Published : Oct 15, 2021, 11:25 AM ISTUpdated : Oct 15, 2021, 11:26 AM IST
नई दिल्ली. विजया दशमी (Dussehra 2021) के मौके पर रावण की क्रूरता की कहानियां सुनाई जाती हैं। रामलीला में मंचन किया जाता है। रावण (Ravan) का वध किया जाता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि रावण का वध कर देना भर ही विजया दशमी है? शायद नहीं। विजया दशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत। झूठ पर सच की जीत। ये जीत लगातार जारी रहे। इसके लिए अपने आस-पास फैली बुराईयों की पहचान जरूरी है। आज ऐसी है एक बुराई के बारे में बताते हैं। एक ऐसी जगह जहां हर घर में रावण यानी बुरे इंसानों का वास है। हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के फाटा की। ये एक ऐसी जगह है जहां पर आतंकवादियों का अड्डा है। इसे फेडरल एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरियाज (Federally Administered Tribal Areas) के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान की वह जगह जहां बसते हैं दुनिया के खुंखार आतंकी (रावण)....?
Federally Administered Tribal Areas यानी फाटा उत्तर पश्चिम पाकिस्तान में है। इसे साल 2018 में खैबर पख्तूनख्वां में मिला दिया गया। यहां 7 ट्राइबल एजेंसिया यानी जिले और छह फ्रंटियर एरिया हैं।
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ये जगह पाकिस्तान के प्रांतों खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान, पंजाब और अफगानिस्तान के कुनार, नंगरहार, पक्तिया, खोस्त और पक्तिका से जुड़ती है।
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फाटा को लेकर सबसे दिलचस्प किस्सा ये है कि ये अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद ये आतंकवाद का गढ़ बन गया। पाकिस्तान आर्मी ने यहां पर साल 2001 के बाद 10 बड़े ऑपरेशन चलाए। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। आतंकी कम नहीं हुए।
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दर्रा आदम खल (Dara Adamkhel) फाटा (Federally Administered Tribal Areas) की डेंजर जगहों में से एक है। हालांकि पहले ये फाटा में आती थी, लेकिन अब खैबर पख्तूनख्वां के कोहत जिले में आती है। दर्रा आदम खल को लेकर कहा जाता है कि यहां पर सब्जियों की तरह ही हथियारों की मंडी लगती है।
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दर्रा आदम खल में रहने वाले लोगों के बारे में कहते हैं कि यहां पर एंटी एयरक्राफ्ट से लेकर पेन गन तक बनाते हैं। यहां जो लोग हथियार बेचते हैं उनका कहना है कि दुनिया में ऐसा कोई हथियार नहीं, जिसे हम नहीं बना सकते हैं।
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दर्रा आदम खल (Dara Adamkhel) में गली-गली में हथियारों की दुकाने हैं। यहां 75 फीसदी लोग अवैध हथियार बनाने का काम करते हैं। दर्रा आदम खल में हथियारों की बिक्री कब से शुरू हुई, इसे लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत 1857 में बिद्रोहियों ने ब्रिटिश आर्मी के खिलाफ की थी। दर्रा से इन हथियारों की डिमांड तब बढ़ी, जब 1979 में रशिया ने अफगानिस्तान पर हमला किया था।
नोट- इस खबर में इस्तेमाल सभी तस्वीरें सांकेतिक हैं।