दो राजाओं के लड़ाई में खंडित हो गया था यह शिवलिंग, यहां पुजारी नहीं 6 परिवार करवाते हैं पूजा

इस मंदिर का शिवलिंग देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके बाद सबसे बड़ा शिवलिंग ओड़िसा के भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर का शिवलिंग है।  यह मंदिर झारखंड, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल के त्रिवेणी पर बसा हुआ है।

Pawan Tiwari | Published : Jul 18, 2022 3:46 AM IST / Updated: Jul 18 2022, 09:20 AM IST

पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर). झारखंड में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां खंडित ( दो टुकड़ों में बंटे) शिवलिंग की पूजा की जाती है।  सालों भर यहां झारखंड, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल के लोग पूजा करने आते हैं। सावन माह में यहां पूजा करने के  लिए तीन राज्यों के भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर पूर्वी सिंहभूम जिला के बहरागोड़ा प्रखंड के चित्रेश्वर गांव में है। इस मंदिर को चित्रेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर झारखंड, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल के त्रिवेणी पर बसा हुआ है। पास ही में स्वर्णरेखा नदी बहती है। यह मंदिर तीन हजार साल पुराना है। यहां मुख्य पुजारी जैसी कोई प्रथा नहीं है। गांव के 6 ब्राह्मण परिवार यहां भक्तों की पूजा करवाते हैं।

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देश की सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है 
कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि इस मंदिर का शिवलिंग देश का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके बाद सबसे बड़ा शिवलिंग ओड़िसा के भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर का शिवलिंग है। स्कंध पुराण के उत्कल खंड में भी चित्रेश्वर शिव मंदिर का वर्णन है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि 10 वीं शताब्दी में इस मंदिर को ओड़िसा के सोम वामसी या केशरी वंश के द्वारा बनाया गया था। इस मंदिर का निर्माण ओड़िसा के वास्तुकला में हुआ था।

इस मंदिर में डेढ़ माह का होता है श्रावण 
सभी शिव मंदिरों में श्रावण माह एक महीना का होता है। लेकिन चित्रेश्वर धाम में श्रावण डेढ़ महीना का होता है। क्योंकि ओड़िया और बांग्ला भाषी लोगों का पंचांग हिंदी पंचांग से 15 दिन पहले शुरु होता है। इसलिए इस मंदिर में डेढ़ माह तक तीनों राज्यों के श्रद्धालु और कांवरियां जल चढ़ाने व पूजा करने पहुंचते हैं। श्रावण माह के अलावा इस मंदिर में महाशिवरात्रि की भी विशेष पूजा होती है। महाशिवरात्रि की रात यहां हजारों दिए जलाए जाते हैं। यहां पूजा करने आए भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।

क्यों हुआ शिवलिंग खंडित
गांव के बुजुर्गों की मानें तो पूर्व में मंदिर क्षेत्र धालभूम राज्य के अधीन था। इस मंदिर पर अपना अधिकार जताने को लेकर धालभूम राज्य के राजा और पश्चिम बंगाल के गोपीबल्लवपुर के राजाओं के बीच बराबर संघर्ष होता रहता था। ऐसी मान्यता है कि दोनों राज्यों के राजाओं के बीच हो रहे संघर्ष से नाराज होकर शिवलिंग दो टुकड़ों में बंट गया था। तब से लेकर अबतक उसी खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है।

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