पद्मश्री छुटनी महतो की दर्दभरी संघर्षों की कहानी, अब फिल्मों में देखेंगे देशभर के लोग, जल्द बनेगी वेब फीचर

छुटनी की संघर्षपूर्ण जीवनी पर ए विलेज टॉकीज के बैनर तले बनेगा वेब सीरीज। इसको लेकर पद्म श्री छुटनी ने कहा कि फिल्म का बेसब्री से इंतजार। फिल्म निर्माता प्रणव प्रसाद ने शुक्रवार को ये बात बताई।

Sanjay Chaturvedi | Published : Jul 8, 2022 4:34 PM IST

जमशेदपुर : झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले की रहने वाली छुटनी महतो आज समाज के लिए एक मिशाल हैं। उनका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। भेले ही आज वे किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उन्हें देश के सर्वोच्च पद्दम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया है, लेकिन उनकी कहानी बहुत ही दर्दभरी है। आज भी बात करते हुए पुरानी यादों को याद कर उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। उब उनकी इन्ही कहानियों को लेकर वेब सीरीज बनाई जा रही है। यह वेब सीरीज ‘ए विलेज टॉकीज’ के बैनर तले बनेगी। फिल्म निर्माता प्रसाद प्रणव ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने कहा कि पद्मश्री छुटनी महतो की बायोपिक बनाकर उन्हें गर्व होगा। उनके संघर्ष को फिल्म के जरिए पेश किया जाएगा। ताकि लोग जागरूक हो सकें।

अगले महीने से शुरू होगी कलाकारों की खोज
फिल्म निर्माता ने बताया कि छुटनी महतो पर बनने वाली वेब सीरीज के लिए कलाकारों की खोज शुरू कर दी गई हे। झारखंडी कलाकारों के अलावा स्थानीय कलाकारों को भी मौका दिया जाएगा। फिल्म का नाम अभी तय नहीं किया गया है। लेकिन इसका नाम ‘छुटनी अम्मा’ हो सकता है। जब इस बात की जानकारी छ़ुटनी महतो को मिली तो उन्हें काफी खुशी हुई। उन्होंने कहा- यह फिल्म जल्द बने वह खुद भी फिल्म देखना चाहती है। 

Latest Videos

 जाने कौन है छुटनी महतो
सरायकेला के गम्हरिया थाना क्षेत्र के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी महतो ने  डायन प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया है। उन्होंने जागरूकता अभियान चलाया। इसे लेकर उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। उनके मुताबिक अबतक उन्होंने 150 महिलाओं को डायन प्रताड़ना से मुक्ति दिलाई है। आज भी छुटनी इस अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन जारी रखी हैं। वो बताती हैं कि जहां से भी इस तरह की खबर आती कि किसी महिला को डायन बताकर प्रताड़ित किया जा रहा है, वह तुरंत पहुंच कर विरोध करती थीं। धीरे- धीरे महिला समूह बनाकर गांव-गांव में जन जागरण अभियान चलाया। साल 2001 से डायन प्रथा के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन अब काफी वृहद हो चुका है। उन्होने ने इसे अपने अंतिम क्षण तक  चलाने को कहा है।

छुटनी की दर्दभरी कहानी, जिसे सुनकर आंसू आ जाए
बात 3 दिसंबर 1995 की है। गांव में बैठी पंचायत ने उनपर बेहिसाब जुल्म किए। दरअसल  उनके पड़ोस की बेटी कई दिनों से बीमार चल रही थी। गांव के लोग इसके लिए छुटनी को जिम्मेवार मानते थे। गांव वालों का कहना था कि छुटनी डायन है और जादू-टोना करके बच्ची की जान लेना चाहती है। पंचायत बैठी और पंचों ने भी बीमारी के लिए छुटनी को जिम्मेदार बताते हुए उनपर 500 रुपए का जुर्माना लगा दिया। दंबंगों की डर से छुटनी ने जुर्माना भर दिया। इसके बाद जब बीमार पड़ी बच्ची ठीक नहीं हुई तो अगले दिन चार सितंबर को एक साथ 40 से 50 लोगों ने उनके घर पर धावा बोल दिया। उन्हें खींचकर बाहर निकाला। उनके कपड़े फाड़ दिए। इतना ही नहीं उनकी जमकर पीटाई की। उनपर मल-मूत्र फेंका गया। यहां तक की उन्हंे मैला पिलाने की कोशिश की गई। घटना के बाद उनके अपनों ने भी साथ नहीं दिया। उनका सुसराल में भी रहना मुश्किल हो गया। यहां तक की पति ने भी साथ छोड़ दिया। तीन बच्चों को साथ लेकर छुटनी आधी रात को ही गांव से निकल गई। एक रिश्तेदार ने सहारा दिया। वहां भी जान को खतरा था, इसलिए खरकई नदी पार आदित्यपुर अपने भाई के घर पहुंची। यहां भी कुछ दिनों बाद मां की मौत हो जाने के बाद उन्हें भाई का घर छोड़ना पड़ा। फिर गांव के बाहर पेड़ के नीचे झोपड़ी बनाकर रहने लगी। आठ से 10 महीने मेहनत मजदूरी कर किसी तरह अपने बच्चों का पेट पालती रही। अाज भी उन बातों को याद कर उनके रौंगटे खड़े हो जाते हैं। 

मुश्किलों के आगे झुकी नहीं, डायन प्रथा के खिलाफ ही मुहिम चलाना शुरू किया
छुटनी महतो ने रूढ़ीवादी लोगों को नारी शक्ति की पहचान कराई। तमाम मुसिबतों को झेलते हुए उनसे भागने की बजाए छ़ुटनी ने संघर्ष करने का फैसला लिया। उन्होंने डायन प्रथा के खिलाफ ही मुहिम चलाने की सोची। उनका मानना था कि मेरे बाद और किसी को प्रताड़ित न होना पड़े। छुटनी देवी की अगुवाई में चली मुहिम का ही असर है कि झारखंड के चाईबासा, सरायकेला-खरसांवा, खूंटी, चक्रधरपुर के साथ साथ छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल और ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों में लोगों छुटनी देवी अब एक बड़ा नाम है। लोग उनका कद्र करते हैं। छुटनी देवी बताती हैं कि 1995 में घटी घटना के बाद आज इस जगह तक पहुंचने के लिए उन्होंने बेहिसाब दुश्वारियां भी झेली हैं।  

छुटनी के बेटों को भी डायन पुत्र कहकर बुलाते थे लोग, उनके संघर्ष के बाद बदला जीवन
छुटनी महतो के बेटे अतुल महतो बताते है कि पहले उन्हें भी डायन का पुत्र कह कर प्रताड़ित किया जाता था। मां के संघर्ष को उसने करीब से देखा है। मां अनपढ़ हैं, लेकिन उनकी इच्छा थी कि बेटा-बेटी को पढ़ा लिखा कर शिक्षित बनाये। आज वह शिक्षक हैं और गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे है। छुटनी महतो के तीन पुत्र और एक पुत्री है। पहला पुत्र कंपनी मे नौकरी करता है, दूसरा पुत्र शिक्षक है और तीसरा काम की तलाश में है। बेटी की शादी हो गयी है। आज छुटनी मां की सारी जिम्मेदारी निभाते हुए डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चला रही है।.

यह भी पढे- NDA की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बने इसके लिए पद्मश्री जमुना टुडू ने किया पूजा-हवन 

Share this article
click me!

Latest Videos

New York में Hanumankind, आदित्य गढ़वी और देवी श्री की जोरदार Performance, PM Modi ने लगाया गले
RSS और BJP की चुप्पी! संजय सिंह ने फिर से दोहराए Arvind Kejriwal के पूछे 5 सवाल
रिटर्न मशीन हैं 7 Stocks..मात्र 1 साल रखें बढ़ेगा पैसा!
मुजफ्फरनगर में क्यों भिड़ गए योगी के 2 मंत्री, जमकर हुई तू-तू, मैं-मैं । Anil Kumar । Kapil Dev
दुर्गा प्रतिमा बनाने के लिए क्यों लेते हैं ‘सेक्स वर्कर्स’ के आंगन की मिट्टी । Durga Puja । Navratri