एक साल की उम्र में चली गई आंखों की रोशनी, संयोग और किस्मत का खेल देखिए IAS बन गया बेटा

Published : Feb 13, 2020, 05:51 PM IST

लखनऊ(Uttar Pradesh ).  फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों के लिए अप्लाई करने वाले  स्टूडेंट्स प्रोसेस, एग्जाम, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम आपको दोनों आंखों के नेत्रहीन दिव्यांग 2018 बैच के IAS सतेंद्र सिंह की कहानी बताने जा रहे हैं। उन्होंने कभी परिस्थितियों से समझौता नहीं किया और आज एक मुकाम हासिल किया। 

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एक साल की उम्र में चली गई आंखों की रोशनी, संयोग और किस्मत का खेल देखिए IAS बन गया बेटा
सतेंद्र का जन्म यूपी के अमरोहा के रजबपुर गांव में हुआ था। उनके पिता विक्रम सिंह एक साधारण किसान थे। सतेंद्र दो भाइयों में छोटे हैं। उनके बड़े भाई मोहित कुमार हैं।
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किसान विक्रम सिंह ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। वह पांचवीं क्लास तक ही पढ़े हैं जबकि उनकी पत्नी राजेंद्री देवी कभी स्कूल ही नहीं गई हैं। लेकिन विक्रम सिंह के दिल में अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना शुरू से था।
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विक्रम सिंह पर मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब उनके 1 साल के छोटे बेटे सतेंद्र को निमोनिया हो गया। वह उन्हें लेकर नजदीकी डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने सतेंद्र को एक गलत इंजेक्शन लगा दिया। गलत इंजेक्शन लगाने से सतेंद्र के दोनों आँखों की नसें ब्लॉक हो गई और आँखों की रोशनी चली गई। विक्रम सिंह ने बेटे का बहुत इलाज करवाया लेकिन वह ठीक नहीं हो सका।
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धीरे-धीरे सतेंद्र बड़े हुए। वह बचपन से पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके पैरेंट्स को ये समझ नहीं आ रहा था कि नेत्रहीन बेटा कैसे पढ़ेगा। इसी बीच दिल्ली में रहने वाले उनके परिवार के एक शख्स ने उन्हें एक सरकारी संस्था के बारे में बताया। ये संस्था दृष्टिबाधित बच्चों को पढ़ाती थी। सतेंद्र की पढ़ाई शुरू हुई तो पैसों की समस्या सामने आने लगी। लेकिन बेटे की पढ़ाई में रूचि को देखते हुए उनके पिता भी खुश थे। उन्होंने सतेंद्र की स्कूल फीस भरने के लिए अपने पालतू जानवर बेंच दिए।
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सतेंद्र की राजकीय दृष्टिबाधित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में 12वीं तक की पढ़ाई हुई। उसके बाद दिल्ली के ही सेंट स्टीफन कालेज से स्नातक और JNU से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर ली। साल 2015 में वह पीएचडी करने के बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए।
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लेकिन सतेंद्र इससे संतुष्ट नहीं थे। उनके दिल में शुरू से ही IAS अफसर बनने का सपना था। उन्होने सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की। पहले प्रयास में वह सफल नहीं हुए। दूसरी बार एग्जाम के समय उनके तबियत खराब हो गई। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने 2018 में तीसरी बार UPSC की परीक्षा दी। इस बार वह सिलेक्ट हो गए और उन्हें 714वीं रैंक मिली।
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मोबाइल, कंप्यूटर समेत सभी उपकरण बखूबी चलाने वाले सतेंद्र सिंह ने पढ़ाई के लिए स्क्रीन रीडिंग सिस्टम का प्रयोग किया। मोबाइल व कंप्यूटर से 'टॉक बैक' एप्लीकेशन के जरिये सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी की। सतेंद्र की मेहनत और लगन ही थी कि वह सिविल सर्विस का एग्जाम क्रैक करने में सफल रहे।

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