चंपारण सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक, महात्मा गांधी के इन आंदोलनों ने दिखलाया आजादी का रास्ता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए कई आंदोलन किए थे। इन आंदोलनों ने देश को आजादी का रास्ता दिखलाया था। 

नई दिल्ली। देश इस साल आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है। इस अवसर पर एशियानेट हिंदी आजादी से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाओं को आप तक पहुंचा रहा है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें उखाड़ दी थी। आज हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए कुछ आंदोलनों के बारें में बता रहे हैं। 

चंपारण सत्याग्रह 
महात्मा गांधी 1915 में भारत आए थे। इसके बाद गांधी जी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें सलाह दिया कि भारत का भ्रमण करो, अपनी आंखें और कान खुली रखना। इसके बाद महात्मा गांधी ने भारत का भ्रमण किया। गांधी जी ने 1916 में लखनऊ में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया। इसी अधिवेशन में राजकुमार शुक्ल ने चंपारण के किसानों की समस्या से गांधी जी को रूबरू करवाया और चंपारण आने को कहा। गांधी जी बिहार आने के लिए राजी हो गए थे।

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चंपारण में अंग्रेज किसानों को अपनी जमीन के  3/20 भाग पर अनिवार्य रूप से नील की खेती करने के लिए कहते थे। इसे तिनकठिया पद्धति भी कहा जाता है। 1917 में गांधी जी बिहार पहुंचे और कुछ नेताओं के साथ मिलकर इस पद्धति का विरोध किया। इस विरोध के चलते अंग्रेज अवैध वसूली का 25 फीसदी वापस करने को राजी हुए। महात्मा गांधी का यह भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयास था।
 
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 
गांधी जी ने 1918 में अहमदाबाद के सूती कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों को हक दिलाया था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग बीमारी फैलने के चलते मिल मजदूरों को प्लेग बोनस दिया जाता था। 1918 में मिल मालिकों ने बोनस खत्म करने का एलान किया, जिसका मिल मजदूरों ने विरोध किया। गांधी जी ने इस मामले में हस्तक्षेप किया, बात नहीं बनी तो गांधी ने पहली बार भूख हड़ताल करने की घोषणा की। हड़ताल को देखते हुए मिल मालिक 20% भत्ता देने को राजी हो गए। बता दें कि मजदूरों की हड़ताल 21 दिनों तक चली थी। 

खेड़ा सत्याग्रह
1918 में गुजरात में बाढ़ आई थी, जिसकी वजह से किसानों की खड़ी फसल नष्ट हो गई। इसके कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। किसानों ने शासकों से भूराजस्व में छूट देने का अनुरोध किया, लेकिन शासकों ने मना कर दिया। इसके बाद गांधी जी ने हस्तक्षेप किया। किसानों ने भूराजस्व भुगतान नहीं करने का निश्चय लिया। गांधी जी के सामने ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा और 1918 में अकाल समाप्त होने तक भूराजस्व के भुगतान की शर्तों में ढील देनी पड़ी। 

रौलेक्ट एक्ट का विरोध
भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत 1919 में रौलेक्ट एक्ट लाया था। इसे बिना वकील, अपील और दलील वाला कानून भी कहा जाता था। भारतीयों ने इसे काला कानून करार दिया था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस कानून का पूरा देश में विरोध हुआ। इसी एक्ट के विरोध में पंजाब के जलियांवाला बाग में लोग इकट्ठा हुए थे। इसी दौरान जनरल ओ डायर ने सैनिकों को निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हजारों लोगों की जानें गई थी।

असहयोग आंदोलन 
महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की। कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग से संबंधित प्रस्वात पारित हुआ था, जिसके तहत विदेशी कपड़ों की देशभर में होलियां जलाईं गईं। लोगों ने उपाधियां त्यागी और सरकारी दफ्तरों का बहिष्कार किया। गांधी जी का मानना था कि ब्रिटिश हुकूमत से न्याय मिलना मुश्किल है। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से राष्ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई और इस प्रकार असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई।
  
सविनय अवज्ञा आंदोलन 
इस आंदोलन के तहत ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जाकर महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़ा था। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने 78 समर्थकों के साथ साबरमती आश्रम से नवसारी (दांडी) तक यात्रा प्रारंभ की थी। गांधी जी के नमक कानून तोड़ते ही यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया था। इस दौरान गांधी जी ने कहा था कि शक्ति के विरुद्ध अधिकार के इस युद्ध में मैं विश्व सहानुभूति की कामना करता हूं।
  
दलित आंदोलन  
देश में फैले छुआछूत के विरोध में गांधी जी ने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन पूरे देश में फैला था। 1932 में गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की थी।

भारत छोड़ो आंदोलन 
7 अगस्त 1942 महत्‍मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन ने भारत छोड़कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर किया था। आंदोलन के शुरू होते ही ऑपरेशन जीरों ऑवर के तहत मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सहित कई नेतओं को गिरफ्तार किया गया था।

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