहुत ही विशेष महत्व बताया गया है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में सूर्यदेव की पूजा की जा रही है। सूर्यदेव पंचदेवों में से एक हैं। हमारे देश में सूर्यदेव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं, इनमें से कुछ तो विश्व धरोहर हैं। इनसे जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं भी इन्हें खास बनाती हैं। छठ पर्व (Chhath Puja 2022) के मौके पर हम आपको कुछ ऐसे ही सूर्य मंदिरों के बारे में बता रहे हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व है। आगे जानिए इन मंदिरों के बारे में…  
 

Manish Meharele | Published : Oct 30, 2022 2:02 AM IST

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Chhath Puja 2022: बहुत खास हैं सूर्यदेव के ये 5 मंदिर, कोई है हजार साल पुराना तो विश्व धरोहर में शामिल

ये मंदिर मध्य प्रदेश के उन्नाव में स्थित है। इसे बालाजी सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा मारूछ ने कई हजार साल पहले करवाया था। इस मंदिर के नजदीक ही पहुज नदी बहती है। जिसके बारे में कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति उसमें डुबकी लगा ले, उसका हर तरह का त्वचा रोग सही हो जाता है। इस मंदिर में दर्शनों के लिए रोज भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
 

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ये मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित है। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी में कलिंगा वंश के राजा देवेंद्र वर्मा ने करवाया था। यहां स्थित सूर्यदेव की प्रतिमा एक ऊंचे ग्रेनाइट के टुकड़े पर बनाई गई है। सूर्य की किरण साल में दो बार इस प्रतिमा के पैर छूती है। यह दुर्लभ घटना मार्च में होती है जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर बढ़ता है और फिर अक्टूबर में जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ता है।
 

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गुजरात के मेहसाणा जिले में यह सूर्य मंदिर पुष्पावती नदी के किनारे सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में बनवाया था। इसे इस तरह बनाया गया कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूरज की किरणें जरूर पड़ती हैं। जब यह बना था तो इस मंदिर के परिसर को तीन भागों में बांटा गया- गुढ़ा मंडप (धर्मस्थल), सभा मंडाप (सभा भवन) और कुंड (जलाशय)। मंदिर का सभा मंडप 52 स्तंभों पर खड़ा है, जो एक वर्ष में 52 सप्ताह दर्शाता है। मंदिर के चारों तरफ देवी-देवताओं और अप्सराओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। 
 

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सूर्यदेव का सबसे प्राचीन मंदिर ओडिशा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर को माना जाता है। लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थर से 1236– 1264 ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गए इस मंदिर की पूरी दुनिया में चर्चा होती है। ये मंदिर विश्व धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। इस मंदिर की वास्तु कला इसे और भी खास बनाती है।

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मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित ये सूर्य मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर की तर्ज पर ही बनाया गया है। ग्वालियर में ही लोकप्रिय शनि मंदिर से कुछ ही दूरी पर यह स्थित है। हालांकि इसका इतिहास अधिक पुराना नहीं है, लेकिन अपनी खास वास्तु शैली के कारण ये लोगों को आकर्षित जरूर करता है। उल्टे कमल की शैली में बनाए गए इस मंदिर को भी रथ पर बैठे सूर्य के आकार में ही बनाया गया है। कोणार्क की ही तरह इस सूर्यमंदिर में भी भगवान सूर्य को सप्ताह के सात दिनों के प्रतीक सात घोड़ों पर सवार हैं।


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