Chandraghanta Puja: देवी दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इनकी पूजा से दूर होते हैं रोग-शोक

Navratri 2022: नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा जाती है। देवी का यह रूप अत्यंत मनमोहक है। देवी चंद्रघंटा की पूजा से हर तरह के सुख हमें प्राप्त होते हैं। इनका एक नाम शिवदूती भी प्रसिद्ध है।
 

Manish Meharele | / Updated: Sep 28 2022, 05:45 AM IST

उज्जैन. नवरात्रि (Navratri 2022) के 9 दिनों में रोज देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा (Goddess Chandraghanta) की पूजा का विधान है। इस बार इनकी पूजा 28 सितंबर, बुधवार को की जाएगी। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव को प्रिय होने से इनका एक नाम शिवदूती भी है। आगे जानिए देवी चंद्रघंटा की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा व आरती… 

ऐसा है मां चंद्रघंटा का स्वरूप
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी देवी चंद्रघंटा का वाहन शेर है और इनके दस हाथ हैं। इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है। पांचवा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। वहीं अन्य चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है। पांचवा हाथ वरद मुद्रा में रहता है। मान्यता है कि भक्तों के लिए माता का यह स्वरूप बेहद कल्याणकारी और शुभ फल देने वाला है।

28 सितंबर, बुधवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 06:00 से 07:30 तक – लाभ
सुबह 07:30 से 09:00 तक- अमृत
सुबह 10:30 से दोपहर 12:00 तक- शुभ
दोपहर 03:00 से शाम 04:30 तक- चर
शाम 04:30 से 06:30 तक- लाभ   

ऐसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा (Devi Chandraghanta Puja Vidhi)
सबसे पहले देवी ब्रह्मचारिणी की तस्वीर या प्रतिमा एक पटिए पर स्थापित करें। प्रतिमा या चित्र पर जल छिड़कर शुद्धिकरण करें। इसके बाद देवी को कुंकुम, चावल, अबीर, गुलाल, रोली, मेहंदी, हल्दी, सुपारी, लौंग इलाइची आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। देवी चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करें और आरती करें।
मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥


मां चंद्रघंटा की आरती (Goddess Chandraghanta Aarti)
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समान तू शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।।
क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।
सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट मे बचाने वाली।।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं। सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगदाता।।
कांची पुर स्थान तुम्हारा। करनाटिका में मान तुम्हारा।।
नाम तेरा रटू महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी।।

मां चंद्रघंटा की कथा (Goddess Chandraghanta Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में महिषासुर नाम का एक पराक्रमी दैत्य था। देवता भी उससे घबराते थे। एक दिन उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। तब सभी देवता त्रिदेवों के पास गए। तब त्रिदेवों के मुख से एक प्रकाश निकला जो देवी रूप में बदल गया। देवताओं ने इन्हें अपने अस्त्र-शस्त्र दिए। देवराज इंद्र ने इन्हें अपना वज्र और घंटा दिया। इसी से इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर देवी ने महिषासुर का वध कर दिया।

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