असहयोग आंदोलन के दौरान गोरखपुर के चौरी-चौरा में सत्याग्रहियों ने मार्च निकाला था। पुलिस ने सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज कर दिया था। इसके बाद पुलिस द्वारा गोलीबारी की गई। घटना के विरोध में उग्र भीड़ ने पुलिस चौकी को जला दिया था।
नई दिल्ली। भारत अपनी आजादी का 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर एशियानेट हिंदी आजादी की लड़ाई से जुड़ी कहानियां आप तक पहुंचा रहा है। इसी कड़ी में आज हम आपको चौरी-चौरा कांड के बारे में बता रहे हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश के युवा सड़कों पर उतर आए थे। इस आंदोलन को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जनता का समर्थन मिला था। आंदोलन देश के सभी प्रांतों में सफल साबित हो रहा था कि 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा में एक बड़ी घटना हो गई, जिसे चौरी-चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।
क्या हुआ था उस दिन?
4 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा में बड़ी संख्या में सत्याग्रही शांति से मार्च निकाल रहे थे, लेकिन पुलिस ने मार्च निकालने से मना कर दिया। सत्याग्रहियों ने पुलिस की नहीं सुनी तो पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर किया। इससे सत्याग्रहियों का गुस्सा फूट पड़ा। पुलिस ने सत्याग्रहियों पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे 11 सत्याग्रही शहीद हो गए और 50 से ज्यादा घायल हो गए। जब पुलिस की गोलियां खत्म हो गईं तो भीड़ ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। पुलिसवाले भागकर पुलिस चौकी में छिप गए। उग्र भीड़ ने दुकानों से मिट्टी का तेल लिया और पुलिस चौकी फूंक डाली। इस हादसे में थानेदार सहित 23 पुलिसकर्मी मारे गए थे।
गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया
इस घटना के बाद गांधी जी ने पुलिसकर्मियों की हत्या की निंदा की और आसपास के गांवों में स्वयंसेवक समूहों को भंग कर दिया। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में हिंसा का प्रवेश देखकर इसे वापस लेना का फैसला किया। उन्होंने अपनी इच्छा ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ को बताई और 12 फरवरी 1922 को यह आंदोलन औपचारिक रूप से वापस ले लिया गया।
गांधी ने इस घटना के लिए एक तरफ जहां पुलिस वालों को जिम्मेदार ठहराया, क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था। हालांकि गांधी जी इस फैसले से क्रांतिकारियों का एक दल नाराज हो गया था।
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172 लोगों को दोषी ठहराया गया
इस घटना के लिए ब्रिटिश सरकार की गोरखपुर अदालत ने 9 जनवरी 1923 को 418 पेज का फैसला सुनाया। इसमें 172 लोगों को दोषी करार दिया गया। ज्यादातर को फांसी की सजा सुनाई गई। सिर्फ 2 लोगों को 2 साल जेल की सजा दी गई। वहीं, 47 लोगों को बरी कर दिया गया। इस फैसले को गोरखपुर कांग्रेस कमेटी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की। 30 अप्रैल 1923 को हाईकोर्ट का फैसला आया। इसके बाद 19 को फांसी और 16 को काला पानी की सजा सुनाई गई। बाकी लोगों को 2 से लेकर 8 साल तक की जेल दी गई। बता दें कि चौरी-चौरा यूपी के गोरखपुर जिले में एक कस्बा है। यह दो गांवों चौरी और चौरा से मिलकर बना है।