गांव में पीने को पानी भी नहीं था; गरीब के बेटे ने दिन रात की मेहनत, ऐसे IAS अफसर बन रचा इतिहास
राजस्थान. देश में पिछड़े इलाके में भी ऐसा टैलेंट बसता है जिसे लोग सोच भी नहीं सकते। यहां सुविधाओं के अभाव में भी लोग देश का बड़ा अधिकारी बनने का सपना संजो लेते हैं। ऐसे ही राजस्थान के एक पिछड़े इलाके से एक शख्स ने काबिलियत और एक के बाद एक चुनौतियों को पार इतिहास रच दिया। ये कहानी है युवा आईएएस राजेंद्र पैंसिया की जिन्होंने बिना रुके, बिना थके, एक के बाद एक सफलता हासिल की। टीचर, एसडीएम और बी.डी.ओ. भी रह चुके हैं राजेंद्र की सफलता के सफर की शानदार कहानी हर स्टूडेंट को जाननी चाहिए........
Asianet News Hindi | Published : Feb 19, 2020 5:22 AM IST / Updated: Feb 19 2020, 10:57 AM IST
राजस्थान में पाकिस्तानी सीमा के पास बसा एक छोटा सा कस्बा श्रीकरणपुर। इसी गांव के रहने वाले हैं राजेंद्र जिन्होंने बचपन से ही पढ़ाई और अफसर बनने के सपने देखना शुरू कर दिया था। राजेंद्र बताते हैं कि मैं जब किसी सरकारी कर्मचारी को देखता तो यह सोचता कि हे ईश्वर! मुझे भी पटवारी, ग्राम सचिव, क्लर्क, अध्यापक आदि बना दें।
मैं कक्षा में हमेशा औसत दर्जे का रहा और कभी सपने में भी नहीं सोचा कि यह मुकाम मेरे लिए बना है। मैंने बी. कॉम. किया तो मैं निजी क्षेत्र में जाने का इच्छुक था। मैंने एम. कॉम. और सी. एस. के लिए एडमिशन ले लिया था। एक टीचर के कहने पर मैंने बी. एड. कर लिया। इसके तुरंत बाद मैं सरकारी अध्यापक बन गया। उस दिन मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उस दिन हमारे घर और ननिहाल में दावत दी गई; क्योंकि ननिहाल-ददिहाल के कुल 15 बच्चों में सरकारी नौकरी पाने वाला मैं पहला शख्स था।
इसके बाद मैंने अध्यापक का दो वर्ष का प्रोबेशन पूरा किया और आर.ए.एस. की तैयारी के लिए जयपुर आ गया। मेरी इच्छा थी कि बस, एक बार आर.ए.एस. परीक्षा में पास होकर इंस्पेक्टर ही लग जाऊं। लेकिन मैं आर.ए.एस. के पहले साक्षात्कार और लेक्चरर के साक्षात्कार में असफल हो गया। इस पर मेरे मित्र ने मुझसे कहा, “यदि आज तुम्हारे साथ अच्छा नहीं हो रहा तो याद रखो कि आगे बहुत अच्छा होने वाला है।”बस, यही सोचकर मैं अपनी पूर्व में रही कमियों को सुधारकर दोगुनी मेहनत के साथ जुट गया था।’
मन में आशा थी कि मेहनत का फल अवश्य मिलेगा। इसी विश्वास के साथ मैं दूसरी बार बी.डी.ओ. और तीसरी बार एस.डी.एम. बना। इस बार मुझे अटूट विश्वास हुआ कि मैं आई.ए.एस. भी बन सकता हूं। किंतु आर.ए.एस. की ट्रेनिंग, फिर पोस्टिंग और आई.ए.एस. की परीक्षा में लगातार चार असफलताओं के बाद मेरे मन में यह धारणा प्रबल हुई कि मेरा लक्ष्य अब पूरा नहीं होगा और मैं आर.ए.एस. ही रहूँगा।
मैं और मेरा दोस्त घनश्याम दोनों ऑफिस के बाद शाम को 6 बजे से लेकर रात 12 बजे तकतैयारी करते थे। इसके बाद वो दिन भी आया जब मेरा आईएएस का एग्जाम भी क्लियर हो गया। हम दोनों दोस्त एक साथ आई.ए.एस. बने। इसके बाद मेरी एक दशक की अथक-अनवरत मेहनत सफल हुई। इस तरह मेरी सफलता की यात्रा में उतार-चढ़ाव की पगडंडी बहुत लंबी और संघर्ष भरी रही।
आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि मैं भी ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ का सदस्य हूं। राजेंद्र दूसरे बच्चों को सफलता का मूल मंत्र देते हुए कहते हैं कि, कभी हार न मानकर अर्जुन की तरह केवल मछली की आंख को ही लक्ष्य मानकर यदि धैर्य, विश्वास और कठोर मेहनत के साथ तैयारी करें तो सफलता निश्चित ही नहीं, सुनिश्चित है।