शादी पर संकट आया और सफलता पर भी उठे सवाल, एक ऐसा इंसान जिसने जीवन में सिर्फ बोले हैं झूठ

बचपन से सिखाया जाता है कि झूठ बोलना गलता है, बावजूद इसके लोग झूठ बोलते हैं। कुछ लोग तो झूठ बोलने के शिकार होते हैं। वो बिना झूठ बोले रह ही नहीं सकते हैं। इस आदत को मायथोमेनिया और स्यूडोलोगिया फैंटेसी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे।

हेल्थ डेस्क. थियेटर से जुड़े क्रिस्टोफर मैसीमाइन झूठ नहीं बोलने की कोशिश में लगे हुए हैं। वो झूठ नहीं बोले इसके लिए थेरेपिस्ट से इलाज करा रहे हैं। कुछ महीने पहले उनका झूठ तब पकड़ा गया जब एक रिपोर्टर ने बताया कि उन्होंने नौकरी पाने के लिए क्रिस्टोफर ने रिज्यूमे में झूठी बातें लिखी हैं। जिसके बाद उन्हें नौकरी से रिजाइन करना पड़ा था। इसके बाद पता चला कि उन्होंने जीवन में सिर्फ झूठ ही बोला है। एक के बाद एक इसका खुलासा हुआ।

न्यूयॉर्क टाइम्स की छपी रिपोर्ट में, क्रिस्टोफर ने एक बार दोस्त को बताया कि वो तिब्बत के रास्ते माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है, जबकि वो उस वक्त कंबोडिया में थे।इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि वो इटली में पैदा हुए हैं। जबकि उनकी पैदाइश न्यू जर्सी में हुई थी। वो अपनी पत्नी से भी झूठ बोलते आए थे। उन्होंने उससे एक बार कहा कि टीवी एक्ट्रेस कोर्टनी कार्देशियान उनके प्यार में पागल थी। ये भी झूठी बात निकली। जब उनके झूठ की परत खुलने लगी तो शादी पर संकट आ गया।  दरअसल उनका झूठ बोलना मानसिक रूप से बीमार होने का नतीजा है।

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बचपन से ही झूठ बोलने की आदत बन गई थी

वो ऐसे पहले इंसान नहीं जो ऐसा कर रहे हैं। साल 1891 में जर्मनी के मनोविज्ञानी एंटोन डेलब्रुक झूठ बोलने वालों को  'स्यूडोलोगिया फैंटेसी 'का नाम दिया था। ऐसे लोग सामने वालों को प्रभावित करने के लिए झूठ गढ़ते हैं। क्रिस्टोफर अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए दूसरी क्लास से ही झूठ बोलना शुरू कर दिए थे।  फिर धीरे-धीरे झूठ बोलना उनकी आदत बन गई। 

इतने प्रतिशत लोग बोलते हैं झूठ

झूठ बोलने को लेकर एक सर्वे भी हुआ। साल 2010 में मिशिनग स्टेट यूनिवर्सिटी ने अमेरिकियों के झूठ बोलने पर सर्वे किया। जिसमें 60 प्रतिशत ने माना कि आने वाले 24 घंटे में वो झूठ नहीं बोलेंगे। जबकि 24 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो दिन में एक से दो बार झूठ बोल ही देते हैं। सर्वे में शामिल कुछ लोग राजनीति से जुड़ थे तो कुछ बिजनेसमैन थे। सर्वे में कुछ 5.3 प्रतिशत लोग झूठ बोलते पाए गए। कुछ लोग मजबूरी में झूठ बोलते पाए गए तो कुछ लोग बिना औचित्य के झूठ बोलते पकड़े गए। वो सिर्फ समाज में सम्मान पाने के लिए झूठ बोलते दिखाई दिए। 

पैथोलॉजिकल लाई झूठ बोलने की एक कम्पलसिव हैबिट है। कुछ लोग बिना किसी कारण ही झूठ बोलते हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो यह पर्सनालिटी डिसऑर्डर या एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का परिणाम हो सकता है।

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