चंडीगढ़. 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा की थी, ताकि उनकी सरकार बची रही। आपातकाल को भारतीय राजनीति का सबसे काला अध्याय माना जाता है। इसी का परिणाम था कि इसके बाद 1977 में जब आम चुनाव हुए, तो आक्रोशित जनता ने इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़कर फेंक दिया था। आपातकाल में सरकार ने कई मामलों में क्रूरता की हदें पार कर दी थीं। इनमें से एक थी-जबरिया नसबंदी की मुहिम। यह आइडिया इंदिरा गांधी को किसी और ने नहीं, उनके छोटे बेटे संजय गांधी और उनके खास चौधरी बंसीलाल ने दिया था। बंसीलाल को आधुनिक हरियाणा का जनक कहा जाता है, लेकिन आपातकाल उनकी जिंदगी पर कलंक साबित हुआ। संजय गांधी के लिए भी यह हमेशा एक दाग रहेगा। इस दौरान 62 लाख पुरुषों की जबरिया नसबंदी करा दी गई थी। आपातकाल के दौरान दो नारे तेजी से वायरल हुए थे। पहला-'जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में!' दूसरा-'नसबंदी के तीन दलाल-इंदिरा, संजय बंसीलाल। बता दें कि पुरुषों को पकड़-पकड़कर शिविर में लाया गया था। इस दौरान कई लोगों की मौत भी हो गई थी। जानिए नसबंदी की पूरी कहानी..