दर्दनाक तरीके से बनाए जाते हैं नपुंसक, ठंडी हो या गर्मी रहते हैं निर्वस्त्र; ऐसी होती है नागा साधुओं की दुनिया
प्रयागराज (Uttar Pradesh). संगम की रेती पर इन दिनों माघ मेला चल रहा है। मेले में गंगा किनारे कल्पवास करने के लिए पूरे देश से तमाम साधु सन्यासी पहुंचे हैं। इन साधुओं की वेशभूषा, इनका आचरण, रहन-सहन का तरीका लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इन्हीं में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बने हैं नागा साधु। हालांकि इस बार कुंभ की अपेक्षा नागा साधु काफी काम संख्या में आए हैं। आज हम आपको इन्हीं नागा साधुओं के बारे में तमाम अनुसने किस्से बताने जा रहे हैं। ASIANET NEWS HINDI ने माघ मेले में धूनी रमाये नागा संत अमर गिरि से बात की। उन्होंने नागाओं के बारे में कई बातें साझा की।
Asianet News Hindi | Published : Jan 21, 2020 7:03 AM IST / Updated: Jan 21 2020, 12:45 PM IST
नागा साधु अमर गिरि ने बताया, नागा साधु बनने के लिए यह प्रक्रिया सबसे खास मानी जाती है। नागा बनने के लिए किसी साधु को अवधूत बनने की परीक्षा देनी होती है। इस प्रकिया में सबसे पहले मुंडन किया जाता है इसके बाद स्वयं को मृत मानकर अपने हाथों से श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। यानि जीवित रहते ही खुद के मरने के सारे क्रिया कर्म करने होते हैं।
सबसे पहले नागा बनने के लिए किसी नागा अखाड़े में जाना होता है। वहां कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। अखाड़ा अपने स्तर पर उसके व उसके परिवार के बारे में तहकीकात करता है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
नागा साधुओं को सिर्फ एक टाइम ही भोजन करना होता है। उसके लिए भी उन्हें भिक्षा मांगनी होती है। उसका भी खास नियम है। वह एक दिन में सिर्फ सात घरों में भिक्षा मांग सकते हैं। अगर उन्हें कहीं भी भिक्षा न मिली तो उन्हें उस दिन भूखा रहना पड़ता है।
अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा में पास होने के बाद उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं। जिसके बाद स्वयं को मृत मानकर पिंडदान करना होता है। उसके बाद साधु को नग्न अवस्था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है। इसके बाद वरिष्ठ नागा साधु लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा दिगंबर साधु बन जाता है।
नागा साधु कभी बिस्तर या चारपाई पर नहीं सो सकता है। वह सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गद्दी पर सोने की भी मनाही होती है।
नागासाधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।