
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी कालरात्रि की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है और हर तरह का दुख दूर होता है। मां कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही भयंकर है। इनका रंग काला है और इनकी तीन आंखें हैं। इनके बाल बिखरे हैं और 4 भुजाएं हैं। इनका एक हाथ वर मुद्रा में और एक अभय मुद्रा में है। अन्य दो हाथों में हथियार हैं। इनका वाहन गधा है। गले में विद्युती जैसी चमकती हुई माला है। आगे जानिए देवी कालरात्रि की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व अन्य खास बातें…
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8 अप्रैल, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 06 से 07.30 तक- चर
सुबह 07.30 से 09 तक- लाभ
सुबह 09 से 10.30 तक- अमृत
दोपहर 12 से 01.30 तक- शुभ
शाम 04:30 से 06 तक- चर
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इस विधि से करें देवी कालरात्रि की पूजा
8 अप्रैल, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद देवी देवी कालरात्रि की तस्वीर या प्रतिमा को पूजा स्थल पर स्थापित करें और श्रृंगार आदि करें। देवी कालरात्रि को कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल आदि चीजें चढ़ाएं। साथ ही मीठा पान भी अर्पित करें। सरसों के तेल का दीपक लगाएं। किसी खास मनोकामना की पूर्ति के लिए 9 नींबूओं की माला बनाकर चढ़ाएं। देवी कालरात्रि को गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं।
देवी कालरात्रि मां का ध्यान करते हुए आरती करें।
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
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देवी कालरात्रि की कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज से जब सभी देवता परेशान हो गए तो वे भगवान शिव के पास पहुंचे। तब शिवजी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध करने के लिए आग्रह किया। भगवान के आग्रह पर देवी पार्वती ने दुर्गा के रूप में अवतार लिया और दैत्यों से युद्ध करने लगी। इसी रूप में देवी ने शुंभ-निशुंभ का वध किया, लेकिन रक्तबीज का रक्त जहां-जहां गिरता, वहां लाखों रक्तबीज पैदा हो जाते। तब देवी दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया और रक्तबीज का वध किया। रक्तबीज से शरीर से निकलने वाले रक्त को माता ने पी लिया।
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मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥
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