डॉ. राजेंद्र भारुड़ का आदिवासी भील समुदाय अज्ञान, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी और भांति-भांति के व्यसनों के दंश से ग्रसित है। पढ़ना उस समुदाय के बच्चों के लिए किसी सपने के हकीकत में बदलने जैसा है। डॉ. राजेंद्र भारुड़ का परिवार गन्ने से निकाली गयी खरपतवार से बने झोपड़ीनुमा घर में रहता था।
मां-पिता मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहे थे। जब वो गर्भ में थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। समाज एवं परिवार के लोगो ने मां को गर्भपात की सलाह दी लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया।