नई दिल्ली. प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती यह पंक्ति एक जिला कलेक्टर पर सटीक बैठती है। गर्भ में था तब पिता की मौत हो गयी थी। पिता को शक्ल से नहीं पहचानता क्योंकि तस्वीर खिचवाने के लिए कभी पैसे नहीं रहे। परिवार चलाने के लिए मां ने मजदूरी के साथ ही देशी शराब बेचना शुरू कर दिया। 10 लोगो का परिवार घासफूस की झोपड़ी में रहता था। महाराष्ट्र के धुले के रहने वाले IAS अधिकारी डॉ. राजेंद्र भारुड़ आदिवासी भील समुदाय से आते है। आदिवासी भील समाज से आईएएस बनने वाले वो पहले ऐसे युवा हैं, जिनकी सफलता यह साबित करती है कि गरीबी से लड़कर किस तरह जिंदगी की शानदार जंग जीती जा सकती है।
आईएएस सक्सेज स्टोरी (IAS Success Story) में हम आपको राजेंद्र भारुड़ के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं।