पुल के नीचे अनाथ बच्चों को पढ़ाता है ये शख्स, IAS, IPS बनाने का देख रहा ख्वाब

नई दिल्ली. आपने बहुत से ऐसे लोगों की कहानियां देखीं होंगी जो गरीबों की मदद के लिए क्या कुछ कर गुजर जाते हैं। ऐसे ही एक गरीबों के मसीहा की कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं। ये शख्स कभी इंजीनियर बनने के सपने देखा करता था लेकिन जब अपनी ख्वाहिशें पूरी न हुईं तो बेसहारा बच्चों में अपनी खुशियां तलाश लीं। हम बात कर रहे हैं दिल्ली मेट्रे के पुल के नीच स्कूल चलाने वाले  राजेश कुमार शर्मा के बारे में। लक्ष्मी नगर में रहने वाले दुकानदार राजेश यमुना बैंक इलाके में मेट्रो पुल के नीचे एक स्कूल चलाते हैं, इसमें वह गरीबी, अनाथ बच्चों को पढ़ाकर देश के अधिकारी बनाने की तैयार करवा रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 31, 2019 12:25 PM IST / Updated: Dec 31 2019, 06:02 PM IST

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पुल के नीचे अनाथ बच्चों को पढ़ाता है ये शख्स, IAS, IPS बनाने का देख रहा ख्वाब
वे ये काम अकेले कर रहे हैं उनके इस संघर्ष में कोई सरकार, कोई एनजीओ, बाल कल्याण साथ नहीं है, इन गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाकर वो देश के आईपीएस, आईएएस अफसर बनाने का ख्वाब देखते हैं।
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लक्ष्मी नगर में रहने वाले दुकानदार राजेश यमुना बैंक इलाके में मेट्रो पुल के नीचे एक स्कूल चलाते हैं, इसमें वह गरीबी, अनाथ बच्चों को पढ़ाकर देश के अधिकारी बनाने की तैयार करवा रहे हैं।
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मूल रूप से उत्तर प्रदेश में हाथरस के रहने वाले शर्मा लक्ष्मी नगर में एक किराने की दुकान चलाते हैं। उनके इस संघर्ष की कहानी दिलचस्प और दिल छू को झकझोर देने वाली है।
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उन्होंने 13 साल पहले महज दो बच्चों के साथ अपने स्कूल की शुरुआत की थी। शर्मा को खुद गरीबी के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी थी। इस बात का दुख उन्हें आज भी है।
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इसलिए जब यमुना बैंक इलाके में घूमते हुए उन्होंने बच्चों को बिना शिक्षा के भटकते देखा तो उनके माध्यम से अपने सपने को जीने का फैसला किया। शर्मा (49) अपना स्कूल दो शिफ्ट में चलाते हैं।
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सुबह 9-11 बजे तक लड़कों के लिए जिसमें 120 छात्र हैं। दोपहर दो बजे से शाम साढ़े चार बजे तक लड़कियों के लिए जिसमें 180 छात्राएं हैं।
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पुल के नीचे बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं, यहां ब्लैकबोर्ड दीवार पर पेंटिंग से बने हैं। शिक्षकों की सहायता के लिए, स्कूल के पास चाक, डस्टर, पेन और पेंसिल जैसी बुनियादी स्टेशनरी है। छात्र अपनी नोटबुक लाते हैं और उस जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं। जमीन को कार्पेट से ढका हुआ है।
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स्कूल में लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा है, इसके अलावा छात्रों को बुनियादी स्वच्छता और सफाई के बारे में भी पढ़ाया जाता है। पीने के लिए पानी अलग से रखा हुआ है।
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चार साल से 14 साल तक के इन बच्चों को शर्मा अकेले नहीं पढ़ाते हैं. आसपास के लोग भी उनकी मदद करते हैं। वे अपने खाली समय में आकर बच्चों को पढ़ाते हैं, उनके साथ सात ऐसे शिक्षक स्थाई रूप से जुड़े हुए हैं।
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वैसे तो स्कूल सड़क के शोरगुल से दूर है, और हर पांच मिनट पर आती मेट्रो ट्रेन की आवाज बच्चों को महसूस तक नहीं होती। वे तो अपने सीमित संसाधनों वाले स्कूल में खुश हैं। शर्मा का कहना है कि उनके पास कभी कोई सरकारी प्रतिनिधि मदद की पेशकश लेकर नहीं आया है।
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