दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एयर पॉल्यूशन का लेवल एक बार फिर बढ़ गया है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि यह समस्या कोई एक दिन में सामने नहीं आई है। वायु प्रदूषण से सांस से जुड़ी बीमारियां होती हैं, लेकिन एक रिसर्च से पता चला है कि इससे हार्ट डिजीज में भी वृद्धि होती है।
हेल्थ डेस्क। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एयर पॉल्यूशन का लेवल एक बार फिर बढ़ गया है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि यह समस्या कोई एक दिन में नहीं बनी है। वायु प्रदूषण से सांस से जुड़ी बीमारियां होती हैं, लेकिन एक रिसर्च से पता चला है कि इससे हार्ट डिजीज में भी वृद्धि होती है। अभी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में दिल की बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पतालों में सांस और दमे के रोगियों के अलावा हार्ट प्रॉब्लम्स को लेकर भी लोग आ रहे हैं। इस समस्या से बुजुर्ग लोगों को ज्यादा परेशानी होती है। बहरहाल, यह रिसर्च दक्षिण भारत के निम्न आय वर्ग के लोगों के बीच की गई। शोध के लिए उन बस्तियों को चुना गया, जहां गरीब लोग रहते हैं और वायु प्रदूषण ज्यादा होता है।
इस अध्ययन में हैदराबाद और तेलंगाना के 3372 लोगों को शामिल किया। ये सभी निम्न आय वर्ग के लोग थे और गंदी बस्तियों में रहते थे, जहां वायु प्रदूषण की समस्या ज्यादा होती है। रिसर्च में पाया गया कि वायु प्रदूषण के शिकार लोगों में सांसों से जुड़ी समस्या के साथ दिल की बीमारियों के लक्षण भी थे। काफी लोग उच्च रक्तचाप की समस्या से भी पीड़ित पाए गए।
रिसर्च टीम की प्रमुख बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की शोधकर्ता कैथरीन टोनी का कहना था कि उन्होंने उन लोगों के बीच स्टडी की गई जो खाना बनाने के लिए बायोमास ईंधन का इस्तेमाल करते हैं और जहां हवा के आने-जाने की गुंजाइश कम होती है। इससे जो प्रदूषण होता है, उसका असर सीधा दिल पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि ऐसी जगहों पर पीएम 2.5 कण ज्यादा पाए गए। उनका कहना था कि वायु प्रदूषण दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
शोधकर्ताओं का कहना था कि गरीबी इस समस्या का एक प्रमुख कारण है, लेकिन यह एकमात्र वजह नहीं है। देखने में आता है कि जो लोग धनी हैं, वे कई तरह के उपकरणों और ज्यादा से ज्यादा कारों का इस्तेमाल कर वातावरण को ज्यादा प्रदूषित करते हैं। सिर्फ मास्क लगा कर इस समस्या से बचाव नहीं हो सकता। यह लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्या बन गई है। हर जगह की हवा विषाक्त होती जा रही है। शोधकर्ताओं का कहना था कि कोई भी इस समस्या के समाधान के लिए कुछ ज्यादा नहीं कर सकता, क्योंकि इसकी जड़ें हमारी जीवनशैली में हैं। इसलिए एक हद तक ही बचाव संभव है। शोधकर्ताओं का कहना था कि आने वाले दिनों में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियां और मौतों में और भी इजाफा होगा। लोगों के सामने डॉक्टरों से इलाज कराने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प नहीं होगा। उनका कहना था कि यूरोप के विकसित देशों में यह समस्या नहीं है।