'सड़कों पर चूड़ी बेचने वाला शख्स बना IAS'...कसम खाई थी अफसर बनने के बाद ही रखूंगा गांव में कदम

नई दिल्ली. कहते हैं कि अगर कोई इंसान मजबूत इरादे से किसी काम को करे तो दुनियां की कोई ताकत उसे हरा नहीं सकती। बड़ी से बड़ी परेशानियां इंसान के जज्बे के आगे बौनी साबित होती हैं। आज हम बात कर रहे हैं ऐसे दिव्यांग शख्स की कहानी है जो चूड़ी बेचता था पर अपने मजबूत इरादों से वो अफसर बनकर ही माना। पिता की मौत के बाद गरीबी में इस लड़के को मां के साथ गांव की सड़कों पर चूड़ियां बेच गुजारा करना पड़ा। उस दौरान लोग मजाक उड़ाते थे ताने देते थे। इस शख्स ने चूड़ी बेचने पर अपना मजाक उड़ाने वालों के ताने दिल से लगा लिए थे। उसने ठान ली थी अफसर बनकर ही गांववालों को शक्ल दिखाउंगा। 

 

आईएएस सक्सेज स्टोरी में (IAS Success Story) हम आपको रमेश  घोलप के संघर्ष के बारे में बताएंगे। 

Asianet News Hindi | Published : May 12, 2020 5:48 AM IST / Updated: May 12 2020, 11:45 AM IST
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'सड़कों पर चूड़ी बेचने वाला शख्स बना IAS'...कसम खाई थी अफसर बनने के बाद ही रखूंगा गांव में कदम

हम बात कर रहे हैं आई. ए. एस. रमेश घोलप की जो आज उन युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो सिविल सर्विसेज में भर्ती होना चाहते हैं। रमेश को बचपन में बाएं पैर में पोलियो हो गया था और परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि रमेश को अपनी मां के साथ सड़कों पर चूड़ियां बेचना पड़ा था।

 

लेकिन रमेश ने हर मुश्किल को मात दी और आई ए एस (IAS) अफसर बनकर दिखाया। इतना ही नहीं वो अपने अपनी मां को अपने दफ्तर भी लेकर गए। 

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रमेश के पिता की एक छोटी सी साईकिल की दुकान थी। यूं तो इनके परिवार में चार लोग थे लेकिन पिता की शराब पीने की आदत ने इन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। इधर ज्यादा शराब पीने की वजह से इनके पिता अस्पताल में भर्ती हो गए तो परिवार की सारी जिम्मेदारी मां पर आ पड़ी। मां बेचारी सड़कों पर चूड़ियां बेचने लगी, रमेश के बाएं पैर में पोलियो हो गया था लेकिन हालात ऐसे थे कि रमेश को भी मां और भाई के साथ चूड़ियां बेचने का काम करना पड़ा।

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गांव में पढाई पूरी करने के बाद बड़े स्कूल में दाखिला लेने के लिए रमेश को अपने चाचा के गांव बरसी जाना पड़ा। वर्ष 2005 में रमेश 12 वीं कक्षा में थे तब उनके पिता का निधन हो गया। चाचा के गांव से अपने घर जाने में बस से 7 रुपये लगते थे लेकिन विकलांग होने की वजह से रमेश का केवल 2 रुपये किराया लगता था लेकिन वक्त की मार तो देखो रमेश के पास उस समय 2 रुपये भी नहीं थे।

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पड़ोसियों की मदद से किसी तरह रमेश अपने घर पहुंचे। रमेश ने 12 वीं में 88.5 % मार्क्स से परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इन्होंने शिक्षा में एक डिप्लोमा कर लिया और गाँव के ही एक विद्यालय में शिक्षक बन गए। डिप्लोमा करने के साथ ही रमेश ने बी ए की डिग्री भी ले ली। शिक्षक बनकर रमेश अपने परिवार का खर्चा चला रहे थे लेकिन उनका लक्ष्य कुछ और ही था।

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रमेश ने छह महीने के लिए नौकरी छोड़ दी और मन से पढाई करके यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा दी लेकिन 2010 में उन्हें सफलता नहीं मिली। मां ने गांव वालों से कुछ पैसे उधार लिए और रमेश पुणे जाकर सिविल सर्विसेज के लिए पढाई करने लगे। रमेश ने अपने गांव वालों से कसम ली थी कि जब तक वो एक बड़े अफसर नहीं बन जाते तब तक गांव वालों को अपनी शक्ल नहीं दिखाएंगे।

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आखिर 2012 में रमेश की मेहनत रंग लायी और रमेश ने यूपीएससी की परीक्षा 287 वीं रैंक हासिल की। और इस तरह बिना किसी कोचिंग का सहारा लिए, अनपढ़ मां बाप का बेटा आई ए एस (IAS) अफसर बन गया था। रमेश झारखण्ड के खूंटी जिले में बतौर एस डी एम तैनात रहे हैं।

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पत्नी और बच्चों के साथ आईएएस अफसर रमेश घोलप।

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दोस्तों अक्सर देखा जाता है कि हम लोग अपने दुःखों के लिए हमेशा आंसू बहाते रहते हैं। अपने अभावों को ही अपना नसीब मानकर पूरा जीवन गुजार देते हैं लेकिन कुछ रमेश जी जैसे लोग ऐसे भी हैं जो हालातों को अपना नसीब नहीं बनाते बल्कि अपना नसीब खुद लिखते हैं। इसलिए हालातों का सामना करने कमर कस लीजिए और सपनों को पूरा करने जी जान से जुट जाइए। 

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इस प्रेरणात्मक कहानी से सिविल सर्विस ही नहीं हर स्टूडेंट को हौसला मिलता है। अगर आपके इरादे मजबूत है और पूरी ईमानदारी से आप लक्ष्य को हासिल करने के लिए खुद को झोंक दे तो सफलता मिलती ही है। 

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