पिता की मौत के बाद बेटा बन मां को अकेले पाला...कड़े संघर्ष में IPS बनी गांव की ये गरीब बेटी

सिक्किम. हमारे देश में शायद ही कोई क्षेत्र होगा जहाँ महिलाओं नें अपना परचम ना लहराया हो। भले ही हमारे देश में शुरू से यह मानसिकता रही है कि महिलाओं को बाहर का कोई काम नहीं करना चाहिए। पर बदलते वक्त के साथ महिलाओं ने लड़-झगड़कर अपना हक छीन लिया है। चाहे वह पुलिस प्रशासन हो गांव में खेती करना महिलाएं मेहनत से नहीं डरती हैं। आज हम एक ऐसी ही महिला की बात कर रहें हैं, जिसने पिता के देहांत बाद भी अपना हौसला नहीं हारा। उन्हें अपनी कड़ी मेहनत से मात्र 28 साल की उम्र में सिक्किम की पहली महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल है। IAS सक्सेज स्टोरी में हम अपराजिता राय के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं....

Asianet News Hindi | Published : Apr 1, 2020 12:33 PM IST / Updated: Apr 01 2020, 06:11 PM IST

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पिता की मौत के बाद बेटा बन मां को अकेले पाला...कड़े संघर्ष में IPS बनी गांव की ये गरीब बेटी
अपराजिता 1958 बैच की आईपीएस ऑफिसर और सिक्किम की पहली महिला आईपीएस हैं। स्कूल के दिनों से ही अपराजिता पढ़नें में बहुत मेधावी छात्रा थीं। वे अपनी क्लास में हमेशा अव्वल आती थीं। पढाई के अलावा अपराजिता को संगीत और नृत्य में भी अच्छी रूचि थीं। वे स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर हिस्सा लेती रहतीं थी।
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अपराजिता की ज़िन्दगी में दुःखों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब मात्र 8 वर्ष की छोटी उम्र उनके सर से पिता का साया छिन गया। उनके पिता वन विभाग में डिविजनल ऑफिसर थे। उनकी माता रोमा राय एक स्कूल में पढ़ाती थी। पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति थोड़ी डामाडोल हो गयी। इसके वाबजूद अपराजिता नें हार नहीं मानी और अपनी पढाई को जारी रखा।
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अपराजिता के परिवार वालों नें उनका पूरा साथ दिया और पढाई के लिए प्रोत्साहित किया। सबको भरोसा था कि अपराजिता आगे चलकर जरूर कुछ बड़ा करेंगी। जल्द ही उनकी मेहनत रंग लायी और अपराजिता नें 12वीं बोर्ड परीक्षा में 95% अंक हासिल कर बोर्ड टॉपर रहीं। पूरे राज्य में टॉप करनें के लिए उन्हें ताशी नामग्याल एकेडमी में "बेस्ट गर्ल ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी" से सम्मानित भी किया गया था।
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12वीं की पढाई पूरी करनें के बाद अपराजिता नें लॉ की पढाई करनी चाही और आगे की पढाई के लिए कोलकत्ता चली गई। लॉ की पढाई करनें का भी उनका मकसद समाज की बुराइयों के खिलाफ लड़ना ही था। उन्होंने कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ज्यूडिशियल साइंसेज से अपनी लॉ की पढाई के लिए दाखिल लिया। वर्ष 2009 में उन्होंने वहां से बीए एलएलबी की डिग्री पूरी कर ली।
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पर अपराजिता की ख्वाहिश थी की वो आईएएस बन कर देश की सेवा करें। फिर क्या अपराजिता यूपीएससी की सिविल सर्विसेज के परीक्षा की तैयारियों में लग गयीं। एक साल की तैयारी के बाद ही 2010 में उन्होंने सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी और सफल भी रहीं। उन्होंने अपनें पहले ही प्रयास में 768वां रैंक हासिल कर लिया। पर अपराजिता और अच्छा स्थान हासिल करना चाहतीं थी लिहाजा उन्होंने दोबारा परीक्षा देने की ठानी।
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2011 में अपनें दूसरे ही प्रयास में अपराजिता नें 358वां रैंक लाकर सबको चौंका दिया। साथ ही उन्होंने सिक्किम में सर्वोच्च रैंक हासिल किया था। अपराजिता की सफलता की कहानी यहीं नहीं रुकी , उन्होंने अपनी ट्रेनिंग के दौरान भी बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। इसके लिए उन्हें "बेस्ट लेडी आउटडोर" की ट्रॉफी भी दी गयी थी। अभी अपराजिता की पोस्टिंग पश्चिम बंगाल में है। वे अच्छे कामों के कारण हमेशा सुर्ख़ियों में बनीं रहती हैं। वे जहां भी रहती हैं लॉ एंड ऑर्डर से कोई भी समझौता नहीं करती हैं।
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अपराजिता को इसके लिए ढेर सारे अवार्ड से सम्मानित भी किया जाता रहा है। उन्हें फील्ड कॉम्बेट के लिए "श्री उमेश चंद्र ट्रॉफी", "ट्राफी फ़ॉर बीट टर्नआउट" तथा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा "गवर्मेंट ट्रॉफी फॉर बंगाली" सहित ढेरों अवार्ड से नवाजा जा चुका है। सिक्किम जैसे इलाके से होनें के बावजूद इतनी कम उम्र में बहुत कुछ हासिल कर अपराजिता नें एक मिसाल कायम की है। वे न सिर्फ महिलाओं की बल्कि सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हर स्टूडेंट की प्रेरणा हैं।
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