ये है हड्डियों की सड़क, इसे बनाने के लिए 'मार' दिए गए 10 लाख लोग

मास्को. रूस के पूर्वी इलाके में स्थित कोलयमा हाइवे एक बार फिर चर्चा में है। रूस के इरकुटस्‍क इलाके में बने 2,025 किमी लंबे इस हाइवे पर एक बार फिर इंसानी हड्डियां और कंकाल मिले हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं है, जब यहां हड्डियां और कंकाल निकले हैं। इसलिए इसे हड्डियों की सड़क के नाम से भी जाना जाता है। आईए जानते हैं इस सड़क की पूरी कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Nov 23, 2020 10:16 AM IST
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ये है हड्डियों की सड़क, इसे बनाने के लिए 'मार' दिए गए 10 लाख लोग

सड़क पर हड्डियां मिलने के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी। वहीं, यहां के स्थानीय सांसद निकोलय त्रूफनोव ने कहा, सड़क पर बालू के साथ इंसान की हड्डियां बिखरी पड़ी हैं। यह काफी भयावह नजारा है। मैं इसका वर्णन भी नहीं कर सकता। 

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हड्डियों से क्यों बनाई गई सड़क?
इस सड़क को बनाने में हड्डियां इसलिए इस्तेमाल की गईं, ताकि ठंड के मौसम में बर्फ से जम जाने वाले इस इलाके में सड़क पर गाड़‍ियां न फिसलें। सोवियत संघ में तानाशाह स्टालिन के समय बनी इस सड़क की कहानी बहुत भयावह है। इसमें ढाई लाख से लेकर 10 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

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1930 में शुरू हुआ था हाईवे का निर्माण
यह हाइवे 1930 में बनना शुरू हुआ था। उस वक्त सोवियत संघ में स्‍टालिन की तानाशाही थी। यह हाईवे पश्चिम में निझने बेस्‍टयाख को पूर्व में मगडान से जोड़ता है। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक,  इस हाइवे को बनाने में गुलग के 10 लाख कैदियों और बंधुआ मजदूरों का इस्‍तेमाल किया गया।

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इन कैदियों में साधारण दोषी और राजनीतिक अपराध के दोषी दोनों ही तरह के लोग शामिल थे। इन कैदियों में रॉकेट वैज्ञानिक सर्गेई कोरोलेव भी थे, जिन्होंने आगे चलकर 1961 में रूस को अंतरिक्ष में पहला इंसान भेजने में मदद की। इन कैदियों में शामिल महान कवि वरलम शलमोव ने अपनी किताब में लिखा, तीन सप्‍ताह तक खतरनाक तरीके से काम, ठंड, भूख और पिटाई के बाद जानवर बन जाता था।

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बताया जाता है कि सड़क को बना रहे कैदियों को कटीले तार के दूसरी ओर गिरे बेरी के दाने इकट्ठा करने पर गोली मार दी जाती थी। फिर मरे हुए कैदियों को सड़क में ही दफन कर दिया जाता था। यहां से सिर्फ 20% कैदी ही वापस जिंदा जाते थे।

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जो कैदी यहां से भागने की कोशिश करते थे, वे सिर्फ 2 हफ्ते तक ही जिंदा रह पाते थे। इस दौरान वे या तो ठंड से मर जाते थे या उन्हें जानवर खा जाते थे। 

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