कोई पत्थर मारे तो उसे मील का पत्थर बना लें...Modi से मिलने वाली वो 10 सीख, जिसे कभी नहीं भूलना चाहिए

नई दिल्ली. 17 सितंबर। यानी पीएम मोदी का जन्मदिन (PM Modi Birthday)। गुजरात के वडनगर में जन्में मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ। 1972 में RSS से जुड़कर राजनीतिक करियर शुरू किया। 1987 में भाजपा से जुड़ गए। 2001 में पहली बार गुजरात के सीएम बने। फिर आया साल 2013। भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। साल 2014 के बाद साल 2019 में दोबारा पीएम बने। उनकी ऐसी जबरदस्त सफलता के पीछे वजह क्या है? उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व में ऐसा क्या है, जिससे एक आम आदमी सीख ले सकता है? इसी को बताने के लिए Asianet News hindi ने "मोदी, एक सीख" नाम से सीरीज की शुरुआत की है, जिसकी पहली कड़ी में बता रहे हैं कि कैसे कोई भी व्यक्ति कितने भी बड़े मुकाम पर पहुंच जाए, उसे हमेशा अपने अतीत, संस्कार को याद रखना चाहिए। इसी से उसकी सफलता का रास्ते खुलते जाते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने हमेशा इन 10 मंत्रों का पालन किया, आप भी इसे अपनी जिंदगी में उतार सकते हैं- 

Asianet News Hindi | Published : Sep 16, 2021 2:54 AM IST / Updated: Sep 17 2021, 11:51 AM IST
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कोई पत्थर मारे तो उसे मील का पत्थर बना लें...Modi से मिलने वाली वो 10 सीख, जिसे कभी नहीं भूलना चाहिए

नैतिक मूल्यों को हमेशा याद रखना: 20 मई 2014 को दुनिया ने पीएम मोदी के मूल्यों का एक उदाहरण देखा। जबरदस्त जनाधार के बाद जब वे पहली बार संसद भवन पहुंचे तो पहले लोकतंत्र के मंदिर पर सिर झुकाकर आशीर्वाद लिया। सीढ़ियों को चूमा। ये क्षण अद्भुत था, जिसे देखकर कई लोग भावुक हुए और पीएम मोदी की तारीफ की। साल 2019 में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। भाजपा और एनडीए के संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद पीएम मोदी ने संसद के सेंट्रल हॉल में संबोधन दिया, लेकिन इससे पहले उन्होंने भारतीय संविधान के आगे शीश झुकाया।

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कोई पत्थर मारे तो उसे मील का पत्थर बना लें: साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा था कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति को 100 दिनों के अंदर पीएम मोदी से मिलना चाहिए। अमेरिकी थिंक टैंक का ये सुझाव बताता है कि अमेरिका भी मोदी की महत्ता को समझता है। ये वही अमेरिका है जिसने साल 2005 में नरेंद्र मोदी को वीजा तक देने से मना कर दिया था। पीएम मोदी की ये खूबी है। जो लोग आप पर पत्थर मारे, आप उन पत्थरों से मील का पत्थर बना लें। 

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साथ काम करने वालों का हमेशा ख्याल रखना: प्रधानमंत्री होने के बाद भी नरेंद्र मोदी हमेशा छोटी से छोटी चीजों का ख्याल रखते हैं। उनके व्यक्तित्व के इस पहलू को समझने के लिए एक घटना का जिक्र जरूरी है। बात साल 2013 की है, जब वे पीएम भी नहीं बने थे। आर एस नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा, किसी के पास दो टिकट है? मेरी 85 साल की मां नरेंद्र मोदी को एलबी ग्राउंड (हैदराबाद) में बोलते हुए देखना चाहती है। पीएम मोदी ने इस ट्वीट का रिप्लाई किया और कहा, मुझे जानकर खुशी हुई कि वे मेरी रैली में आना चाहती हैं। मैंने भाजपा कार्यकर्ताओं से कह दिया है, वे उनकी मदद करेंगे। इसके बाद रैली में पीएम मोदी ने उस महिला से व्यक्तिगत मुलाकात की और आशीर्वाद लिया।

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माता-पिता को कभी न भूलना: नरेंद्र मोदी अपनी हर सफलता के बाद मां का आशीर्वाद लेने घर जाते हैं। साल 2019 में जब देश ने उन्हें दोबारा पीएम पद के लिए चुना तो वे शपथ ग्रहण से पहले मां से मिलने गुजरात गए। इससे पहले भी साल 2016 में पीएम मोदी वाइब्रेंट गुजरात समिट में शामिल होने पहुंचे थे, इसी दौरान अचानक सुबह-सुबह अपनी मां से मिलने पहुंच गए। उन्होंने मां के साथ ब्रेकफास्ट किया। अपने 66 वें जन्मदिन पर भी पीएम मोदी मां से मिलने पहुंचे थे। तब वे करीब आधा घंटा मां के साथ ही थे। इस दौरान पूरे वक्त मां का हाथ थामे रहे। मुलाकात के बाद उन्होंने ट्वीट किया था, मां की ममता, मां का आशीर्वाद जीवन जीने की जड़ी-बूटी है।

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राष्ट्रीय प्रतीकों का हर स्थिति में सम्मान: पीएम मोदी का व्यक्तित्व सिखाता है कि हर स्थिति-परिस्थिति में देश और देश के राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना जरूरी है। उनके इस व्यक्तित्व का उदाहरण साल 2015 में पूरी दुनिया ने देखा था। रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन था। ग्रुप फोटो के लिए सभी देशों के प्रतिनिधियों को मंच पर बुलाया गया। वहां हर प्रतिनिधी को खड़ा होने के लिए एक जगह निश्चित की गई थी और संकेत के लिए उस देश का तिरंगा वहां बना था। जब पीएम मोदी मंच पर आए तो उन्होंने पूरा ध्यान रखा कि पैर तिरंगे के ऊपर न पड़े।  

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लक्ष्य पाने के लिए कोई भी काम छोटा नहीं: पीएम मोदी ने साबित किया है कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। लक्ष्य बड़ा होता है। साल 2014 में पीएम मोदी का लक्ष्य स्वच्छ भारत अभियान था। इसे लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए पीएम मोदी ने खुद झाड़ू उठाई। आस पास की गंदगी को साफ किया। पीएम मोदी को देखकर पार्टी के नेता और फिर आम जनता साफ सफाई करने में जुट गए। 

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बड़े पद पर रहकर भी याद रखें मानवता: पीएम मोदी के व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है कि आप चाहे जितने भी बड़े पद पर रहें। मानवता को हमेशा याद रखें। उससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी की तस्वीर लेने के चक्कर में एक फोटोग्राफर गिर गया। इसके बाद पीएम मोदी ने तुरन्त उसे हाथ देकर जमीन से उठने में मदद की। आमतौर पर देखा गया है कि ऐसे में लीडर की सुरक्षा में लगे सिक्योरिटी गार्ड मदद कर देते हैं। कई नेता तो ध्यान भी नहीं देते कि कौन गिर रहा है। लेकिन पीएम मोदी ने ऐसा नहीं किया। वे रुके और उस पत्रकार की उठने में मदद की।

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परिवार से बढ़कर देश के लिए करें: पीएम मोदी ने अपने कामों से साबित किया है कि उनके लिए परिवार से बढ़कर देश है। अगर कोई त्यौहार होता है तो भी पीएम मोदी अपने घर की बजाय उन लोगों के साथ रहते हैं जो देश के लिए अपनी जान लगाए हुए हैं। बात 2014 की है। जब नरेंद्र मोदी पहली बार पीएम बने थे। तब उन्होंने अपनी दीवाली इंडियन आर्मी के साथ सियाचिन में मनाई थी। उस वक्त वहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था। आज तक पीएम मोदी ने इस रिवाज को कायम रखा है और हर साल दिवाली जवानों के साथ ही मनाते हैं।

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बड़ों के साथ बच्चों पर फोकस रखें: पीएम मोदी सिर्फ बड़ों को ही प्रभावित नहीं करते हैं, बल्कि बच्चों में भी उनका क्रेज है। इसके लिए मेलोडी सबनानी एक बेहतर उदाहरण हैं। 9 साल की मेलोडी हांगकांग की नागरिक है। नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी फैन। वह हमेशा उनसे मिलना चाहती थी। मेलोडी ने पीएम मोदी के एक पत्र लिखा और कहा कि वह स्वच्छ गंगा के लिए वह कुछ योगदान देना चाहती हैं। पीएम मोदी ने खत का जवाब दिया कि चीन में अपनी यात्रा के दौरान वे उनसे मिलेंगे। फिर शंघाई में पीएम मोदी ने उस बच्ची से मुलाकात की। 

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दोस्तों के लिए कोई प्रोटोकॉल नहीं: पीएम मोदी ने पब्लिक रैली से लेकर किसी देश के प्रतिनिधि से मिलने के दौरान हमेशा ये साबित किया है कि दोस्तों से मुलाकात के लिए वे प्रोटोकॉल तोड़ने में हिचकते नहीं हैं। बराक ओबामा से मुलाकात के दौरान ऐसा ही हुआ था। इसके अलावा सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अहमदाबाद में स्वागत करना हो, नवंबर 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका के साथ हैदराबाद में डिनर या फिर जनवरी 2018 में इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का दिल्ली एयरपोर्ट पर स्वागत करना हो, हर बार उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर मुलाकात की है। 

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