Maghi Purnima 2022: आज है मौनी अमावस्या और माघी पूर्णिमा 16 फरवरी को, जानिए क्यों खास है ये दोनों दिन

माघ महीने में स्नान-दान और पूजा-पाठ का बहुत महत्व बताया गया है। ग्रंथों के मुताबिक इस महीने तीर्थ स्नान और तिल दान करने से कई यज्ञों का फल मिलता है। धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिये से भी ये महीना बहुत खास माना गया है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 1, 2022 3:52 AM IST

उज्जैन. माघ मास में पूजा-पाठ के अलावा नियम-संयम से रहकर तपस्या भी की जाती है, जिससे ऊर्जा बढ़ती है। इस महीने के कृष्ण और शुक्लपक्ष के आखिरी दिन स्नान और दान के महापर्व माने गए हैं। इनमें मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) पर गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान के साथ पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा है, वहीं माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima 2022) पर तिल के जल से स्नान और तिल दान का विधान ग्रंथों में बताया गया है।

क्यों खास है मौनी अमावस्या? 
- पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि मौन साधना मन को नियंत्रित करने के लिए पूरी महीना ही खास माना गया है। ऐसा करने से वाक शक्ति भी बढ़ती है। 
- जो लोग पूरा दिन मौन धारण न कर सकें, वे सवा घंटे भी मौन व्रत रख लें, तो उनके भीतर के विकार नष्ट होंगे और एक नई व सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मौनी अमावस्या 1 फरवरी को है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन उत्तराषाढ़ व श्रवण नक्षत्र के साथ ही सर्वार्थसिद्धि योग भी है। 
- इस दिन पितरों का आशीर्वाद पाने तर्पण भी करने की मान्यता है। विभिन्न प्रकार की साधनाओं में एक मौन साधना भी होती है। इसके लिए मौनी अमावस्या का दिन श्रेष्ठ होता है।
- इस दिन मौन रहकर दान स्नान करने का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार बोलकर जाप करने से कई गुणा अधिक पुण्य मौन रहकर जाप करने से मिलता है।

16 फरवरी को माघी पूर्णिमा
- माघी पूर्णिमा 16 फरवरी को रहेगी। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि माघी पूर्णिमा के दौरान पवित्र नदियों में स्नान व दान करने से मनोकामना पूरी होती है। 
- ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इस दिन गंगाजल में स्नान, आचमन या उसका स्पर्श मात्र भी पुण्य फलदायक होता है। 
- इसलिए पूरे देश भर की पवित्र नदियों तक लोग पहुंचते हैं और स्नान कर दान देकर फल प्राप्त करते हैं।
- पितरों को तर्पण, श्राद्ध के लिए यह दिन उत्तम माना गया है। इस दिन पितरों के निमित्त जलदान, अन्नदान, भूमिदान, वस्त्र एवं भोजन पदार्थ दान करने से पितरों की तृप्ति होती है। 
- इन दोनों दिनों पर जोड़े सहित ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस पूर्णिमा पर कुछ धार्मिक कार्य करने का विधान बताया गया है। 
- भगवान विष्णु का पूजन करें। पितरों का श्राद्ध कर निशक्तजनों को भोजन, वस्त्र, तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, जूते, फल, अन्न का दान करें। 
- गरीबों एवं जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए। किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए।

 

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