व्यापारी होने के बावजूद वह सियासी, सांस्कृतिक, सामाजिक व साहित्यक सरोकारों में सक्रिय रहे। नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी ही नहीं डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे खांटी समाजवादी के भी प्रिय रहे। पं. दीनदयाल उपाध्याय और भाऊराव देवरस के सानिध्य का तो सौभाग्य टंडन को मिला ही। सुचेता कृपलानी, जेवी कृपलानी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन सियासी शख्सियतों के साथ अमृतलाल नागर, श्री नारायण चतुर्वेदी, भगवतीचरण वर्मा और यशपाल जैसी साहित्यिक हस्तियों की नजदीकी का लाभ भी उन्हें मिला।