इसी तरह प्रयास करते और परीक्षा देते उन्हें दो साल हो गए फिर भी सेलेक्शन नहीं हुआ। इस बीच आसपास वालों और परिवार के बाकी लोगों के तानें भी बढ़ने लगे जिनके लिए एक 24-25 साल की अविवाहित लड़की घर में बैठे एक ऐसे मुकाम को पाने की कोशिश कर रही थी जो नामुमकिन सा लगता था।
खैर ज़ेबा एक इंटरव्यू में कहती हैं कि जब मेरी तैयारी के दिनों में निराशा होती थी तो मैंने यह लाइन्स कहीं पढ़ी थी, जिन्हें मैं याद कर लेती थी, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है।