झारखंड के आदिवासियों व OBC को दो-दो खुशखबरी आज देंगे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, वर्षों पुरानी मांग होगी पूरी...

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जनता से दो प्रमुख वादा किया था। दोनों बिल बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ ही काफी संवेदनशील हैं, इसलिए माना जा रहा है कि कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध नहीं करेगा।

Dheerendra Gopal | Published : Nov 10, 2022 6:35 PM IST / Updated: Nov 11 2022, 12:14 AM IST

Jharkhand Assembly Special session: ईडी के लगातार प्रेशर के बाद भी झारखंड सरकार अपने महत्वपूर्ण फैसलों पर ध्यान केंद्रित की हुई है। कार्रवाई की आशंकाओं के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य में दो महत्वपूर्ण बिल पास कराने में लगे हुए हैं। बीते विधानसभा चुनाव में किए गए अपने दो वादों को वह पूरा करने के लिए विधानसभा में दो बिल इस बार पास कराएंगे। शुक्रवार को एक स्पेशल सेशन में झारखंड विधानसभा में दोनों विधेयकों के पास होने की उम्मीद है। इन दोनों कानूनों के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जनता से वादा किया था। कथित मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को समन मिला है। सोरेन को 2021 में पद पर रहते हुए खुद को खनन पट्टा देने के लिए भाजपा की शिकायत पर एक विधायक के रूप में अयोग्यता के जोखिम का भी सामना करना पड़ सकता है।

क्या है दोनों मुद्दे जिनका किया था वादा?

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जनता से दो प्रमुख वादा किया था। पहला अधिवास नीति (Domicile Records Policy) में व्यापक बदलाव। इसके तहत 1932 के रिकॉर्ड का उपयोग करके स्थानीय निवासियों का निर्धारण किया जाना है। नौकरियों और शिक्षा में ओबीसी का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत निर्धारित करने संबंधित बिल। चूंकि, दोनों बिल बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ ही काफी संवेदनशील हैं, इसलिए माना जा रहा है कि कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध नहीं करेगा।

क्या होगी नई आरक्षण नीति? 

नई आरक्षण नीति के तहत ओबीसी कोटा न केवल 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाएगा बल्कि अनुसूचित जनजातियों के लिए कोटा 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के लिए 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया जाएगा। यही नहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के रूप में माने जाने वाले तथाकथित उच्च जातियों के एक वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण में जोड़ा गया है। झारखंड में बिल पास होने के बाद राज्य में आरक्षण बढ़कर 77 प्रतिशत हो जाएगा। देश में सबसे अधिक आरक्षण देने वाला राज्य बन जाएगा। 

अधिवास रिकॉर्ड नीति...

15 नवंबर, 2000 को झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद से अधिवास नीति विवादास्पद बनी हुई है। राज्य की पिछली भाजपा सरकार ने 2016 में स्थानीय लोगों को परिभाषित करने के लिए 1985 को कट-ऑफ वर्ष घोषित किया था। लेकिन 2019 में राज्य में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के सत्ता में आने के बाद, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन ने घोषणा की कि अधिवास नीति तैयार करने के लिए 1932 भूमि रिकॉर्ड को आधार बनाया जाना चाहिए।

अधिवास रिकॉर्ड नीति, राज्य की आदिवासी आबादी की एक प्रमुख मांग काफी दिनों से रही है। इनका कहना है कि 1932 में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए अंतिम भूमि सर्वेक्षण को स्थानीय लोगों को परिभाषित करने के आधार के रूप में इस्तेमाल किया गया था और झारखंड सरकार ने बीते साल सितंबर में इसे मान लिया था।

अब विधेयक के कानून बनने के बाद जिन लोगों के पूर्वज 1932 से पहले राज्य में रह रहे थे और जिनके नाम उस वर्ष के भूमि अभिलेखों में शामिल थे, वे झारखंड के स्थानीय निवासी माने जाएंगे। भूमिहीन व्यक्तियों या ऐसे लोगों के मामले में जिनके नाम 1932 के भूमि सर्वेक्षण में दर्ज नहीं थे, ग्राम सभा को इस पर निर्णय लेने का अधिकार होगा।

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