
उज्जैन. 30 मई को शनि जयंती और वट सावित्री का व्रत किया जाता है। सोमवार को अमावस्या होने से सोमवती अमावस्या का योग इस दिन बन रहा है। जब-जब सोमवार को अमावस्या तिथि आती है, सोमवती अमावस्या का योग बनता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा व उपाय किए जाते हैं और नदी स्नान व जरूरतमंदों को दान भी किया जाता है। आगे जानिए इस बार क्यों खास है ये सोमवती अमावस्या…
कब से कब तक रहेगी अमावस्या तिथि?
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 29 मई, रविवार की दोपहर 02.54 मिनट से शुरू होगी, जो 30 मई की शाम 04.59 मिनट तक रहेगी।
अमावस्या का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार चंद्र की सोलहवीं कला को अमा कहा गया है। चंद्र की अमा नाम की महाकला है, जिसमें चंद्र की सभी सोलह कलाओं की शक्तियां शामिल हैं। इसका क्षय और उदय नहीं होता है। अमावस्या पर सूर्य और चंद्र एक साथ एक ही राशि में रहते हैं। इस अमावस्या पर ये दोनों ग्रह वृषभ राशि में रहेंगे। इसी वजह से इस तिथि को सूर्य-चंद्र संगम भी कहते हैं।
27 साल बाद बना है ये दुर्लभ संयोग
वैसे तो हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि जयंती और वट सावित्री का व्रत किया जाता है। लेकिन इस बार ये तिथि सोमवार को होने से सोमवती अमावस्या का शुभ योग भी इस दिन बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार, ये बहुत ही दुर्लभ संयोग है। ऐसा संयोग 27 साल पहले 19 मई 1995 को भी बना था। इस तरह एक ही दिन में 3 त्योहार होना अपने आप में एक विशेष घटना है।
अमावस्या पर करें पितरों के लिए दान व श्राद्ध
हिंदू धर्म ग्रंथों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। अमावस्या तिथि पर दोपहर 12 बजे से पहले कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी अर्पित करके पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। इस दिन जरूरतमंदों को अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल आदि जरूरी चीजों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
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