यह है एशिया का सबसे अमीर गांव, जानिए इसके पीछे की कहानी...
एशिया के सबसे अमीर गांवों में शामिल हिमाचल का यह गांव। हर परिवार की सालाना आमदनी 70 से 75 लाख रु। 1800 की आबादी वाले इस गांव से इस साल करीब 7 लाख पेटी सेब निकलेंगे।
शिमला: हिमाचल प्रदेश पूरी दुनिया में अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर है। हिमाचल की खूबसूरती को देखकर ऐसा लगता है मानो धरती का स्वर्ग यहीं हो। राजधानी शिमला को तो वैसे ही पहाड़ियों की रानी कहा जाता है। लेकिन हिमाचल सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बल्कि सेबों की खेती के लिए भी खूब मशहूर है। यहां के सेब विदेशों तक पसंद किए जाते हैं। और अब सेब की खेती से शिमला का मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है। गांव के लोगों की आय का मुख्य साधन खेती ही है। मड़ावग गांव की जनसंख्या करीब 2000 है और लोगों की आय लगभग 1.5 अरब है। मड़ावग गांव में हर जगह सेब के बाग देखने को मिलते हैं। इस गांव में हर व्यक्ति के पास आलीशान मकान हैं सालाना आमदनी 70 से 75 लाख है। गांव में हर साल, 150 करोड़ लागत के सेबों का उत्पादन किया जाता है। सेब अधिकतर विदेशों में निर्यात किए जाते हैं।
करते हैं नई तकनीक का प्रयोग : मड़ावग गांव के लोग नई-नई तकनीकों का प्रयोग करके सेबों की खेती करते हैं। यहां के लोग इंटरनेट के माध्यम से विदेशों से भी जानकारी हासिल करते रहते हैं। गांव के किसान इंटरनेट के माध्यम से बाजार का भाव जानकर ही सेबों को बेचते हैं। मड़ावग गांव के बुजुर्गो ने सेब उत्पादन के जो बीज बोए थे, युवाओं ने उसे मेहनत और लगन का खाद-पानी दिया। गांव के युवाओं ने सरकारी नौकरी की बजाय सेब उत्पादन में महारत हासिल करने पर ध्यान दिया और इसकी खेती आधुनिक तकनीक से की। इस समय गांव में विदेशी किस्मों के सेब सफलता से उगाए जा रहे हैं। चीन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और इटली को टक्कर देने में यहां के बागवान सक्षम हैं। यहां पैदा हुए सेब की देश की बड़ी मंडियों जैसे मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता में भारी मांग है। विदेशों को भी यहां के सेबों का निर्यात किया जाता है। ट्रॉपिकाना कंपनी के एप्पल जूस में मड़ावग के कुछ सेब किस्मों को प्रेफर किया जाता है। गांव के बागवानों ने अपनी लगन से ये मुकाम हासिल किया है।
बर्फबारी से बचाने के लिए सालभर चलती है पेड़ों की देखरेख: मड़ावग के सेब का साइज बहुत बड़ा है। अच्छी बर्फ गिरने से यहां के सेब की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि सेब जल्दी खराब नहीं होते। लोग सेब बागानों की देखभाल अपने बच्चों की तरह करते हैं। ठंड के मौसम में बागीचों में रात-दिन डटे रहते हैं। जीरो डिग्री से भी कम तापमान में लोग पेड़ों से बर्फ हटाते हैं। बर्फ पेड़ों की शाखाओं को तोड़ सकती है। अप्रैल से लेकर अगस्त-सितंबर तक फसल तैयार होती है। इस बीच अगर ओले गिर जाएं तो पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। ओलों से फसल बचाने के लिए बगीचों के ऊपर नेट लगाए जाते हैं।
इतिहास: 1954 में मड़ावग गांव का एक किसान एक बार कोटखाई से कुछ सेब के पौधे लेकर आया था। लाए गए सेब के पौधों को उसने अपनी जमीन पर रोपा। कोटखाई में उस समय सेबों का उत्पादन बहुत होता था। किसान द्वारा लगाए गए पौधों में पहली बार फल लगे और उन्हें मंडी में बेचा गया। सेबों को बेचकर उसने पास आठ हजार रुपए कमाए। धीरे-धीरे मड़ावग गांव के लोगों ने भी सेब के पौधे लगाने शुरू किए। इसका नतीजा है कि मड़ावग गांव आज एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है। गांव में 80 के दशक तक सेब नहीं था। लेकिन अब, 1800 की आबादी वाले इस गांव से हर साल करीब 7 लाख पेटी सेब निकलते हैं। वह भी देश में सबसे अच्छी क्वालिटी के सेब। रॉयल एप्पल, रेड गोल्ड, गेल गाला जैसी किस्में किसानों ने लगाई हैं। आज मड़ावग पंचायत से 12 से 15 लाख बॉक्स सेब हर साल दुनियाभर में जाता है।