जयपुर. यूं तो हाथों की लकीरें किस्मत बयां करती है लेकिन संघर्ष यदि जुनूनी हो तो लकीरें भी बदल जाती हैं और किस्मत भी। कुछ ऐसा ही हुआ है जयपुर में जहां कक्षा 3 में पढ़ रही 8 साल की अबोध बालिका के नासमझी में ही सात फेरे हो गए। बालिका वधु बन गई, घर के कामकाज में भी लगी लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। गौना नहीं होने तक मायके में पढ़ी, फिर ससुराल वालों ने पढ़ाया। ससुराल में पति और उनके बड़े भाई (जीजा) ने तमाम सामाजिक बाध्यताओं को दरकिनार करते हुए बहू की पढ़ाई करवाई। पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए दोनों ने खेती करने के साथ-साथ टेम्पो चलाया।
करियर सक्सेज स्टोरी (Career Success Story) में हम आपको सुना रहे हैं एक लड़की के बालिका बधू से डॉक्टर बनने तक की कहानी-