सार
हिंदू धर्म में वृक्षों को भी देवताओं के रूप में पूजा जाता है। ये परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। समय-समय पर इन वृक्षों से संबधित त्योहार भी मनाए जाते हैं। वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2022) भी इनमें से एक है।
उज्जैन. वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 30 मई, सोमवार को है। इस दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इसी पेड़ के नाम पर इस व्रत का नाम वट सावित्री रखा गया है। सुहागिन महिलाएं इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे शिव-पार्वती, यमराज और सावित्री-सत्यवान की पूजा करती हैं। साथ ही बरगद की पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं। बरगद के पेड़ को हिंदू धर्म में इतना पवित्र क्यों माना जाता है, आगे जानिए…
ये है वट वृक्ष की पूजा का धार्मिक महत्व
धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि वट वृक्ष यानी बरगद के तने में भगवान विष्णु, जड़ों में ब्रह्मदेव और शाखाओं में भगवान शिव वास करते हैं। इस पेड़ की जो खाएं नीचे की ओर रहती हैं, उन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इस तरह से ये पूरा वृक्ष ही पूजनीय है। इस पेड़ की पूजा करने से त्रिदेवों का पूजन एक साथ हो जाता है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर ही सावित्री ने वट वृक्ष के छांव में अपने पति को पुनर्जीवित किया था। इसलिए इस पेड़ के नाम पर ही वट सावित्री का व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पेड़ की पूजा करने से सभई प्रकार के सुख मिलते हैं और योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
ये है वट वृक्ष का औषधीय महत्व
बरगद का पेड़ सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही खास नहीं है बल्कि इसका औषधीय महत्व भी इसे विशेष बनाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस पेड़ का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जिसका उपयोग रोगों के उपचार में न किया जाता हो। वट वृक्ष की उपयोगिता को देखते हुए ही हमारे पूर्वजों ने इसके पूजन की परंपरा शुरू की। बरगद के पेड़ की जड़, पत्ते, तने, फूल, शाखाएं आदि सभी से औषधियों का निर्माण किया जाता है। यहां तक की बरगद की शाखाओं से निकलने वाला द्रव्य पदार्थ भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यही कारण है कि समय-समय पर आने वाले त्योहारों पर इस वृक्ष की पूजा की जाती है।
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