देश का सबसे अनोखा गांव; यहां का बच्चा बच्चा बाउंसर, दिन रात तैयार हो रहे लंबे चौड़े पहलवान
नई दिल्ली. राजधानी में विधानसभा चुनाव 2020 की धूम है। आम आदमी पार्टी एक बार फिर सत्ता बनाने के लिए मैदान में है तो दूसरी ओर भाजपा भी अपने तरफ से पूरी ताकत झोंकने में लगी हैं। दिल्ली यूं तो देश की राजधानी होने के कारण चर्चा में रहती है। दिन-रात दौड़ने वाली वाले इस मेट्रो सिटी दो ऐसे भी गांव हैं जो अपनी खास बात के कारण काफी फेमस हैं। वजह है यहां के बच्चे-बच्चे का बाउंसर और पहलवान होना। यूं तो दिल्ली के पास हरियाणा भी पहलवानी में चर्चा में रहता है। पर वहां शायद हर दूसरा लड़का पहलवान न मिले पर इन दो गांवों में तो जहां देखो पहलवान ही पहलवान हैं। आइए जानते हैं दिल्ली के इन दो अनोखे गांव की चौंका हैरान देने वाली कहानी...।
दिल्ली के पास स्थित असोला-फतेहपुर बेरी नाम के इस गांव को कोई बाउंसर्स की बस्ती बोलता है तो कोई भारत का सबसे मजबूत गांव बुलाता है। इस गांव में हर दूसरा बंदा बाउंसर है या फिर बाउंसर बनने की ट्रेनिंग ले रहा है।
असोला-फतेहपुर बेरी, दो गांव ऐसे हैं, जहां के तकरीबन हर घर का एक बेटा बाउंसर ट्रेनिंग ले रहा है। इतना ही नहीं, बाउंसर्स ट्रेनिंग के बाद इन दोनों गांवों के हालात पहले से काफी बेहतर हो गए हैं। गरीब किसानों के युवा अब अच्छी सैलरी वाले बाउंसर्स हो गए हैं। गांवों की 90 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष यानी करीबन 50 हजार से ज्यादा युवा दिल्ली के सैकड़ों पबों में बाउंसर्स का काम कर रहे हैं।
यहां के लड़के अपने बाउंसर होने की कहानी भी सुनाते हैं। विजय पहलवान जो असोला गांव के एक अखाड़े के मुख्य ट्रेनर हैं ने बताया कि, 'इस गांव में एक भी ऐसा लड़का नहीं है, जो कभी जिम नहीं गया' वे कहते हैं ' गांव के लड़के बचपन से अखाड़ों में आमद देना शुरू कर देते हैं। सभी लड़के कसरत करते हैं, वे सभी अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए जुटे रहते हैं। इनमें से कोई भी शराब नहीं पीता और न ही तंबाकू खाता है।' गांव के अखाड़ों में कसरत करने वाले लड़के भीयहां के लड़के अपने बाउंसर होने की कहानी भी सुनाते हैं। विजय पहलवान जो असोला गांव के एक अखाड़े के मुख्य ट्रेनर हैं ने बताया कि, 'इस गांव में एक भी ऐसा लड़का नहीं है, जो कभी जिम नहीं गया' वे कहते हैं ' गांव के लड़के बचपन से अखाड़ों में आमद देना शुरू कर देते हैं। सभी लड़के कसरत करते हैं, वे सभी अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए जुटे रहते हैं। इनमें से कोई भी शराब नहीं पीता और न ही तंबाकू खाता है।' गांव के अखाड़ों में कसरत करने वाले लड़के भी अपने भविष्य को लेकर बेहद स्पष्ट हैं। उनके सामने सिर्फ एक लक्ष्य है- बाउंसर बनना। अपने भविष्य को लेकर बेहद स्पष्ट हैं। उनके सामने सिर्फ एक लक्ष्य है- बाउंसर बनना।
यह दोनों गांव गुर्जर बहुल हैं। असोला में धीरे-धीरे हर घर में एक बाउंसर हो गया है। यह कहना मुश्किल है कि इन गांवों तक बाउंसरी कैसे पहुंची, लेकिन विजय पहलवान बताते हैं कि ''15 साल पहले मैं एक सुबह नजदीक के आखरा गांव में अपने अखाड़े में कसरत कर रहा था।
तभी वहां एक पब मालिक ने उनसे संपर्क किया और मेरी तरह के 5 लड़के 10 हजार में उपलब्ध कराने की बात की, ताकि दिल्ली की एक शादी में बतौर गार्ड रखे जा सकें। यह रकम उस समय गांव के किसी भी युवक के लिए बहुत ज्यादा थी और कोई इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था।''
अब हालात यह हैं कि एक बाउंसर को रोजाना औसतन 1500 रुपए मिलते हैं और इस तरह वह महीने में 30 से 50 हजार रुपए कमा लेते हैं। विजय बताते हैं कि बाउंसर बनने के लिए पहली योग्यता शरीर से बेहद मजबूत (दिखना भी चाहिए) होना है, साथ ही व्यक्ति का कोई क्रिमिनल रिकार्ड न हो, यह भी देखा जाता है।
विजय कहते हैं कि 'इस प्रोफेशन में शैक्षणिक योग्यता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगता, लेकिन मैं फिर भी अपने लड़कों से कहता हूं कि वे कम से कम 12वीं पास जरूर करें, ताकि आने वाले समय को देखते हुए वे इस प्रोफेशन में आगे बढ़ सकें।'
बाउंसर बनना इतना आसान नहीं है। एक युवा कम से कम दिन में 3 से 4 घंटे कड़ी कसरत करता है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बाइक और ट्रैक्टर तक उठाना पड़ता है। साथ ही योगा क्लासेस में भी वक्त बिताना पड़ता है।
ट्रेनिंग के दौरान इनकी खुराक भी अच्छी रहती है। एक बाउंसर दिन में करीब 4 लीटरट्रेनिंग के दौरान इनकी खुराक भी अच्छी रहती है। एक बाउंसर दिन में करीब 4 लीटर दूध और 2 किलो दही खाता ही है। ऐसे में इस गांव में हर लड़का बॉडीबिल्डर है। इस गांव को बाउंसर्स का गांव भी कहा जाता है। दूध और 2 किलो दही खाता ही है। ऐसे में इस गांव में हर लड़का बॉडीबिल्डर है। इस गांव को बाउंसर्स का गांव भी कहा जाता है।
दरअसल दिल्ली और NCR इलाको में नाईट लाइफ का चलन बढ़ने से यहां बार और पब्स में सिक्योरिटी के लिए बाउंसर्स की ज़रूरत पड़ती है। ऐसे में ये लड़के वह जा कर अच्छा पैसा कमा रहे है। दूसरे बड़े शहरो में बाउंसर की डिमांड काफी बढ़ी है, जिसका फायदा इन लड़को को हुआ है। यहां के लड़के बाउंसर बनने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं इसी का नतीजा है की यहां हर साल कई दमदार बाउंसर तैयार हो रहे हैं।