गुजरात में कीमती पत्थर तराशनेवालों को हो रही ये लाइलाज बीमारी, अबतक कई लोगों की जा चुकी है जान

गुजरात के खंभात इलाके में कीमती पत्थर तराशने का काम करने वाले लोग एक ऐसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं, जो उनकी जिंदगी को वक्त से पहले छीन रहा है। रोजीरोटी के चक्कर में वो मौत के शिकार हो रहे हैं। इस लाइलाज और जानलेवा बीमारी का नाम हैं सिलोकोसिस। आइए जानते हैं इसके लक्षण और ट्रीटमेंट।

हेल्थ डेस्क. गुजरात के खंभात इलाके में कीमती पत्थर तराशने वाले मजदूरों को सिलोकोसिस बीमारी हो रही है। अबतक ना जाने कितने परिवार इस बीमारी से उजड़ गए हैं। कीमती पत्थर तराशने के ज्यादातर लोग इस लाइलाज और जानलेवा बीमारी के चपेट में आ रहे हैं। दरअसल, पत्थर को तराशने के दौरान सिलिका निकलता है जो मजदूरों के अंदर जा रहा है और वो इस बीमारी के जद में आ रहे हैं। 

सिलिकोसिस होने के कारण

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सिलिकोसिस फेफड़ों से जुड़ा रोग है। यह उनलोगों को होता है जो ऐसी फैक्ट्रियों या जगहों पर काम करते हैं जहां पर धूल में सिलिका पाया जाता है। पत्थर या फिर खनिजों कणों में सिलिका पाया जाता है जो काफी सूक्ष्म कण होते हैं। धूल के जरिये यह व्यक्ति के सांसों में चला जाता है और धीरे-धीरे उनके फेफड़ों में जमा होने लगता है। सिलिका फेफड़ो में जमा होने की वजह से वहां स्कार बनने लग जाता हैं , जिसकी वजह से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। सिलिका फेफड़ों में ब्लेड की तरह काम करता है।इसके नुकीले हिस्से इसे चीरने लगते हैं। कुछ शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि सिलिका कार्सिनोजन है जो कैंसर का कारण बन सकती है। इससे फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।

सिलिकोसिस तीन प्रकार के होते हैं।

एक्यूट सिलिकोसिस-इसमें अगर कोई शख्स दो साल से सिलिका के संपर्क में आ रहा है और अचानक दो वीक के अंदर इस बीमारी के लक्षण महसूस होने लगे तो इसे एक्यूट सिलिकोसिस कहते हैं।

क्रोनिक सिलिकोसिस-यदि कोई शख्स कम मात्रा में सिलिका के संपर्क में आ रहा हो और कई दशकों के बाद लक्षण महसूस होता है तो इसे क्रोनिक सिलिकोसिस कहते हैं। इसके लक्षण शुरुआत में ज्यादा डरावने नहीं होते हैं, लेकिन बाद में बदतर होने लगते हैं।

एक्सलरेटेड सिलिकोसिस-यदि 5 से 10 साल से अधिक वक्त में सिलिका के संपर्क में रहते हैं और अचानक इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं तो इसे एक्सलरेटेड सिलिकोसिस कहते हैं।इसके लक्षण बहुत जल्द गंभीर होने लगते हैं।

सिलिकोसिस के लक्षण-
सांस लेने में दिक्कत
कफ और लगातार खांसी
वजन कम होना
थकान
टांगों में सूजन
अचानक बुखार होना
छाती में दर्द
होंठ नीले पड़ जाना
 

सिलिका से बचाव

फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को मास्क लगाकर काम करना चाहिए।
कार्यस्थल पर उचित वेंटिलेशन रखें।
पिसाई की सामग्री को गीला कर लें।
फैक्ट्री में जहां सिलिका पाया जाता है वहां खाए-पीए नहीं।
खाने से पहले अपनी हाथों को अच्छी तरह साफ कर लें।
काम से लौटने के बाद बिना नहाए ना घूमें।

सिलिकोसिस के ट्रीटमेंट

अभी तक इस बीमारी का का कोई सटीक इलाज नहीं बना है। कुछ दवाओं के जरिए इसे दूर करने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा 
 ऑक्सीजन थेरेपी  दी जाती है। मामला ज्यादा बिगड़ने पर लंग ट्रांसप्लांट सर्जरी की जाती है। सिलिकोसिस के मरीज को धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि धूम्रपान से फेफड़ों को क्षति पहुंचती है। सिलिका के संपर्क में आने वाले मजदूर को डॉक्टर के पास रेगुलर चेकअप के लिए जाना चाहिए।इंडियन काउंसिल और मेडिकल रिसर्च ने 1991 में स्टडी की थी जिसमें 30 लाख मजदूरों को यह बीमारी होने की आशंका थी।

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