हार्ट अटैक के बारे में आम तौर पर सभी लोग जानते हैं, पर दिल से जुड़ी कई बीमारियां होती हैं। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम भी उन्हीं में से एक है, जिसके बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है।
हेल्थ डेस्क। ब्रोकन हार्ट यानी दिल का टूटना। दिल टूटने की बातें काफी लोग किया करते हैं, लेकिन यह एक इमोशनल एक्सप्रेशन होता है। इसका संबंध किसी बीमारी से नहीं होता। अक्सर प्यार में लोग कहा करते हैं कि उनका दिल टूट गया है। लेकिन दिल का टूटना एक बीमारी भी है, जिसके बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है। आम तौर पर लोग दिल से जुड़ी बीमारियों में हार्ट अटैक के बारे में ही ज्यादा जानते हैं। हार्ट अटैक में दिल की धमनियों में रक्त का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाता है। ऐसा उनमें ब्लौकेज के कारण होता है। वहीं, कार्डियक अरेस्ट में दिल अचानक काम करना बंद कर देता है और व्यक्ति की तत्काल मौत हो सकती है। लेकिन ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में दिल की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं और इस वजह से वह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है। इसके लक्षण अचानक सामने नहीं आते, पर इस बीमारी के होने पर व्यक्ति थकावट और कमजोरी महसूस करने लगता है, क्योंकि इसमें दिल का एक हिस्सा बड़ा हो जाता है और इससे सही तरीके से रक्त की पंपिंग में दिक्कत होती है।
क्या हैं लक्षण
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के लक्षण भी हार्ट अटैक से मिलते-जुलते होते हैं। इसमें भी अचानक सीने में तेज दर्द उठता है। पर आराम करने से धीरे-धीरे दर्द कम हो जाता है। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की पहचान कर पाना मुश्किल होता है, क्योंकि इसमें भी ऐसा लगता है मानो दिल का दौरा पड़ा हो। लेकिन डॉक्टर जांच कर यह पता कर सकते हैं कि यह दिल का दौरा है कि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम। इस बीमारी के होने पर भी दिल कमजोर हो जाता है और मरीज अक्सर घबराहट महसूस करता है।
क्या होता है इस बीमारी में
इस बीमारी में दिल का कोई एक हिस्सा अचानक काम करना बंद कर सकता है। लेकिन न तो हार्ट के किसी वॉल्व में खराबी आती है और न ही धमनियों में किसी तरह की रुकावट आती है। ब्लड सर्कुलेशन भी सही बना रहता है। लेकिन दिल के किसी हिस्से के अस्थायी रूप से कमजोर पड़ जाने या काम करना बंद कर देने से अचानक तेज दर्द और बेचैनी होती है या लकवे जैसे लक्षण भी उभरने लगते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए।
किस उम्र में होती है यह बीमारी
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम ऐसे तो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है, पर 50 से 70 वर्ष के बीच के उम्र के लोगों को यह बीमारी होने की संभावना ज्यादा होती है। तनाव के शिकार लोगों को यह बीमारी ज्यादा होती है।
जा सकती है जान
डॉक्टरों का कहना है कि अगर समय रहते इस बीमारी की पहचान नहीं की गई और इसका सही इलाज नहीं किया गया तो इसमें जान जाने का भी खतरा होता है। वैसे हार्ट अटैक से इसे कम खतरनाक माना गया है, पर इसमें भी नियमित दवा लेनी पड़ती है और खान-पान में परहेज बरतना होता है।
औरतों को ज्यादा होती है यह बीमारी
डॉक्टरों का मानना है कि पुरुषों के मुकाबले औरतों को यह बीमारी ज्यादा होती है। खास कर मेनोपॉज के बाद इस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है। मेनोपॉज के बाद औरतों में एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में गिरावट आती है। इसका असर उनके ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टम पर पड़ता है। मेनेपॉज के बाद कई बार महिलाओं में स्ट्रेस का लेवल बढ़ जाता है, जिससे हृदय की मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है और वे कमजोर होने लगती हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए तनाव पैदा करने वाली परिस्थितियों से दूर रहना चाहिए।