कूड़ा उठाने वाले बिलाल अहमद डार ने श्रीनगर के रहने वाले हैं। वो यहां गरीबी में जीवन गुजारने को मजबूर थे। पर आज हर कोई बिलाल को जानता है। यह पहचान अनगिनत कठिनाईयों, भूखमरी के दिन और लोगों के घृणाओं का सामना करने के बाद मिली है।
वुलर झील के तट पर बसे लहावालपुरा गांव के रहने वाले बिलाल उस वक्त 6ठी कक्षा में थे, जब साल 2007 में उन्होंने अपने पिता मोहम्मद रमजान, को उनके कैंसर के कारण खो दिया है। पूरा परिवार चूर-चूर हो गया और इस नन्हें से बालक को अपने कंधे पर परिवार को उठाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी।