लॉकडाउन में घर-घर अपने हाथों से राशन बांट रहा ये IAS, किया ऐसा इंतजाम कोई दिहाड़ी मजदूर न रहे भूखा

मेघालय.  पूरे देश में कोरोना महामारी और लॉकडाउन से लड़ने के लिए हमारे सिविल सर्वेंट तैनात हैं। मेघालय ने COVID-19 से से एक व्यक्ति की मौत के बाद हड़कंप मच गया था। शिलांग में, मृतक के संपर्क में आने वाले छह लोगों का भी टेस्ट पॉज़िटिव आया। इसने राज्य भर के अन्य जिलों में खतरे की घंटी बजा दी है। इसके बाद ईस्ट गारो हिल्स के उपायुक्त स्वप्निल टेम्बे ने अपने जिले में कर्फ्यू लगा दिया। इतनी हा नहीं उन्होंने राज्य में लोगों को महामारी से बचाने और लॉकडाउन में भुखमरी से बचाने के लिए कमर कस ली। वो अकेले ऐसे अफसर हैं जो स्थानीय लोगों को भरपेट खाना और राशन अपने हाथों से बांट रहे हैं। IAS अफसर ने अपने कामों से प्रेरणा देकर राज्य के सभी बेरोजगारों को भी काम पर लगा दिया।

 

इससे पहले वो एक स्कूल के पुनर्निमाण के लिए अपनी सैलरी दान करके चर्चा में आए थे। आइए जानते हैं अधिकारी के रूप में देवता ये शख्स कैसे लोगों की मदद कर रहा है....

Asianet News Hindi | Published : May 3, 2020 6:24 AM IST / Updated: May 03 2020, 12:31 PM IST
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लॉकडाउन में घर-घर अपने हाथों से राशन बांट रहा ये IAS, किया ऐसा इंतजाम कोई दिहाड़ी मजदूर न रहे भूखा

स्वप्निल टेम्बे कहते हैं, “दो दिनों के लिए सब कुछ बंद है। इस बीच, हम बड़े पैमाने पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कर रहे हैं और सभी आवश्यक प्रोटोकॉल का अनुसरण कर रहे हैं। अब तक जिले में, प्रभावित जिलों से करीब 200 लोग आए हैं और कोई भी विदेश नहीं गया है। उन्हें होम कोरोनटाइन में रखा गया है लेकिन उनके टेस्ट किए गए नमूने निगेटिव आए हैं। अब तक, जिले में किसी भी व्यक्ति का संदिग्ध यात्रा का इतिहास सामने नहीं आया है। एक-दो दिनों में किराने की दुकानें फिर से खुल जाएंगी, लेकिन सार्वजनिक और निजी परिवहन बंद रहेगा।”

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इसके अलावा, भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार, राज्य सरकार, सभी आवश्यक सावधानी बरतते हुए मनरेगा के काम और खेती की गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति देती रहेगी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) कार्ड धारकों को अप्रैल, मई और जून के महीनों में 5 किलो चावल और 1 किलो दाल मुफ्त मिलेगी। इसके तहत जिले के लगभग 90 फीसदी लोगों की जरूरतों का ध्यान रखा गया है, जो ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।

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राज्य के लिए चिंता का मुख्य विषय शहरी दिहाड़ी मजदूर और असम के कुछ प्रवासी श्रमिक हैं जो अनिश्चित काल के लिए जिले में फंसे हैं और इन श्रमिकों का परिवार किसी बड़ी योजना के तहत शामिल नहीं है। लेकिन, जिला राहत कोष के तहत, प्रशासन यह पहचानने की कोशिश कर रहा है कि शहरी दिहाड़ी मजदूर कहां निवास कर रहे हैं और फिर उन्हें राशन प्रदान किया जा रहा है। साथ ही स्व-सहायता समूह (एसएचजी) को शामिल किया है जो इन क्षेत्रों में जा कर भोजन वितरित कर रहा है।

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मीडिया से बातचीत में टेम्बे ने बताया था, “एक दिव्यांग व्यक्ति ने मुझसे संपर्क किया था, जिसकी मोबाइल रिपेयर की दुकान लॉकडाउन के कारण बंद हो गई थी और वो काफी परेशानी में था। इसलिए, मैंने ऐसे दिव्यांग लोगों की पहचान करने और उनकी मदद करने की योजना बनाई है जो इस संकट की स्थिति में परेशान हैं।”

 

टेम्बे ने एक स्थानीय एसएचजी, अचिक चदम्बे से भी संपर्क किया है जो चावल, दाल और नमक जैसी आवश्‍यकताओं के ऑन-ग्राउंड वितरण को कोर्डिनेट करती है। इस एसएचजी का संचालन एक स्थानीय युवा उद्यमी बोनकी आर मारक कर रहे हैं। टेम्बे के आदेशों का पालन करते हुए, परिवार का आकार और साप्ताहिक आवश्यकता के आधार पर, 5 किलो चावल, 2-3 किलोग्राम दाल, और 1 किलो नमक प्रति घर दान किया जा रहा है।

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वह बताते हैं, ”अब तक हमने 1,000 से ज्यादा घरों, यानी करीब 7,000 लोगों तक मदद पहुंचाई है। कुछ घरों में, हमने कई बार मदद पहुंचाई है। एसएचजी को शामिल करने के अलावा, कई जिला अधिकारी अपनी स्वेच्छा से काम कर रहे हैं, इन स्थानों पर जा रहे हैं, इन वंचित समुदायों के साथ बातचीत कर रहे हैं और आवश्यक वितरण कर रहे हैं। यह देखना बहुत ही सुखद है कि इस तनावपूर्ण समय में यह स्वयंसेवा पारिस्थितिकी तंत्र कितनी व्यवस्थित तरह से सामने आई है। वे शानदार काम कर रहे हैं और दूरदराज और ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंच रहे हैं।”

 

सिर्फ तीन लेबर इंस्पेक्टर के साथ, एक जिला प्रशासन के लिए इन पहलों को लागू करने में समय लगा है, जैसे कि पंजीकरण करने की प्रक्रिया है। यदि किसी अन्य राज्य से पांच से ज़्यादा प्रवासी मजदूर हैं, तो उन्हें स्थानीय जिला प्रशासन के साथ पंजीकृत होना होगा। इनमें से कुछ मजदूरों ने अपना पंजीकरण करवाया था, लेकिन प्रशासन ने पाया कि बहुत से ऐसे मजदूर हैं जिन्होंने अपना पंजीकरण नहीं कराया है। अब तक, ईस्ट गारो हिल्स में 247 प्रवासी मजदूर हैं और उनकी ज़्यादातर आवश्यकताओं का ध्यान ठेकेदारों ने रखा है। राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के तहत और उनके ठेकेदारों द्वारा उनका ध्यान रखा जा रहा है क्योंकि वे एक विशेष नौकरी के लिए जिले में आए हैं। प्रशासन उन लोगों की तलाश कर रहा है जो राहत शिविरों में नहीं हैं।

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मेघालय में एक स्कूल को बनाने के लिए अपनी सैलरी दे देने वाले टेम्बे कहते हैं, “यही वह जगह है जहां जिला राहत कोष उपयोगी है। इससे उन लोगों तक मदद पहुंचाने में मदद मिलती है जो किसी भी योजना के तहत कवर नहीं किए गए हैं। मैं उनसे किसी तरह के दस्तावेज नहीं मांग रहा हूं। अगर हमें कोई ऐसा दिखाई देता है जो भूखा है, तो हम उन्हें भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। इन दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों के परिवारों के लिए आवश्यक वितरण एसएचजी को दिया गया है।

 

फील्ड में तैनात अधिकारियों से ऐसे लोगों की सूची मिल रही है जो फंसे हुए हैं और जिनके पास खाना नहीं है। फिर हम वह सूची एसएचजी को दे देते हैं। अन्य जिला अधिकारियों के साथ, भोजन वितरित किया जाता है। हम स्थानीय ग्राम प्रधान जैसे अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में हैं।”

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अधिकांश दैनिक वेतन भोगी और उनके परिवार पड़ोसी जिलों से हैं, जिनका ध्यान ठेकेदारों / कार्य प्रदाताओं द्वारा नहीं रखा गया है। वे रोजगार के लिए एक निश्चित कार्य के लिए नहीं आए हैं। वे दिन में स्वतंत्र काम की तलाश में रहते हैं और वे जो कुछ भी कमाते हैं उससे ही जीवन यापन करते हैं। वह आगे बताते हैं, “हमारा लक्ष्य इन लोगों की मदद करना है क्योंकि न तो उनके पास उचित काम है, न ही लॉकडाउन से निपटने के लिए संसाधन।”

 

अब तक, प्रशासन उन्हें खिलाने में कामयाब रही है और अतिरिक्त 19 दिनों तक इसे जारी रखने की उम्मीद है। इस बीच जिले के अन्य निवासियों के लिए, प्रशासन SELCO फाउंडेशन जैसे संगठनों के संपर्क में है और यह पता लगा रही है कि स्थानीय लोग घर बैठे कैसे कमा सकते हैं।

 

मजदूरों ने अफसर को नायाब तरीके से धन्यवाद भी बोला वो उन्हें अपना भगवान बता रहे हैं। 

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राज्य सरकार एसएचजी द्वारा फेस मास्क उत्पादन को प्रोत्साहित करने की पहल के साथ आगे आई है। सिलाई में प्रशिक्षित महिलाएं मास्क बना रही हैं। इन मास्क को खरीद कर, सरकार उन्हें आम जनता को मुफ्त में वितरित कर रही है। इस बीच, इन एसएचजी में काम करने वाली महिलाएं, कुछ आय अर्जित कर रही हैं।

 

टेम्बे कहते हैं, “हमने बेरोजगार युवाओं को भी आवश्यक सामानों की होम डिलिवरी करने में शामिल किया है क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि लोगों को किराने का सामान खरीदने के लिए अपने घरों से बाहर निकलना पड़े। 

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